Child marriage: आपने अक्सर सुना होगा -हमारा देश मंगल ग्रह और चांद पर पहुंच चुका है और आप इतने पिछड़ेपन की बात करते हो. आपको ये लाइन घिसी पिटी लग सकती है लेकिन जब आप मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से सटे राजगढ़ में पहुंचेंगे तो आपको लगेगा अब भी हम आदिम युग की कुप्रथा को ढो रहे हैं...जी हां राजगढ़ में 50 गांव ऐसे हैं जहां अब भी बच्चियों की गर्भ में ही रिश्ते तय हो जाते हैं...जब वो 6 माह की होती है तो उसकी सगाई हो जाती है और जब वो 10-12 साल की होती है तो उसे शादी के बंधन में बांध दिया जाता है. हद तो ये है कि यदि कभी कोई इस बंधन से बाहर आना चाहे तो लड़की के परिजनों को लाखों रुपये बतौर मुआवजा देना पड़ता है. स्थानीय लोग इसे झगड़ा-नातरा प्रथा कहते हैं...NDTV संवाददाता अजय शर्मा ने मौके पर जाकर झगड़ा-नातरा प्रथा के शिकार लोगों को करीब से देखा. पता चला है कि यहां के 50 गांवों में 700 से ज्यादा बच्चों का बचपन इस प्रथा की जंजीरों में बंधा हुआ है.
सगाई और शादी के अलग-अलग कड़े
राजगढ़ जिले में 622 ग्राम पंचायत है. जहां बच्चों का बचपन छीन लिया जाता है और उनके संपनों को जंजीरों में जकड़ दिया जाता है. इन सुनी-सुनाई बातों की तस्दीक करने के लिए हम पहुंचे राजगढ़ जिले के जैतपुर गांव में. इस गांव में चार पहिया वाहन चलने की जगह नहीं है. यानी जब जरुरत हो तो यहां तक एंबुलेंस भी नहीं पहुंच पाती है. लिहाजा हमें भी यहां बाइक से ही जाना पड़ा. यहां हमारी मुलाकात सबसे पहली मुलाकात हुई रामा बाई से. वे 40 साल की हैं और उनकी शादी 30 साल पहले हुई थी. अब भी उनके पैरो में दो कड़े हैं. एक सगाई के और दूसरा शादी की. दूसरी लड़की मिली गीता. उसकी उम्र अभी 22 साल की है और उसकी सगाई 2 साल की उम्र में हुई थी और शादी 16 साल की उम्र में. फिलहाल गीता एक बच्ची की मां है और उसक पर दबाव बनाया जा रहा है कि वो भी अपनी बेटी की सगाई कर दे. लेकिन गीता कहती है कि जो मैंने झेला है वो मैं बच्ची को झेलने नहीं दूंगी. रामा और गीता बताती हैं कि उनके यहां महिला गर्भवती होती है तभी रिश्ता तय हो जाता है. जब 6 महीने का गर्भ होता है तभी सब तय हो जाता है. कहा जाता है कि यदि तुम्हारा लड़का होगा या हमारी लड़की होगी तो हम रिश्ता करेंगे. कई बार नशे की हालत में ऐसे रिश्ते तय होते हैं.
कड़ा पहने से पैर दुखता है, पैरेंट्स कहते हैं- परंपरा है
अपनी रिपोर्टिंग के दौरान हमें कई ऐसे नाबालिग मिले जो इस कुप्रथा के शिकार मिले. कोई पढ़ना चाहता है तो कोई खेलना चाहता है लेकिन उनके सपने कभी पूरे नहीं होते. लड़कियां तो छोड़िए कई लड़कों की जिंदगी भी यहां बाल विवाह की प्रथा से ही तय होती है. यहां घूमने के दौरान हमें 12-15 साल के कई ऐसे नाबालिग मिले जिनके रिश्ते तय हो चुके थे. ये सभी सगाई की बेड़ियों में जकड़े हुए हैं. किसी की मंगेतर गांव में रहती है तो किसी की दूसरे गांव में. जानकार कहते हैं ये प्रेम नहीं बल्कि मजबूरी का सौदा है. ऐसा ही एक बच्चा हमें मिला जिसका नाम अशोक तंवर है. चर्चा करने पर वो शर्माते हुए कहता है कि मैं 10 साल का हो गया हूं तो मम्मी-पापा ने मेरी सगाई कर दी है. जिसके बाद मुझे मिठाई खिलाई गई. मैं अभी सगाई नहीं करना चाहता था. मैं शादी भी नहीं करना चाहता हूं. मैं अभी पांचवीं में पढ़ता हूं और डॉक्टर बनना चाहता हूं. एक बच्ची जिसने पांव में कड़ा पहन रखा है वो अपने मां-पिता से कहा- कड़ा निकलवा दो पैर दुखता है. लेकिन उसके मम्मी-पापा कहते हैं- परंपरा है, पहने रहो. कई बार बच्चों को बताया जाता है ये सुंदरता का प्रतीक है. लड़कियों को कहा जाता है ये शोभा है. गांव की बहुत सारी लड़कियां पहनती हैं.
गांव वाले बोले- ये हमारी मजबूरी है
जब गांव वालों से पूछो तो वे इसे मजबूरी बताते हैं. ये बताते हैं कि बड़े होने पर शादी की लागत से बचने का ये तरीका है. इससे कर्ज नहीं लेना पड़ता. जैतपुर गांव के उप सरपंच बताते हैं कि ज्यादातर लोग शराब के नशे में रिश्ता तय करते हैं. बच्ची को कड़ा पहना देते हैं और 10 हजार रुपये ले लेते हैं. गांव के रमेश, रवि और दिनेश भी सरपंच से इत्तेफाक रखते हैं. वे कहते हैं कि कर्जों से बचने के ये अच्छा उपाय है.
46 फीसदी की शादी 18 साल से पहले !
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (एनएफ़एचएस-5) की रिपोर्ट के मुताबिक राजगढ़ ज़िले में 52 फ़ीसदी महिलाएं अनपढ़ हैं, और 20-24 आयु वर्ग की कुल लड़कियों में से 46 फ़ीसदी ऐसी हैं जिनकी शादी 18 साल से पहले की जा चुकी है यानी कि इनका बाल विवाह हो चुका है. परेशानी की बात ये है कि राजस्थान और मध्यप्रदेश के कुछ इलाकों में अगर कोई बिटिया इस बंधन से निकलना चाहे तो उन्हें और उनके परिवार को सामाजिक पंचायतों में पेश होना पड़ता है.ये पंचायतें शादी तोड़ने की एवज में उन पर ‘झगड़ा' (जुर्माना) चुकाने का फरमान जारी करती हैं. कभी विधवा और किसी महिला को छोड़ देने पर समाज में लौटने की नाता या नातरा प्रथा भी इसमें जुड़ गई है. इसलिए अब इस प्रथा को झगड़ा नातरा प्रथा कहते हैं. लेकिन कुल मिलाकर ये प्रथा बच्चों की आजादी को खत्म करता है और शासन-प्रशासन को इस पर एक्शन लेना ही चाहिए.
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