अगर जलाए नहीं तो पराली का करें क्या ? शिवपुरी के किसानों ने बताया बड़े काम का तरीका

MP Samachar : शिवपुरी के किसानों की तरह बाकी के किसान भी पराली जलाने के बजाय इसके उपयोग के नए तरीके खोज कर अपना सकते हैं. ऐसा करने से हवा और मिट्टी दूषित नहीं होगी. 

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प्रतीकात्मक

हर साल सर्दियां आते ही एक मुद्दा काफी गरमा जाता है, वो है पराली जाने का मुद्दा... अमूमन किसानों पर ये आरोप लगाया जाता है कि वे अपनी फसल काटने के बाद बची हुई पराली को जला देते हैं जिससे वायु प्रदूषण बढ़ता है और शहरों का AQI खतरनाक स्तर पर पहुंच जाता है. लेकिन मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले के किसान ऐसे है जो ऐसे आरोपों को ख़ारिज करने का काम कर रहे हैं. दरअसल, शिवपुरी के किसान पराली जलाने की परंपरा से हटकर नई राह पर चल रहे हैं. ये किसान अपनी पूरी कोशिश करते हैं कि पराली को जलाए बिना किसी दूसरे तरीके से इस्तेमाल में लाया जाए. जिससे कि वायु प्रदूषण भी न हो और पराली भी इकट्ठा न हो. जानकारी के लिए बता दें कि फसलों की कटाई के बाद जो डंठल और सूखे अवशेष बच जाते हैं. उसे ही पराली कहा जाता है. ये मुख्य तौर से धान और गेहूं की फसलों से निकलता है. किसान इसे खेतों में जला देते हैं क्योंकि इसे हटाना समय और पैसे दोनों में महंगा पड़ता है.

.... लेकिन शिवपुरी के किसानों कहना है कि पराली जलाने से न सिर्फ खेतों की उर्वरकता घटती है बल्कि पर्यावरण पर भी खराब असर पड़ता है. यहां के किसान पराली का उपयोग मवेशियों के चारे के रूप में करते हैं. जो पराली बच जाती है.... उसे खाद बनाकर खेतों में डालते हैं जिससे मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार होता है. शिवपुरी के किसानों का कहना है कि पराली का सही इस्तेमाल करने से फायदा ही फायदा है. चारे के रूप में इसका इस्तमाल पशुओं के पोषण के लिए अच्छा है और खाद बनाने से खेत को अतिरिक्त पोषण मिलता है.

आखिर किसान क्यों जलाते हैं पराली?

पराली जलाने के मामले आज भी पूरी तरह खत्म नहीं हुए हैं. ICAR की रिपोर्ट के मुताबिक, 15 सितंबर से 18 नवंबर 2024 के बीच देशभर में 27,319 मामले सामने आए. इनमें सबसे ज्यादा घटनाएं मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले से दर्ज की गई जहां 489 मामले सामने आए. जबलपुर में 275 और ग्वालियर, नर्मदापुरम्, सतना और दतिया में 150-150 मामले दर्ज हुए. ये आंकड़ा पंजाब और हरियाणा जैसे कृषि प्रधान राज्यों से भी ज़्यादा है. सवाल उठता है कि किसान पराली क्यों जलाते हैं? दरअसल, पराली को हटाने में ज्यादा श्रम और समय लगता है. छोटे किसान अक्सर संसाधनों की कमी के चलते इसे जलाना ही आसान रास्ता समझते हैं... क्योंकि पराली को जलाने में मेहनत और समय दोनों कम लगता है. लेकिन आपको बता दें कि ऐसा करने से कई नुकसान होते हैं :

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पराली जलाने से होने वाले नुकसान

  • 1. प्रदूषण

पराली जलाने से भारी मात्रा में धुआं और हानिकारक गैसें निकलती हैं जो हवा को जहरीला बना देती हैं.

  • 2. स्वास्थ्य

गंदी हवा के चलते सांस लेने में दिक्कत, अस्थमा, और अन्य बीमारियां बढ़ जाती हैं.

  • 3. मिट्टी ख़राब

पराली जलाने से मिट्टी में मौजूद लाभदायक सूक्ष्मजीव नष्ट हो जाते हैं.

  • 4. पशुओं को खतरा

पराली जलाने से खेतों के आस-पास के छोटे जीव-जंतुओं की मौत हो जाती है.

MP हाईकोर्ट बार एसोसिएशन का सख्त रुख

गौरतलब है कि पराली जलाने के बढ़ते मामलों को देखते हुए MP High Court Bar Association ने किसानों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है. एसोसिएशन ने फैसला किया है कि जो किसान पराली जलाने के मामलों में फंसे होंगे उनकी ओर से कोई वकील पैरवी नहीं करेगा.

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अगर जलाए नहीं तो पराली का करें क्या ? शिवपुरी के किसानों से सीखें

  • 1. चारा

पराली से पशुओं के लिए चारा तैयार किया जा सकता है.

  • 2. खाद

पराली से कम्पोस्ट खाद बनती है जो खेतों को पोषण देती है.

  • 3. पेपर उद्योगों

इससे पेपर और कूट जैसे अन्य उत्पाद बनाए जा सकते हैं.

  • 4. फ्यूल

पराली से बायोगैस और जैविक ईंधन तैयार किया जा सकता है.

शिवपुरी के किसानों की तरह बाकी के किसान भी पराली जलाने के बजाय इसके उपयोग के नए तरीके खोज कर अपना सकते हैं. ऐसा करने से हवा और मिट्टी दूषित नहीं होगी. अगर पराली को जलाने की बजाय सही तरीके से उपयोग किया जाए, तो यह बेहद फायदेमंद हो सकती है.

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