बागी पान सिंह तोमर के एनकाउंटर से जिस गांव में आया था विकास, आज वही रठियापुरा बदहाल

Chambal Rebels Paan Singh Tomar Encounter: भिंड के रठियापुरा में 44 साल पहले बागी पान सिंह तोमर का एनकाउंटर हुआ था. इस घटना के बाद गांव को बिजली, सड़क और स्कूल जैसी सौगातें मिलीं, लेकिन आज वही विकास खंडहर में तब्दील हो चुका है. पढ़िए एनडीटीवी की विशेष ग्राउंड रिपोर्ट.

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Rathiapura Village Bhind News: भिंड जिले के रठियापुरा गांव की मिट्टी में आज भी चंबल के उस सबसे चर्चित एनकाउंटर की कहानियां दफन हैं, जिसने 44 साल पहले बागी पान सिंह तोमर का अंत किया था. लेकिन रठियापुरा की असली त्रासदी यह नहीं है कि वहां गोलियां चलीं, बल्कि त्रासदी यह है कि जिस मुठभेड़ के बाद इस गांव की किस्मत बदली थी, आज वही विकास जर्जर इमारतों और सरकारी बेरुखी की भेंट चढ़ चुका है. कभी एनकाउंटर के बाद शासन की विशेष मेहरबानी से चमका यह गांव आज फिर उसी मोड़ पर खड़ा है, जहां इतिहास के पन्ने तो सुनहरे हैं पर वर्तमान बदहाल है.

गोलियों की गूंज और 14 घंटे का वो खौफनाक मंजर

 1 अक्टूबर 1981 की वो तारीख रठियापुरा के बुजुर्ग आज भी नहीं भूले हैं. गांव के 80 साल के बुजुर्ग बताते हैं कि पान सिंह तोमर अपनी गैंग के साथ इसी गांव में पनाह लिए हुए था. एक मुखबिर की सूचना पर जब तत्कालीन आईपीएस अधिकारी विजय रमन ने घेराबंदी की, तो दोनों से फायरिंग शुरु हो गई. करीब 14 घंटे तक पूरा इलाका गोलियों की आवाज से थर्राता रहा. उस मुठभेड़ में पान सिंह तोमर समेत 14 बागी मारे गए थे. सेना के जवान और खिलाड़ी से बागी बने पान सिंह का अंत रठियापुरा की गलियों और बम्बा के पास हुआ था. इस घटना ने रठियापुरा को रातों-रात पूरे देश के नक्शे पर ला दिया था.

रठियापुरा गांव जहां पान सिंह तोमर का एनकाउंटर हुआ था वहां की पुलिस चौकी की इमारत जर्जर हो गई है. प्रशासन ने नई इमारत बनाई है लेकिन वहां कोई नहीं जाता.

14 घंटे का खूनी संघर्ष और मुखबिरी की वो कहानी

गांव के 80 वर्षीय बुजुर्ग के मुताबिक, उस दिन पान सिंह तोमर अपनी गैंग के साथ रठियापुरा में रुका हुआ था. चर्चा थी कि गैंग गाँव के कुछ लोगों के अपहरण की फिराक में है. इसी बीच पावा गाँव के मुखबिर मोतीलाल जाटव ने पुलिस को इसकी भनक दे दी. फिर क्या था, तत्कालीन आईपीएस अधिकारी विजय रमन के नेतृत्व में पुलिस की स्पेशल टीम ने गाँव की ऐसी घेराबंदी की कि बागियों को संभलने का मौका तक नहीं मिला. करीब 14 घंटे तक चली इस भीषण मुठभेड़ में पान सिंह तोमर और उसके 14 साथी मारे गए थे. गांव के भीतर ही 6 बागियों को ढेर कर दिया गया था, जबकि पान सिंह तोमर भागने की कोशिश करते हुए देर रात साढ़े 10 बजे बम्बा के पास पुलिस की गोलियों का शिकार हुआ था.

रठियापुरा गांव में यही वो जगह है जहां पुलिस ने मुठभेड़ में कुख्यात बागी पान सिंह तोमर को मार गिराया था.

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सेना के जवान से 'बागी' बनने का वो दर्दनाक सफर 

पान सिंह तोमर का नाम आज भी गांव में बहस का विषय बना रहता है. रठियापुरा के लोग उन्हें सिर्फ एक अपराधी के तौर पर नहीं देखते. ग्रामीण आज भी याद करते हैं कि कैसे एक शख्स जिसने भारतीय सेना में रहकर देश की सेवा की और खेल जगत में देश का नाम रोशन किया, वो हालात और अन्याय के चलते बागी बन गया. यही वजह है कि आज भी रठियापुरा में कुछ लोग उन्हें अपराधी मानते हैं, तो कुछ उन्हें वक्त का मारा हुआ इंसान. एनकाउंटर के बाद सालों तक इस गांव में सन्नाटा पसरा रहा, लेकिन धीरे-धीरे इसी घटना ने गांव के विकास के दरवाजे भी खोल दिए.

जब बागी के अंत ने बदली गांव की तकदीर 

एनकाउंटर के बाद जब दहशत कम हुई, तो रठियापुरा के लिए विकास के द्वार खुले. ग्रामीण बताते हैं कि पान सिंह तोमर के खात्मे के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के आदेश पर इस गांव को सरकारी सौगातों से सराबोर कर दिया गया. पहली बार गांव में बिजली के खंभे गड़े, प्यास बुझाने के लिए हैंडपंप आए और कच्ची पगडंडियों की जगह पक्की सड़कों ने ले ली. पुलिस चौकी और स्कूल के लिए एक ग्रामीण ने अपनी दो बीघा जमीन तक दान दे दी थी ताकि गांव में व्यवस्था बनी रहे. तब लगा था कि रठियापुरा की पहचान अब गोलियों से नहीं, बल्कि तरक्की से होगी.लेकिन अफ़सोस कि वो विकास आज जर्जर इमारतों में तब्दील हो चुका है. जो पुलिस चौकी और स्कूल कभी गाँव की शान थे, आज वो बदहाल हैं और वहां स्टाफ का नामोनिशान नहीं रहता.

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इतिहास के पन्नों में दर्ज, पर बुनियादी सुविधाओं से दूर 

आज रठियापुरा की स्थिति यह है कि शासन ने शुरुआती बरसों के बाद इसकी सुध लेना छोड़ दिया है. आयुष्मान आरोग्य मंदिर स्टाफ की कमी से बंद रहता है और स्कूल में शिक्षक नहीं आते. गाँव की पुलिस चौकी जर्जर हो चुकी है और नई बिल्डिंग में पुलिसकर्मी बैठने को तैयार नहीं हैं. ऐतिहासिक महत्व रखने वाला यह गांव आज बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रहा है. ग्रामीणों की बस एक ही मांग है कि जिस गांव की पहचान एक बड़ी घटना से जुड़ी है, उसे कम से कम विकास की मुख्यधारा से तो जोड़ा जाए. वे चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ियां रठियापुरा को सिर्फ पान सिंह तोमर के अंत के लिए नहीं, बल्कि एक विकसित गांव के रूप में पहचानें.