Gwalior Fort: ग्वालियर किले में मौजूद है गुरुद्वारा दाता बंदी छोड़, जानिए सिख गुरू और जहांगीर से जुड़ी कहानी

Gurudwara Data Bandi Chhod Sahib Gwalior: सिखों के छठवें गुरु हरिगोविंद सिंह की मुगलों से रिहाई की याद में हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी ग्वालियर स्थित गुरुद्वारा दाता बंदी छोड़ पर दाता बंदी छोड़ महोत्सव मनाया जा रहा है. इस महोत्सव में देश भर के ही नहीं बल्कि दूसरे मुल्कों में भी रहने वाले सिख समाज के लोग भी इस आयोजन में शामिल होने ग्वालियर पहुंचते हैं.

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Bandi Chhor Divas: पूरा देश इन दिनों दीपावली (Diwali 2024) के पांच दिवसीय त्योहार मना रहा है और हर जगह उत्सव का माहौल है. खास बात ये है कि इस त्योहार को हिन्दू (Hindu) परंपरा में तो मनाते ही हैं, बाकी धर्म के लोग भी अलग-अलग तरह से मनाते हैं. दुनिया भर में फैले सिख (Sikh) धर्म को मानने वाले भी यह पर्व मनाते हैं. सिख लोग पहले दीवाली नहीं मनाते थे, लेकिन ग्वालियर में एक ऐसा घटनाक़म घटा कि उसके बाद से उन्होंने दो दिन दिवाली मनाना शुरू कर दिया. इन दिनों उनके धार्मिक स्थल भी रोशनी से जगमगाते है. इसकी कहानी भी बड़ी रोमांचक और अविस्मरणीय है.

क्या है कहानी?

ग्वालियर के विश्व प्रसिद्ध दुर्ग के ही एक बड़े हिस्से व ऊंचाई पर ऐतिहासिक गुरुद्वारा मौजूद है, जिसका नाम 'दाता बंदी छोड़' है. यह गुरुद्वारा सिख संगत में बड़े तीर्थ स्थल के रूप में जाना जाता है. दुनिया भर से सिख सपरिवार हर साल यहां मत्था टेकने पहुंचते हैं.

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सिख इतिहास में इस जगह का महत्व बहुत है, क्योंकि इस गुरुद्वारे से जुड़ा किस्सा बड़ा ही दिलचस्प है. इसी कहानी से पता चलता है कि सिख समाज में इसी जगह पर घटी एक घटना ने दीपावली मनाने की शुरुआत हुई. बाद में यहां गुरुद्वारा भी बनाया गया.

मान्यता है और इतिहास में उल्लेख भी कि मुगल काल के दौरान लोगों में सिख धर्म के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए मुगल शासक जहांगीर ने सिखों के छठे गुरु हरगोविंद साहिब को बंदी बना लिया था. गुरु हरगोविंद साहिब ने मुस्लिम शासकों की धार्मिक शर्तें मानने से इनकार कर दिया था. जहांगीर ने गुरु महाराज को बंदी बनाकर ग्वालियर के किले में कैद कर दिया था. मुगल उस समय इस किले को अपने राजनीतिक बंदियों की कैद के लिए उपयोग करते थे. इस किले में साहिब के आने से पहले से ही 52 हिंदू राजा कैद थे. गुरु हरगोविंद जी जब जेल में पहुंचे तो सभी राजाओं ने उनका स्वागत किया. जहांगीर ने गुरु हरगोविंद को 2 साल 3 महीने तक जेल से बाहर नहीं आने दिया.

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इस घटना के बाद रिहा हुए सिख गुरू 

उसी दौरान अचानक एक घटना घटी. जहांगीर की तबीयत खराब होने लगी. हकीम से लेकर वैद्य तक सब उपचार में जुटे थे, लेकिन उनकी तबियत बिगड़ती ही जा रही थी. तभी एक शाही पीर ने जहांगीर को बताया कि ग्वालियर किले पर नजरबंद गुरु हरगोविंद साहिब को मुक्त कर दो, तभी आप ठीक हो सकते हैं. जान जाने से भयभीत जहांगीर ने उनकी बात मान ली. इसके बाद गुरू हरगोविंद साहिब को रिहा करने के लिए जहांगीर तैयार हुआ.

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जहांगीर ने गुरु हरगोविंद साहिब को रिहा करने का फैसला लिया और कहा कि आपको यहां से मुक्त किया जाता है. बादशाह का जब यह आदेश ग्वालियर दुर्ग में पहुंचा और गुरु हरगोविंद साहिब को सुनाया गया तो गुरुजी ने इसे अस्वीकार कर दिया. उन्होंने कैद से अकेले रिहा होने से मना कर दिया. गुरु हरगोविद साहिब से जब जहांगीर ने इसकी वजह पूछी तो उन्होंने कहा कि मैं यहां पर कैद सभी  52 हिंदू राजाओं को अपने साथ लेकर ही कैद से बाहर जाऊंगा.

आखिरकार इसके बाद गुरु हरगोविंद साहिब की शर्त को स्वीकार करते हुए जहांगीर ने भी एक शर्त रखी. जहांगीर ने कहा कि कैद में गुरु जी के साथ सिर्फ वही राजा बाहर जा सकेंगे, जो गुरुजी का कोई कपड़ा पकड़े होंगे. इसके बाद गुरु हरगोविंद साहिब ने जहांगीर की शर्त को स्वीकार कर लिया.

चालाकी पर भारी पड़ा चमत्कार

जहांगीर की चालाकी को देखते हुए गुरु हरगोविंद साहिब ने एक 52 कलियों का चोंगा (कुर्ता) सिलवाया. इस तरह एक एक कली को पकड़ते हुए सभी 52 हिंदू राजा जहांगीर की कैद से आजाद हो गए. 52 हिंदू राजाओं को ग्वालियर के इसी किले से एक साथ छोड़ा गया था. इसलिए यहां बने इस स्थान का नाम दाताबन्दी छोड़ रखा गया था लेकिन कालांतर में यहां बने गुरुद्वारे का नाम 'दाता बंदी छोड़' के नाम से ही प्रसिद्ध हो गया. चूंकि यह रिहाई दीपावली के मौके पर हुई थी, इसलिए सिखों ने उनकी अगवानी के लिए घर घर दिए जलाए और तभी से सिख समाज भी अमावस्या और उसके एक दिन बाद तक घरों में दीपक जलाकर दीवाली मनाने लगा. ग्वालियर स्थित दाताबन्दी छोड़ गुरुद्वारे में भी दीपोत्सव होता है. यहां लाखों की तादात में सिख धर्म के अनुयाई अरदास करने आते हैं. यह पूरे विश्व में सिख समाज का छठवां सबसे बड़ा तीर्थ स्थल है.

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