कोर्ट ने SDM कार्यालय की बोलेरो की कराई कुर्की, 12 साल पुराने इस मामले पर लिया एक्शन 

 MP News: 12 साल पुराने अतिक्रमण मामले में कोर्ट ने कड़ा एक्शन लिया है. कोर्टने इस मामले में एसडीएम कार्यलय की गाड़ी को कुर्क कराने का आदेश दिया है. 

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Madhya Pradesh News: मध्य प्रदेश के भिंड में प्रशासन द्वारा अतिक्रमण बताकर तोड़े गए मकान के मामले में अब न्यायालय ने सख्ती दिखाते हुए बड़ी कार्रवाई की है.  गोहद कोर्ट ने 12 साल पुराने इस प्रकरण में पीड़ित को क्षतिपूर्ति न देने पर एसडीएम कार्यालय की सरकारी बोलेरो गाड़ी कुर्क करा दी है.प्रशासन ने अदालत के इस मामले में लापरवाही का बड़ा रुख अपनाया था.

प्रशासन की कार्रवाई को दी थी चुनौती 

दरअसल यह मामला वर्ष 2013 का है, जब तहसील कार्यालय के पीछे विहारी नगर निवासी सरमनलाल का मकान प्रशासन ने अतिक्रमण बताकर बुलडोजर से ध्वस्त करा दिया था. इस कार्रवाई को सरमनलाल ने न्यायालय में चुनौती दी थी. लंबी कानूनी लड़ाई के बाद 2017 में गोहद कोर्ट ने प्रशासन की कार्रवाई को गलत ठहराया और सरमनलाल के पक्ष में निर्णय देते हुए क्षतिपूर्ति राशि अदा करने का आदेश दिया था. प्रशासन ने इस आदेश के खिलाफ अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश न्यायालय में अपील भी दायर की थी, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया.

फैसला अंतिम हो जाने के बावजूद प्रशासन ने क्षतिपूर्ति राशि का भुगतान नहीं किया इसके बाद पीड़ित पक्ष ने वर्ष 2022 में वसूली प्रक्रिया प्रारंभ की. इसी क्रम में न्यायालय ने 9 अक्टूबर 2025 को आदेश जारी करते हुए गोहद एसडीएम कार्यालय की बोलेरो गाड़ी (MP02AB 6938) को कुर्क करने का निर्देश दिया.  

इस वाहन की कीमत 3.50 लाख रुपए आंकी गई है, जबकि वसूली योग्य राशि 5 लाख 40 हजार रुपए है. कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि इस वाहन से पूरी राशि की क्षतिपूर्ति नहीं हो पाती है, तो तहसीलदार की गाड़ी भी कुर्क की जाएगी. कुर्क की गई बोलेरो गाड़ी को न्यायालय परिसर में सुरक्षा अभिरक्षा में रखा गया है. मामले में शासन की ओर से कलेक्टर, एसडीएम और तहसीलदार को पक्षकार बनाया गया है. शासन की ओर से पैरवी कर रहे वकील केसी उपाध्याय ने अदालत से दो महीने का समय मांगा है.

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हो चुका है निधन 

बताया गया कि न्याय की लंबी लड़ाई लड़ते हुए सरमनलाल का निधन हो चुका है, लेकिन उनकी पत्नी ने यह लड़ाई जारी रखी, जिसके परिणामस्वरूप अब यह ऐतिहासिक आदेश सामने आया है.यह मामला प्रशासनिक लापरवाही और न्यायिक दृढ़ता का उदाहरण बन गया है, जिसने दिखाया कि वर्षों बाद भी अदालत अन्याय के खिलाफ पीड़ित को न्याय दिला सकती है.

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