मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) एक ऐसा शहर है जो अपनी ऐतिहासिक और संस्कृति के जाना जाता है. यह देश के बीचों बीच बसा शहर है, इसलिए मध्य प्रदेश को भारत का दिल भी कहा जाता है. यहां की शाही विरासत, ऐतिहासिक स्मारकों, किलों, महलों और मंदिर विश्व भर में प्रसिद्ध है, जिसे देखने पर्यटक दूर-दूर से आते हैं. खास कर यहां के किले भारत ही नहीं, बल्कि विश्व भर में प्रसिद्ध हैं. इन्हीं किलो में से एक 'अटेर का किला' (Ater Fort) भी है.
MP के अटेर किले का रहस्य
'अटेर का किला' ऐतिहासिक होने के साथ-साथ रहस्यमयी भी है. कहा जाता है कि अटेर के किले में लाल दरवाजा है, जो 400 साल से अपने आप में कई रहस्य छिपाए हुए है. इसे खूनी दरवाजा (Khooni Darwaza) भी कहा जाता है. कहा जाता है यह दरवाजा दिवाली की कार्तिक अमावस्या पर एक दिन के लिए लाल से खूनी दरवाजा बन जाता था. इस किले का जिक्र महाभारत काल में भी हुआ है.
किसने बनवाया अटेर का रहस्यमयी किला
मध्य प्रदेश के चंबल में स्थित अटेर के किले का निर्माण भदौरिया राजा बदनसिंह (Bhadhauriya Raja Badan Singh) ने 1664 ईस्वी में करवाया था. उस दौरान भदौरिया राजा का आधुनिक ब्रज और चंबल नदी घाटी के इलाकों पर शासन हुआ करता था. गहरी चंबल नदी की घाटी में स्थित यह किला भिंड जिले से 35 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है.
यह किला दुर्ग भदावर राजाओं के गौरवशाली इतिहास की कहानी बयां करता है. बता दें कि भदावर राजाओं के समय में इस किले का काफी महत्व था. यह किला हिन्दू और मुगल स्थापत्य कला का नमूना है.
अटेर किले के दरवाजे को क्यों कहा जाता खूनी दरवाजा
अटेर के किले में सबसे चर्चित और रहस्यमयी है यहां का खूनी दरवाजा. आज भी इस दरवाजे को लेकर किवदंतिया पूरे विश्व भर में प्रचलित है. बता दें कि इस खूनी दरवाजे का रंग लाल है. इसके अलावा इस पर ऊपर वो स्थान आज भी मौजूद है, जहां से खून टपकता है. इसलिए इस दरवाजे को खूनी दरवाजा कहा जाता है.
इस बर्तन में खून की बूंदें टपकती रहती थी. कहा जाता है कि गुप्तचर राजपाट और दुश्मनों से जुड़ी अहम सूचनाएं देने के लिए बर्तन में रखे खून से तिलक करके भदावर राजा से मिलने जाते थे. हालांकि आम आदमी को किले के दरवाजे से दूर रखा जाता था और बहने वाले इस खून के बारे में कोई जानकारी नहीं दी जाती थी, ताकि गुप्तचरों के अलावा अन्य कोई दुश्मन इसमें शामिल नहीं हो सके.
अटेर के किले में छुपा था खजाना?
बता दें कि अब यह किला जर्जर हो चुका है. दरअसल, चंबल नदी के किनारे बने इसे किले के तलघरों को स्थानीय लोगों ने खजाने की चाह में खोद दिया है, जिसकी वजह से यह किला जर्जर हो गया.
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