ग्वालियर में पाकिस्तानी बहू,पति की मौत के बाद नागरिकता के लिए संघर्षों का किया सामना, अब CAA से जगी उम्मीद

प्रेमा देवी कहती हैं कि अब यह नया कानून आया है तो फिर आशा की किरण दिखी है. अब ऐसा लग रहा है कि उनकी नागरिकता मिलने की राह में आ रही बाधा हट जाएगी. वे कहती हैं कि बहुत खुशी मिल रही है कि जॉब भी मिल सकेगी. बच्चों को भी जॉब मिल सकेगी. मेरे लिए इंडिया में अकेले रहना आसान हो जाएगा. मैं बहुत खुश हूं कि इंडिया में ऐसा कुछ हो रहा है.

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CAA rules in India: भारत सरकार (Government of India) ने देश में CAA कानून यानी कि नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (Citizenship Amendment Act) लागू कर दिया है. इसको लेकर सियासी बयानबाजी भी चल रही है. कई राजनीतिक दल (Political Party) इसे अच्छा कदम मान रहे हैं. वहीं इस कानून के लागू होने के बाद उन परिवारों के चेहरों पर भी खुशी है, जो लंबे समय से दूसरे देश से आकर भारत में निवास कर रहे है, लेकिन उन्हें भारतीय नागरिकता (Indian Citizenship) नहीं मिल पाई है. जिसके कारण उन्हें कई तरह की समस्याओं से दो-चार होना पड़ रहा है. आज एनडीटीवी (NDTV) आपके सामने ऐसी ही एक संघर्ष की दास्तां लेकर आया है. पाकिस्तान के सिंध प्रांत (Sindh Province of Pakistan) से ग्वालियर में बहू बनकर आईं प्रेमा देवी के संघर्ष और परेशानियों की कहानी सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं. अचानक उनके प्रोफेसर पति के निधन के बाद नागरिकता न होने का जो दंश उनको झेलने पड़ रहे हैं उनको सुनना भी परेशान कर देता है.

पहले सुनिए प्रेमा देवी ने क्या कुछ कहा?

दो बच्चों के साथ रहती हैं माया देवी

ग्वालियर में दो बच्चों के साथ रहने वाली प्रेमा देवी मूलत: पाकिस्तान के सिंध प्रांत की रहने वाली हैं. वर्ष  2012 में उनकी शादी ग्वालियर के विश्व प्रसिद्ध खेल शिक्षण संस्थान लक्ष्मीबाई नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिकल एजुकेशन (Lakshmibai National Institute of Physical Education) में एसोसिएट प्रोफेसर पुष्पेंद्र पुरुषवानी से हुई थी. उनके पति टेबल टेनिस के बड़े खिलाड़ी भी थे. शादी के बाद उनके दो बेटे भी हुए. सब कुछ सामान्य चल रहा था. थोड़ा वीजा रिनुअल (Visa Renewal) की प्रॉब्लम आती थी, लेकिन पति के शासकीय अफसर होने के कारण वह आसानी से हो जाता था. इनको नागरिकता मिलने के लिए दस साल रहने की शर्त थी, लेकिन साल 2021 में हार्ट अटैक (Heart Attack) से उनके पति डॉक्टर पुष्पेंद्र पुरुषवानी की असमायिक मौत हो गई थी.

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Citizenship Amendment Act: ग्वालियर में रहने वाली पाकिस्तान की बहू प्रेमा देवी

पति की मौत के बाद पासपोर्ट-वीजा को लेकर संघर्ष

प्रेमा देवी बताती हैं कि पति की मौत जब हुई उसके बाद उनका भारतीय नागरिक न होना अभिशाप बन गया. NDTV के साथ इस दौरान चल रहे अपने संघर्ष की कहानी सुनाते हुए माया देवी की आंखें भर आती हैं.

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प्रेमा देवी बताती है कि भारत में सिटीजनशिप पाने के लिए अप्लाई करने के लिए दस साल रहना अनिवार्य होता है. हमें सात साल हो चुके थे, इसके कारण कोई बड़ी दिक्कत नहीं थी, बच्चे छोटे थे, सोचा तीन साल बाद अप्लाई करके सिटीजनशिप ले लेंगे, लेकिन पति की मौत से वैसे भी मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था, पर असली दिक्कत शुरू सिटीजनशिप की  हो गई थी. कोरोनाकाल के कारण हमारा वीजा रिनुअल नहीं हुआ. बाद में हम गए तो वहां कहा गया कि आप अकेली रहती है इसलिए यह अब रिन्यू नहीं होगा.

