Cotton Farming: कपास उत्पादकों के लिए खुशखबरी; अब इस कॉटन से नहीं होगी खुजली, ग्वालियर में विकसित हुए बीज

Cotton Cultivation: मध्यप्रदेश में कपास का उत्पादन प्रमुख रूप से 7 जिलों में होता है, जिनमें खरगोन, धार, बड़वानी, खंडवा और बुरहानपुर में शामिल हैं जबकि अलीराजपुर और झाबुआ में भी कुछ इलाकों मे किसान कपास का उत्पादन करते हैं.

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Cotton Cultivation: ऑर्गेनिक कपास के बीज विकसित

Cotton Cultivation: मध्यप्रदेश के सात-आठ जिलों में कपास की खेती (Kapas Ki Kheti) होती हैं, लेकिन इसका रकबा लगातार घटता जा रहा है. इसकी वजह है, इसमें होने वाले रासायनिक तत्वों का उपयोग. जिससे एक तरफ जहां भूमि की उर्वरा शक्ति कम हो रही है, वहीं इससे पैदा होने वाले कपास से बने कपड़ों से खुजली जैसे चर्म रोग होते हैं. लेकिन अब इस समस्या से किसानों को कृषि वैज्ञानिक निजात दिलाने जा रहे हैं. ग्वालियऱ के राजमाता विजयाराजे कृषि विवि के वैज्ञानिकों ने ऑर्गेनिक बीज की कुछ किस्में विकसित करने में सफलता हासिल कर ली है. इससे अब किसानों की किस्मत खुलने की उम्मीद जगी है, क्योंकि इस कपास का निर्यात आसानी से किया जा सकेगा.

Cotton Cultivation: कपास की खेती

MP में सफेद सोने की खेती

कॉटन का कपड़ा पहनने वालों को हर मौसम में सहूलियत देता है. देश ही नहीं दुनिया भर के टेक्सटाइल उद्योग के लिए कपास की सदैव ही अच्छी खासी डिमांड रहती है. मध्यप्रदेश में भी कपास की खेती होती है और यहां से कपास देश ही नहीं दुनिया भर मे निर्यात भी किया जाता है.

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मध्यप्रदेश में कपास का उत्पादन प्रमुख रूप से 7 जिलों में होता है, जिनमें खरगोन, धार, बड़वानी, खंडवा और बुरहानपुर में शामिल हैं जबकि अलीराजपुर और झाबुआ में भी कुछ इलाकों मे किसान कपास का उत्पादन करते हैं. लेकिन चौंकाने और चिंता करने वाला तथ्य ये है कि पिछले कुछ वर्षों से किसानों की रुचि इस सफेद सोने के उत्पादन से कम होती जा रही है.

अंचल में कपास की खेती में कम होती जा रही है. साल दर साल प्रदेश में कपास की खेती रकबा सिकुड़ रहा हैं. इसकी वजह है कि जहां एक ओर जहां कपास की फसल में लगने वाले कीट किसानों की मेहनत खराब कर देते हैं. तो वहीं फसलों को इन कीटों से बचाव के लिए इस्तेमाल होने वाले रासायनिक कीटनाशक और खादों से खेतों की मिट्टी में उर्वरकता लगातार और तेजी से कम हो रही है. जिसकी वजह से कपास का उत्पादन भी पहले की तुलना में निरंतर घट रहा है.

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अभी बाजार मे सिर्फ बिना ऑर्गेनिक कपास ही उपलब्ध हैं जिसके कारण इनसे बने कपड़े पहनने वालों को खुजली जैसी स्किन डिसीज हो जाती है, लेकिन अब किसान और कॉटन पहनने के शौक़ीन दोनों के लिए खुशखबरी हैं.

मध्य प्रदेश में इंदौर मालवा के कुछ जिलों में ही कॉटन का उत्पाद होता है कृषि भाषा मे उस क्षेत्र को कॉटन बेल्ट बोला जाता है. आंकड़े बताते हैं कि इन जिलों में पहले कपास की फसल का रकबा करीब 6.5 लाख हेक्टेयर हुआ करता था. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में किसानों ने कॉटन की खेती से दूरी बनाना शुरू कर दिया है. 2024 में ही इन 7 जिलों में किसानों ने महज 5. 44 हेक्टेयर भूमि पर ही कपास की फसल उगाई. जो पूर्व से लगभग एक लाख हेक्टेयर कम रही है. इसकी वजह है कि, किसानों के लिए कपास की फ़सल बेहद चिंताजनक होती जा रही.

