'डर लगता है, अधीक्षक के पति से बचा लो', SDM से गुहार लगाने पहुंची छात्रावास की बेटियां

सोचिए जिस उम्र में बच्चियां किताबों और सपनों के साथ अपने भविष्य की नींव रख रही हों, उस उम्र में अगर उन्हें सुरक्षा और सम्मान के बजाय डर, धमकी और जली हुई रोटियां मिले तो यह सिर्फ लापरवाही नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम पर सवाल है. धार जिले के कुक्षी तहसील से निकली ये तस्वीरें दिल दहलाने वाली हैं. कस्तूरबा गांधी छात्रावास की 100 से ज्यादा बालिकाएं बारिश और कीचड़ से लथपथ रास्तों पर 4 किलोमीटर पैदल चलकर एसडीएम दफ्तर जा पहुंचीं.

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Kasturba Gandhi Hostel Dhar News: सोचिए जिस उम्र में बच्चियां किताबों और सपनों के साथ अपने भविष्य की नींव रख रही हों, उस उम्र में अगर उन्हें सुरक्षा और सम्मान के बजाय डर, धमकी और जली हुई रोटियां मिले तो यह सिर्फ लापरवाही नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम पर सवाल है. धार जिले के कुक्षी तहसील से निकली ये तस्वीरें दिल दहलाने वाली हैं. कस्तूरबा गांधी छात्रावास की 100 से ज्यादा बालिकाएं बारिश और कीचड़ से लथपथ रास्तों पर 4 किलोमीटर पैदल चलकर एसडीएम दफ्तर जा पहुंचीं. वजह? अधीक्षिका और उनके पति पर लगे गंभीर आरोप.

भूख और खौफ के साए में छात्राएं

ये बच्चियां 9वीं से 12वीं तक की हैं. इन्हें भरोसा था कि छात्रावास उनका घर है, जहां शिक्षा और सुरक्षा दोनों मिलेगी. लेकिन आरोप है कि अधीक्षिका और उनके पति बच्चियों को डराते-धमकाते हैं. खाने के नाम पर जली हुई रोटियां तक दी जाती हैं, जरूरी सुविधाओं के लिए तरसना पड़ता है. ऐसे माहौल में पढ़ाई की बात करना ही बेइमानी लगती है. बच्चियों का धैर्य आखिरकार जवाब दे गया और सब मिलकर पैदल मार्च करते हुए एसडीएम कार्यालय पहुंचीं.

पहले भी उठाई आवाज़, मिला था आश्वासन

गौर करने वाली बात यह है कि यह पहला मौका नहीं है. अभी आठ दिन पहले भी छात्राएं शिकायत लेकर एसडीएम दफ्तर पहुंची थीं. तब एसडीएम विशाल धाकड़ ने जांच कर कार्रवाई का आश्वासन दिया था और मामला जिला शिक्षा विभाग और कलेक्टर तक भेजा गया था. लेकिन वादे सिर्फ कागज़ पर ही रह गए. समस्या जस की तस बनी रही और बच्चियों को मजबूरी में दोबारा वही रास्ता चुनना पड़ा. सवाल यही है, आखिर छात्राओं को कितनी बार सड़कों पर उतरना पड़ेगा, ताकि उनकी पुकार प्रशासन के कानों तक पहुंचे?

इस बार दी आंदोलन की चेतावनी

आज जब यह मामला दोबारा सामने आया तो छात्राओं के साथ कई अभिभावक भी एसडीएम कार्यालय पहुंचे. जयस कार्यकर्ता रविराज बघेल ने भी प्रशासन को कठघरे में खड़ा किया और चेतावनी दी कि अगर चार दिन में स्थाई अधीक्षिका की नियुक्ति नहीं हुई तो आंदोलन होगा. दबाव बढ़ने पर एसडीएम ने फिलहाल एक अन्य शिक्षिका को अस्थायी प्रभार सौंपने का आदेश दिया है. साथ ही रोजाना महिला अधिकारियों द्वारा छात्रावास निरीक्षण की व्यवस्था की गई है.

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क्या इस बार मिलेगा स्थायी समाधान?

लेकिन असली सवाल तो ये है, क्या ये इंतज़ाम स्थायी समाधान हैं या फिर महज़ औपचारिकता? क्या उन बच्चियों की चीखें, जो अपने ही छात्रावास में प्रताड़ना झेल रही हैं, अब भी सिर्फ फाइलों में दर्ज होकर रह जाएंगी? कस्तूरबा गांधी के नाम से चलने वाले छात्रावास की सच्चाई यह है कि यहां बच्चियां खुद गांधीगिरी करने पर मजबूर हैं. अब देखना होगा कि जिला प्रशासन वाकई जागता है या फिर इन मासूम आवाज़ों को फिर से बारिश और कीचड़ के बीच पैदल मार्च करना पड़ेगा?

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