वीजा रीन्यू नहीं हुआ और पाकिस्तानी पासपोर्ट एक्सपायर हो गया

प्रेमा देवी आगे बताती हैं कि इस दौरान हमारा पाकिस्तान में बना पासपोर्ट (Pakistani Passport) भी एक्सपायर हो गया. वहां जाने के लिए बच्चों के पासपोर्ट चाहिए थे. हमने उसके लिए अप्लाई किया तो उन्होंने यह कहते हुए रिजेक्ट कर दिया कि आप पाकिस्तानी नागरिक हैं. आपके पति है नहीं? हम पासपोर्ट किस आधार पर बनाएं? इस तरह परोक्ष रूप से पासपोर्ट डिपार्टमेंट ने उनके पति के डेथ सर्टिफिकेट पर ही सवाल खड़े कर दिए. तमाम परेशानी झेली भोपाल के अनेक चक्कर काटे और दिल्ली में कुछ नेकदिल अफसरों ने उनका केस समझकर मदद की तब जाकर बच्चों के पासपोर्ट बने और वे पाकिस्तान जाकर अपने पासपोर्ट को रिन्यू करवाकर वापस लौटीं.

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अनुकंपा नियुक्ति न मिलने से आर्थिक संकट में फंसी

प्रेमा देवी कहती है कि पति के रहते परिवार अच्छी जिंदगी जी रहा था, लेकिन अचानक उनके देहांत के बाद सबसे बड़ी समस्या पैदा हो गई घर चलाने की. उन्होंने LNIPE में अपने पति के स्थान पर नियमानुसार मिलने वाली अनुकंपा नियुक्ति के लिए अप्लाई किया तो फिर सिटिजनशिप आड़े आ गयी. वहां यह कहते हुए उनके आवेदन को नहीं देखा गया, क्योंकि मैं भारतीय नागरिक नहीं हूं और नियमानुसार सिर्फ भारतीय नागरिक को ही शासकीय नौकरी या अनुकंपा नियुक्ति दी जा सकती है. पति की मौत के बाद मिले फंड और परिवार के लोगों के सहयोग से जैसे-तैसे परिवार का चला कर पा रही हूं.

CAA आने के बाद उम्मीद जागी

प्रेमा देवी कहती हैं कि अब यह नया कानून आया है तो फिर आशा की किरण दिखी है. अब ऐसा लग रहा है कि उनकी नागरिकता मिलने की राह में आ रही बाधा हट जाएगी. वे कहती हैं कि बहुत खुशी मिल रही है कि जॉब भी मिल सकेगी. बच्चों को भी जॉब मिल सकेगी. मेरे लिए इंडिया में अकेले रहना आसान हो जाएगा. मैं बहुत खुश हूं कि इंडिया में ऐसा कुछ हो रहा है. वे कहती है इस व्यवस्था का लाभ सभी जाति और धर्म वालों को मिलना चाहिए, क्योंकि समस्याएं सबको एक जैसी फेस करनी होती हैं.

ग्वालियर में 300 से ज्यादा लोग इस पीड़ा से हैं ग्रस्त

प्रेमा देवी ग्वालियर में नागरिकता की समस्याओं से जूझने वालीं अकेली नहीं हैं, बल्कि केवल सिंधी समाज के लगभग 80 परिवारों के 300 से ज्यादा ऐसे परिवार है जो पाकिस्तान छोड़कर आये हैं.

इनके लिए बीते अनेक दशकों से विभिन्न स्तरों पर नागरिकता देने और अन्य समस्याओं के निराकरण करने के लिए संघर्ष कर रहे सिंधी समाज के नेता कमल माखीजानी कहते है कि गवलियर में ऐसे 80 परिवारों के 300 से ज्यादा लोग है जो नागरिकता की समस्या से जूझ रहे हैं.

माखीजानी कहते हैं कि ये सब शरणार्थी के टैग के साथ रहते है. इससे अनेक दिक्कतें हैं मसलन उन्हें हर बार लॉन्ग टाइम वीजा लेना पड़ता है, पासपोर्ट रिन्यू कराने पाकिस्तान जाना पड़ता है, उनका न एकाउंट खुलता है, न लाइसेंस बनता है, न समग्र आईडी बनती है, इनके अभाव में बच्चों का स्कूल में एडमिशन कराने तक में भी कठिन समस्याओं से जूझना पड़ता है. अब इस नए कानून के लागू होने से इनको इन सारी समस्याओं से मुक्ति मिलने वाली है.

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