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पिंक बॉलवर्म का खतरा

इसकी एक बडा कारण यह भी है कि कपास की इस फसल में एक ऐसा कीड़ा लग जाता है जो पूरी फ़सल को ही नष्ट कर देता है. इसे 'पिंक बॉलवर्म' कहते हैं. यह कीड़ा कपास के पौधे में लगने वाले कॉटन बॉल को पूरी तरहा खा लेता है, ऐसे में पूरी फ़सल के लिए मेहनत करने के बाद किसान की फसल में जब कॉटन बॉल बनती है, तो वह कीड़ा उसे खाकर समाप्त कर देता है. इससे बचने के लिए किसान खेतों में भारी मात्रा में पेस्टीसाइड ड़ालते है, लेकिन पिंक बॉलवर्म कुछ ही समय में दवा का रेसिस्टेंट बना लेता है और इस पर कीटनाशक दवा का कोई असर नहीं होता. उलटे ज़्यादा कीटनाशकों के उपयोग की वजह से मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म जीवाणुओं को नुकसान होता है. इससे मिट्टी की उर्वरकता में कमी आने लगती है. जिससे फसल की उपज पर भी असर पड़ता है, उत्पादन लगातार कम होता जाता है और किसान को नुक़सान होता है. इन्ही कारणों से समय के साथ साथ किसानों में कपास की खेती को लेकर रुचि कम होती जा रही है.

Cotton Cultivation: ऑर्गेनिक कपास के बीज

ग्वालियर के कृषि वैज्ञानिकों ने जगाई उम्मीद

किसानों की दिक्क़तों को महसूस करते हुए ग्वालियर स्थित राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने कपास की दो नई जैविक किस्मे तैयार की हैं. जिन्हें RVJK SGF-1 और RVJK SGF-2 नाम दिया गया है. ये दोनों ही बीज ऑर्गेनिक कपास तैयार करेंगे. इनके अलावा  3-4 वेराइटी अभी शोध के दौर मे हैं  जो जल्द तैयार होंगी.

कृषि विश्वविद्यालय के कुलगुरु अरविन्द कुमार शुक्ला ने बताया कि विश्वविद्यालय के अंतर्गत आने वाले खंडवा कृषि महाविद्यालय में मुख्य रूप से कॉटन पर रिसर्च की जाती है. यहीं ऑर्गेनिक कॉटन की दो वेराइटी तैयार की गई हैं.

प्रोफेसर शुक्ला के अनुसार अभी बाज़ार में उपलब्ध कॉटन में पेस्टिसाइड्स का उपयोग बहुत ज़्यादा मात्र में होता है जिसकी वजह से ये रासायनिक कीटनाशक का असर पौधे के जरिए कॉटन में भी आ जाता है और जो हमारे शरीर के लिए भी नुकसानदेह है. कई लोगों को अलग-अलग तरह से एलर्जी होती है और कई लोगों को उस कॉटन से बने कपड़े पहनने में कंफर्ट महसूस नहीं होता. इसलिए हमने रिसर्च शुरू करवाई की क्या विश्वविद्यालय नॉन-जीएम वेराइटी ऑर्गेनिक रूप से पैदा किया जा सकता हैं. इस पर लगातार शोध किया जा रहा है और हमने दो वैराइटी तैयार करने में सफलता भी हासिल   कर ली हैं. इनसे पूरी तरह ऑर्गेनिक कॉटन ही तैयार होगा. क्योंकि मार्केट में भी ऑर्गेनिक कॉटन की काफ़ी मांग है, ख़ास कर विदेशी मार्केट्स में.

Cotton Cultivation: ऑर्गेनिक कपास के बीज के सैंपल

कुलगुरु बताते हैं कि कॉटन की क्वालिटी का माप दो भागों में मापी जाती है. पहला तो इसके रेशों को ऑब्जर्व किया जाता है इनॉर्गैनिक कॉटन में फाइबर लेंथ 28mm होती है. जबकि ऑर्गेनिक कॉटन की लंबाई 29.5 मिमी तक होती है. इसके अलावा ऑर्गेनिक कपास की स्ट्रेंथ इनॉर्गैनिक कॉटन से ज़्यादा होती है. कपास में स्ट्रेंथ टेक्स (TEX) इकाई में मापा जाता है. इनॉर्गैनिक कॉटन की स्ट्रेंथ जहां 25-26 टैक्स होती है, वहीं ऑर्गेनिक कपास की स्ट्रेंथ 28-30 पर टैक्स होती है. इन दोनों ही दशा में ऑर्गेनिक कॉटन की गुणवत्ता इनॉर्गैनिक कपास से बेहतर है इसलिए इसे बढ़ावा दिया जा रहा है.

कुलगुरु प्रो शुक्ला बताते हैं कि विवि ने 'बायोरे एसोसिएशन' एनजीओ के साथ समझौता किया है. इसके तहत विवि और एनजीओ मिलकर करीब एक हज़ार किसानों के साथ काम कर रहे हैं. एनजीओ द्वारा किसानों को जैविक कॉटन के बीज उपलब्ध कराए जा रहे हैं. साथ ही किसानों को इस बात की भी समझाइश दी जाती है कि वे ऑर्गेनिक कॉटन के बीच होने के बाद खेतों में किसी प्रकार के रासायनिक खाद या कीटनाशकों का उपयोग नहीं करेंगे. क्योंकि जैविक बीज होने के बाद अगर रासायनिक खाद या रासायनिक कीटनाशक का उपयोग किया तो वे फंशन ऑर्गेनिक नहीं रहेगी इसके लिए किसानों को प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है.

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