Chhatarpur News: मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में स्वास्थ्य सेवाओं की लचर स्थिति ने एक और गरीब की जान ले ली। एंबुलेंस न मिलने के कारण हलकन अहिरवार नामक मरीज को ई-रिक्शा में ऑक्सीजन सिलेंडर के साथ घर लाना पड़ा, जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद अब शासन-प्रशासन सवालों के घेरे में आ गया है.
परिजनों के अनुसार हलकन अहिरवार पिछले चार–पांच माह से बीमार थे. उन्हें सांस लेने में गंभीर समस्या थी. उनका एक फेफड़ा खराब हो गया था, उन्हें 25 सितंबर को छतरपुर जिला अस्पताल से ग्वालियर रेफर किया गया था. इस दौरान परिजनों को न केवल कई बार निजी एंबुलेंस का सहारा लेना पड़ा, बल्कि महंगे दवाइयों और उपकरणों का खर्च भी खुद उठाना पड़ा.
मृतक की बेटी केशकली अहिरवार का आरोप है कि आयुष्मान कार्ड होने के बावजूद अस्पताल में सिर्फ कुछ ही दवाएं मिलीं, बाकी सब कुछ मेडिकल स्टोर से खरीदना पड़ा। उन्होंने बताया कि ₹5,000 में दो ऑक्सीजन सिलेंडर खरीदे. ₹300-₹250 प्रतिदिन सिलेंडर भरवाने का खर्च आया. ₹1,200 ई-रिक्शा में लाने-ले जाने में खर्च किए और ₹1,200 में रेगुलेटर खरीदा. इसके अलावा ग्वालियर से लौटते वक्त ₹7,000 प्राइवेट एंबुलेंस में लगे. उन्होंने यह भी कहा कि दो महीने से मजदूरी बंद है और अब तक इलाज पर लगभग ₹1.5 लाख रुपये खर्च हो चुके हैं.
डॉक्टरों और प्रशासन पर आरोप
केशकली का कहना है कि जब मरीज की हालत ज्यादा बिगड़ी तो छतरपुर जिला अस्पताल में भर्ती करने से मना कर दिया गया और ग्वालियर रेफर किया गया, जहां दो दिन बाद डॉक्टरों ने इलाज से इंकार कर दिया. वो ग्वालियर से प्राइवेट एम्बुलेंस से छतरपुर जिले के राजनगर थाना क्षेत्र पाय गांव अपने घर लेकर आई. अचानक तबीयत खराब हुई तब एम्बुलेंस नहीं मिल सका और ई-रिक्शा से बमीठा के एक प्राइवेट डॉक्टर को दिखाने गई थी, जिसका लौटते वक्त खजुराहो में वीडियो कैमरे में कैद हुआ.
ग्राम पंचायत पाए के सरपंच प्रतिनिधि नर्मद पटेल का भी आरोप है कि हलकन अहिरवार की मौत एंबुलेंस न मिलने और इलाज में देरी की वजह से हुई है. उन्होंने आश्वासन दिया कि वे शासन से पीड़ित परिवार को आर्थिक मदद दिलाने का प्रयास करेंगे.
परिजनों की मांग और नाराज़गी
मृतक के भतीजे कैलाश अहिरवार ने भी आरोप लगाया कि सरकारी एंबुलेंस सेवा सिर्फ एक बार उपलब्ध करवाई जाती है, उसके बाद मदद नहीं मिलती. अस्पताल में पहले ऑक्सीजन दी गई, लेकिन बाद में देने से मना कर दिया गया. मजबूरी में परिवार को निजी सिलेंडर का इंतज़ाम करना पड़ा. सरकार की योजनाएं केवल कागज़ों में हैं और असली लाभ गरीबों तक नहीं पहुंचता. इलाज के नाम पर डॉक्टर और अस्पताल कर्मी ही अधिकतर लाभ उठा लेते हैं.
हलकन अहिरवार की मौत ने छतरपुर जिले की स्वास्थ्य सेवाओं की गंभीर खामियों को उजागर कर दिया है. वायरल वीडियो और परिजनों के आरोपों के बावजूद अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है. सवाल यह है कि जब सरकारी योजनाएं ज़रूरतमंदों तक नहीं पहुंचतीं, तो आम जनता का भरोसा किस पर टिकेगा?
खर्च का ब्योरा
सिलेंडर: ₹5,000
रोज़ाना रिफिलिंग: ₹300/₹250
रेगुलेटर: ₹1,200
रिक्शा: ₹1,200
प्राइवेट एंबुलेंस: ₹7,000
कुल अनुमानित खर्च: ₹1.5 लाख
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