यूनियन कार्बाइड के 337 मीट्रिक टन रासायनिक कचरे का होगा निपटारा, भोपाल से पीथमपुर तक बनाया जाएगा ग्रीन कॉरिडोर

Union Carbide Waste Disposal: मध्य प्रदेश में हुए भोपाल गैस कांड के 40 साल बाद यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के गोदाम में रखे 337 मीट्रिक टन जहरीले कचरे को हटाने की प्रक्रिया अब शुरू हुई है. जानें कैसे होगा जहरीले कचरे का निपटारा...

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Union Carbide Waste Disposal: मध्य प्रदेश में हुए भोपाल गैस कांड के 40 साल बाद यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के गोदाम में रखे 337 मीट्रिक टन जहरीले कचरे को हटाने की प्रक्रिया अब शुरू हुई है. रविवार सुबह विशेषज्ञों की टीम मौके पर पहुंची और कड़े सुरक्षा घेरे में कचरे को 12 कंटेनर में भरने की प्रोसेस शुरू की. इसका परिवहन भोपाल से पीथमपुर तक बनाए गए ग्रीन कॉरिडोर के माध्यम से किया जाएगा. संचालक गैस राहत एवं पुनर्वास स्वतंत्र कुमार सिंह ने बताया कि यह कार्रवाई केंद्र सरकार की ओवर साइट कमेटी के निर्देशों और सुपरविजन के अनुसार की जा रही है. 

मध्यप्रदेश में औद्योगिक इकाइयों में निकलने वाले रासायनिक और अन्य अपशिष्ट के निष्पादन के लिये धार जिले के पीथमपुर में एकमात्र प्लांट है, जहां पर भस्मीकरण से अपशिष्ट पदार्थों का विनष्टीकरण किया जाता है. यह प्लांट सेन्ट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) के दिशा-निर्देशानुसार संचालित है. सुरक्षा मानकों का ध्यान रखते हुए 10 मीट्रिक टन अपशिष्ट विनिष्टिकरण का ट्रॉयल रन-2015 में किया गया. 

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शेष बचे 337 मीट्रिक टन रासायनिक अपशिष्ट पदार्थों का निष्पादन सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट द्वारा समय-समय पर पारित आदेशों के अनुक्रम में तथा उच्च न्यायालय द्वारा गठित ओवर साइट कमेटी/टास्क फोर्स कमेटी के निर्णय 19 जून 2023 के अनुक्रम में किया जा रहा है. पीथमपुर में अत्याधुनिक बुनियादी ट्रीटमेंट, स्टोरेज एवं डिस्पोजल फेसिलिटी (टीएसडीएफ) अनुसार वर्ष-2006 से अन्य संस्थाओं के अपशिष्ट का भस्मीकरण ठीक उसी प्रकार से किया जा रहा है, जैसे लगातार क्रियाशील यूसीआईएल में अपशिष्ट संग्रहित हैं. 

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देश में पीथमपुर जैसे 42 संयंत्र 

री-सस्टेनेबिलिटी लिमिटेड की सहायक कंपनी PIWMPL (पीथमपुर इंडस्ट्रियल वेस्ट मेनेजमेंट प्रा.लि.) द्वारा संचालित, यह सुविधा भस्मीकरण, लैंडफ़िल प्रबंधन और उत्सर्जन नियंत्रण के लिए उन्नत तकनीकों का उपयोग कर अपशिष्टों का निष्पादन करती है. संचालक सिंह ने बताया कि सीपीसीबी द्वारा 2015 में किये गये यूसीआईएल अपशिष्ट विनिष्टिकरण के ट्रायल रन के दौरान तथा बाद में उत्सर्जन मानक, निर्धारित राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप पाये गये. यूसीआईएल कचरे के निपटारे के बाद किसी तरह के हानिकारक तत्व पानी या वायु में नहीं पाये गये तथा इनसीनेरेशन (भस्मीकरण) के पश्चात शेष बचे रेसीड्यूज़ का निष्पादन टीएसडीएफ (ट्रीटमेंट स्टोरेज एंड डिस्पोजल फेसेलिटी) में लैण्ड फिल के माध्यम से डबल कम्पोजिट लाइनर सिस्टम से किया गया. वहीं किसी भी प्रकार का दुष्प्रभाव पर्यावरण एवं स्वास्थ्य पर नहीं पाया गया. सिंह ने बताया कि यह सीपीसीबी का कथन है, जिसकी पुष्टि संबंधित अधिकारियों द्वारा की गई है. उक्त स्थिति से सर्वोच्च न्यायालय को भारत सरकार द्वारा शपथ पत्र द्वारा अवगत कराया गया है.

