वायु और थल सेना में तैनात होंगे स्वदेशी रासायनिक युद्धक डिटेक्टर, जानें क्या है इसकी खासियत 

MP News: 223 डिटेक्टर को वायुसेना के सभी स्टेशनों व सीमा पर सेना के प्रमुख स्टेशनों पर तैनात किया जाएगा. सेना और वायुसेना को खतरनाक गैस के हमले को डिटेक्ट करने के लिए तैनाती होगी.

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Indigenous chemical warfare Detectors: रक्षा अनुसंधान एवं विकास स्थापना (डीआरडीई) ग्वालियर द्वारा विकसित स्वचालित रासायनिक युद्धक अभिकारक डिटेक्टर (एसीएडीए) को सेना में शामिल किया जा रहा है. इस तकनीकी को विकसित करने वाला चौथा देश भारत बना है.  

महाकुंभ में किया गया था तैनात

सेना ने 80.43 करोड़ रुपए लागत के 223 डिटेक्टर की खरीदने  के लिए एलएंडटी कंपनी को ऑर्डर दिया है. अब तक भारतीय सशस्त्र बलों और अन्य सुरक्षा एजेंसियों को इन डिटेक्टर्स को दुनियाभर में उपलब्ध तीन निर्माताओं से आयात करना पड़ता था. डीआरडीई के 10 साल से भी ज्यादा  लंबे समय तक चले अनुसंधान के बाद तैयार इस डिटेक्टर को लगभग 5 साल से एसपीजी व एनडीआरएफ उपयोग कर कर रहे थे. प्रयागराज महाकुम्भ में भी डीआरडीई की टीम को डिटेक्टर के साथ तैनात किया था अब इन्हे वायु सेना व थल सेना अपने सभी स्टेशनों पर तैनात किया जाएगा. 

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सेना और वायुसेना को खतरनाक गैस के हमले को डिटेक्ट करने के लिए इन 223 डिटेक्टर को वायुसेना के सभी स्टेशनों व सीमा पर सेना के प्रमुख स्टेशनों पर तैनात किया जाएगा. 

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यह है स्वदेशी डिटेक्टर की खासियत 

यह मोबिलिटी स्पेक्ट्रोमेट्री के सिद्धांत पर काम करता है. यह एक स्थिर बिंदु पर उपयोग किया जाने वाला रासायनिक युद्धक अभिकारक डिटेक्टर (अकाडा)है, जिसमें बैटरी होती है.इसमें नेटवर्किंग क्षमता भी है.डिटेक्टर में निगरानी स्टेशन पर डेटा प्राप्त करने रिमोट अलार्म यूनिट होती है. सीबीआरएन रक्षा के क्षेत्र में यह महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा.

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पहली बार भारत में डी.आर.डी.ई., ग्वालियर ने ऑटोमैटिक केमिकल एजेंट डिटेक्टर और अलार्म (ACADA) का विकास किया है, जिसमें 80% से अधिक स्वदेशी घटक इस्तेमाल हुए हैं. यह ‘आत्मनिर्भर भारत' और ‘स्वदेशी रूप से डिजाइन, विकसित और निर्मित (आई. डी.डी.एम.)' नीति की दिशा में डी.आर.डी.ई., ग्वालियर का बड़ा योगदान है.  

डी.आर.डी.ई. के निदेशक डॉ. मनमोहन परीडा ने बताया कि भारत दुनिया में ऐसा चौथा देश है, जिसके पास इस तरह की प्रौद्योगिकी है. स्वदेशी रूप से विकसित किए गए ACADA से जहां देश की सेनाओं और सुरक्षा बलों के अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक आवश्यकताओं की पूर्ति होगी, वहीं इसका  लंबे समय तक इस्तेमाल, बेहतर रख-रखाव, स्पेयर पार्ट्स/एक्सेसरीज़ की आपूर्ति, आदि सुनिश्चित हो सकेगी. स्वदेशी रूप से विकसित किया गया यह उत्पाद आई.डी.डी.एम., ‘मेक इन इंडिया' और ‘आत्म निर्भर भारत' मिशन की दिशा में एक लंबी छलांग है.   

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 डीआरडीई के वैज्ञानिक डॉ. सुशील बाथम ने बताया कि ACADA के लिए कठोर क्षेत्र मूल्यांकन परीक्षण अगस्त 2022 से अप्रैल 2023 तक आयोजित किए गए थे. इनमें पर्यावरणीय तनाव स्क्रीनिंग परीक्षण, EMI/EMC परीक्षण, रख-रखाव मूल्यांकन परीक्षण, तकनीकी परीक्षण और लाइव एजेंट परीक्षण आदि थे. 

अब भारतीय सेना और वायु सेना ने 80.43 करोड़ रुपये कीमत के 223 अकाडा की खरीद का अनुबंध 25 फरवरी 2025 को डी.आर.डी.ई. के उत्पादन साझेदार मेसर्स L&T बैंगलूरु के साथ किया है. उल्लेखनीय है कि विशेष अर्धसैनिक बलों एवं सुरक्षा एजेंसियों द्वारा ACADA का उपयोग VVIP सुरक्षा के लिए किया जाता है. इसके अलावा सुरक्षा एजेंसियों को विभिन्न प्लेटफार्मों जैसे कि नौसैनिक पोतों, बख्तरबंद वाहनों, विमान आदि के लिए डिटेक्टर्स की महत्वपूर्ण आवश्यकता है. भविष्य में इस उत्पाद के अन्य देशों में भी निर्यात की संभावना है.

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