"जैसे ही धमाका हुआ... आग के गोले बरसने लगे", चश्मदीदों से सुनिए हरदा विस्फोट कांड की पूरी कहानी

हरदा की पटाखा फैक्ट्री में हुए धमाके में 11 मासूम मौत के मुंह में समा गए जबकि हादसे में झुलसे 217 लोग घायल हो. धमाका इतना भयानक था कि शहर से करीब 40 किलोमीटर दूर तक धरती दहल उठी थी. हरदा धमाके के बाद कई आशियाने उजड़ गए, कितनों के दामन जले तो कितनों के घरों में हमेशा-हमेशा के लिए सन्नाटा कर गए पटाखे.... बहरहाल, इस हादसे की आग में अपने माता-पिता को खोने वाली एक महिला ने अपना दर्द बयां किया.

विज्ञापन
Read Time: 4 mins
हरदा ब्लास्ट के बाद लोगों ने बयां की ज़ुल्मों सितम की कहानी 

हरदा की पटाखा फैक्ट्री में हुए धमाके में 11 मासूम मौत के मुंह में समा गए जबकि हादसे में झुलसे 217 लोग घायल हो गए. धमाका इतना भयानक था कि शहर से करीब 40 किलोमीटर दूर तक धरती दहल उठी थी. हरदा धमाके के बाद कई आशियाने उजड़ गए, कितनों के दामन जले तो कितनों के घरों में हमेशा-हमेशा के लिए सन्नाटा कर गए पटाखे.... बहरहाल, इस हादसे की आग में अपने माता-पिता को खोने वाली एक महिला ने अपना दर्द बयां किया. महिला ने कहा, "इस तरह की फैक्ट्री को ऐसी जगह नहीं खोलना चाहिए, जहां पर इतने लोग रहते हो....ये त्रासदी तो होनी ही थी." महिला के शब्दों के पीछे छिपी हुई तकलीफ अनायास ही जाहिर हो रही है. महिला ने इस हादसे के लिए सरकार और कारखाने के मालिक को जिम्मेदार ठहराया.

धमाके के बाद सड़कों पर सोने को मजबूर हुए लोग 

इस कड़कड़ाती ठंड में एक और महिला ने सड़क पर रात बिताई क्योंकि घटना में उसका ठिकाना (घर) उजड़ गया. इलाके में रहने वाले एक व्यक्ति ने कहा कि उन्होंने इलाके से पटाखा फैक्ट्री को हटाने की मांग भी की गई थी लेकिन इस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया. हरदा शहर के मगरधा रोड पर बैरागढ़ इलाके में करीब 200 से ज़्यादा लोग पटाखे बनाने के काम में लगे हुए थे. मंगलवार सुबह करीब 11 बजे लोगों ने कारखाने में पहला विस्फोट सुना. कारखाने के आसपास के इलाके में अफरा-तफरी मच गई क्योंकि लोग भागने लगे और सुरक्षित जगह पर पहुंचने की कोशिश करने लगे. 

Advertisement

"ये तो होना ही था..." रोते हुए में महिला ने बयां किया दर्द 

विस्फोट के बाद पटाखा कारखाना मलबे में तब्दील हो गया. चारों तरफ दूर दूर तक शवों के टुकड़े बिखर गए, घर के घर मलबे में तब्दील हो गए. विस्फोट स्थल से लगभग 50 फुट दूर एक जला हुआ और पलटा हुआ ट्रक पड़ा देखा गया. हादसे में अपनी मां और पिता को खोने वाली नेहा ने PTI-भाषा को रुंधी आवाज में बताया, ''कारखाने और गोदाम को बढ़ाने का काम चल रहा था. यह तो होना ही था.'' उसका परिवार कारखाने के आसपास ही रहता था. नेहा ने कहा कि ऐसी घटना पहले भी हुई थी लेकिन अधिकारियों ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया. इस हादसे में उसका घर भी जल गया.

Advertisement

उन्होंने कहा, 'मैं इस घटना के लिए सरकार और कारखाना मालिक को जिम्मेदार मानती हूं. उन्हें आबादी वाले इलाके में कारखाना नहीं चलाना चाहिए था. पहले भी लोग मरे हैं लेकिन सरकार ने इजाजत दे दी... जैसे ही कारखाना मालिक पैसा जमा कराते हैं, सरकार कारखाने को फिर से खोल देती है. क्या होता है?''

Advertisement

"जैसे ही धमाका हुआ.... आग के गोले बरसने लगे"

एक दूसरे स्थानीय निवासी अमरदास सैनी अपने घर पर थे जब सुबह करीब 11 बजे पहला विस्फोट हुआ. उन्होंने कहा, 'जब पहला विस्फोट हुआ तब मैं घर पर था. मेरी पत्नी खाना बना रही थी. हम धमाकों के बीच भागे, बजरी, कंक्रीट के टुकड़े और आग के गोले हम पर गिर रहे थे. सड़क से गुजर रही कई मोटरसाइकिलें बुरी तरह प्रभावित हुईं. इस घटना में कई लोगों के शरीर के हिस्से क्षत विक्षत होकर यहां वहां बिखर गए. कारखाने के आसपास करीब 40 घर हैं. सैनी ने दावा किया की हम पिछले 25 वर्षों से इलाके में रह रहे हैं. हमने कलेक्टर को (कारखाना हटाने के लिए) कई आवेदन दिए हैं, लेकिन किसी ने हमारी एक नहीं सुनी.'

"मैंने सड़क पर रात बिताई, मेरे पास अब बचा ही क्या है?" 

पांच बच्चों की मां अरुणा राजपूत ने इस घटना में अपना घर खो दिया और अपने बच्चों के साथ सड़क पर रात बिताई. उसने रोते हुए कहा, 'मैं पहले विस्फोट के बाद भाग गयी. मेरी कॉलोनी के कई लोगों को चोटें आईं और उनका इलाज चल रहा है. मेरा पूरा घर क्षतिग्रस्त हो गया.'' उन्होंने कहा, 'पहले भी छोटी-मोटी घटनाएं हुई थीं लेकिन इस बार मैं बेघर हो गई. मैंने सड़क पर रात बिताई. मेरे पास कुछ नहीं बचा है और मैं सरकारी मदद चाहती हूं.' अरूणा ने अपने परिवार के सुरक्षित होने पर भगवान को धन्यवाद दिया, लेकिन कहा कि घटना के बाद वह इधर उधर भागती रही, रात में सड़क पर सोई और सुबह इलाके में लौटी.

यह भी पढ़ें : दीपावली के नाम पर दिये स्टे ने हरदा में कई घरों के चिराग बुझाए, जांच में उठे 11 सवाल फिर भी मिली सरकारी स्वीकृति