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इन बातों का किया खंडन 

संचालक सिंह ने बताया कि समाचार पत्र में प्रकाशित समाचार पीथमपुर स्थित प्लांट क्षेत्र में पास के नाले में प्रदूषित लाल पानी आने और उससे लोगों को स्किन इंफेक्शन, श्वांस संबंधी परेशानी के संबंध में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, भोपाल के स्किन एक्सपर्टस् और आईसीएमआर के शोध वैज्ञानिकों तथा विभाग के संबंधित चिकित्सकों की टीप गठित कर संबंधित 12 गांवों में ‘स्वास्थ्य सर्वेक्षण' कराया गया. जांच के बाद प्रस्तुत रिपोर्ट अनुसार उक्त गांव में चर्म रोग (1.77) एवं श्वसन रोग यूआरटीआई 1.14 प्रतिशत भारत सरकार का राष्ट्रीय डेटा चर्मरोग 7.9-60 प्रतिशत एवं श्वसन रोग 40-50 प्रतिश से कम है. इससे यह प्रतीत होता है कि उक्त बीमारियों का प्रतिशत सामान्य स्तर पर ही है. रिपोर्ट में दिये गये तथ्य अनुसार प्रकाशित रिपोर्ट भ्रामक एवं निराधार है. 

जांच के लिए भेजे गए थे पानी के सैंपल

संचालक सिंह ने बताया कि क्षेत्रीय निदेशक (मध्य), केन्द्रीय प्रदूषण निवारण बोर्ड, भोपाल द्वारा मेसर्स पीथमपुर इंडस्ट्रीयल वेस्ट मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड के आस-पास के 5 जल नमूने जांच हेतु लिये गये, जिसके नमूनों की विश्लेषण रिपोर्ट के आधार पर दिनांक 25-12-2024 को प्राप्त प्रतिवेदन अनुसार लैण्डफिल के समीप स्थित 2 ओपनवेल (कुंआ) (रिपोर्ट WW24.25-188.189) क्रमशः ग्राम-तारपुरा एवं बुकनेश्वर मंदिर के समीप जल नमूनों में कुछ प्रचालक जैसे रंग, क्लोराइड, हार्डनेस, सल्फेट, फ्लोराईड, टोटल डिसॉल्व्ड सॉलिड, पीने के पानी के मानक आईएस 10500 की परमीसिबिल लिमिट से अधिक पाये गये. उक्त पैरामीटर्स सामान्यतः भू-जल की गुणवत्ता प्रदर्शित करते हैं एवं ये प्रचालक टीएसडीएफ से संबंधित प्रतीत नहीं होते हैं. उक्त नमूनों में भारी धातु नगण्य पाये गये. इसका यूसीआईएल कचरे से कोई संबंध नहीं है. ऐसा संबंधित वैज्ञानिकों द्वारा अवगत कराया गया है. 

कब बनी थी समिति? 

संचालक सिंह ने बताया कि यूसीआईएल अपशिष्ट के विनिष्टिकरण के लिये केन्द्र सरकार स्तर पर ओवर साइट कमेटी का गठन जुलाई 2010 में केन्द्रीय मंत्री पर्यावरण एवं वन क्लाइमेंट चेंजेस की अध्यक्षता में हुआ था, जिसमें राज्य शासन के पर्यावरण मंत्री एवं भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास मंत्री सम्मिलित हैं. इसमें पर्यावरण एक्सपर्ट तथा भारत सरकार कॉउंसिल फॉर साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च के अंतर्गत संचालित संस्थाएं नेशनल इन्वायरमेंटल एण्ड इंजीनियरिंग रिसर्च इन्स्टीट्यूट (एनईईआरआई) नागपुर, एनजीआरआई (नेशनल जियो फिजिकल रिसर्च इन्स्टीट्यूट), हैदराबाद, सीपीसीबी (केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड), आईआईसीटी (इंडियन इन्स्टीट्यूट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी), हैदराबाद तथा एमपीपीसीबी के विशेषज्ञों के साथ भारत सरकार एवं राज्य सरकार के सचिव स्तर के वरिष्ठ अधिकारी भी सम्मिलित हैं. उक्त समिति को उच्च न्यायालय द्वारा ओवर साइट कमेटी/टास्क फोर्स के रूप में नामांकित किया गया है. कमेटी के निर्देशों एवं सुपरविजन के अनुसार विनिष्टिकरण का कार्य किया जा रहा है. 

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