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माटी की मोल हुई गोंड जनजाति की प्राचीन कला, कद्रदान ढूंढने कि लिए आर्टिस्ट को करना पड़ता है संघर्ष

Treditional Gondi Art: पुष्पराजगढ़ क्षेत्र के बम्हनी गांव की रहने वाली पारंपरिक गोंड कला की आर्टिस्ट आशा मरावी अभावों के बीच भी गोंडी कला की जीवित रखे हुए हैं. गरीब आदिवासी परिवार से ताल्लुक रखने वाली आशा ग्रेजुएशन कर रही है और गोंडी कला के जरिए आत्मनिर्भर बनने का प्रयास कर रही हैं. 

माटी की मोल हुई गोंड जनजाति की प्राचीन कला, कद्रदान ढूंढने कि लिए आर्टिस्ट को करना पड़ता है संघर्ष
TRADITONAL GONDI ART ARTIST OF ANUPPUR STRUGGLE TO FIND COSTOMER

Gondi Art Paintings: अनूपपुर जिले में गोंड जनजाति की प्राचीनतम गोंडी कला अंतिम सांसें गिन रही है. इसकी बागनी जिले में गोंडी कला आर्टिस्ट आशा मरावी हैं, जिनकी बनाई पेंटिग्स को कद्रदान नहीं मिल रहे हैं. दुखद यह है कि गोंडी कला के जौहरी नहीं हैं, जो उन्हें उचित सम्मान दे सके, जिससे आशा मरावी को अपनी पेटिंग्स महज 70 रुपए में बेचने पड़ते हैं.  

पुष्पराजगढ़ क्षेत्र के बम्हनी गांव की रहने वाली पारंपरिक गोंड कला की आर्टिस्ट आशा मरावी अभावों के बीच भी गोंडी कला की जीवित रखे हुए हैं. गरीब आदिवासी परिवार से ताल्लुक रखने वाली आशा ग्रेजुएशन कर रही है और गोंडी कला के जरिए आत्मनिर्भर बनने का प्रयास कर रही हैं. 

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बेशकीमती गोंडी पेंटिंग्स के कद्रवान नहीं 

रिपोर्ट के मुताबिक गोंडी कला में पारंगत आशा मरावी पारंपरिक गोंड़ी कला के जरिए आत्मनिर्भर होने का प्रयास कर रही है,  लेकिन उनकी बेशकीमती गोंडी पेंटिंग्स के कद्रवान नहीं हैं. आशा मरावी को उनके मेहनत से बनाए पेंटिंग्स के लिए महज 70 रुपए मिलते हैं, जो गोंडी कला को ही नहीं, आशा मरावी को जीवित रखने के लिए नाकाफी हैं.

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बेहद कम दामों पर बेचना पड़ता है पेंटिंग्स 

आशा मरावी द्वारा पांरपरिक गोंडी शैली में बनाए चित्रों में जंगलों की आत्मा, आदिवासी जीवन और प्रकृति के प्रति सम्मान झलकता है, लेकिन कद्रदानों की कमी के वजह से उन्हें मजबूरी में पेंटिंग्स को बेहद कम दामों पर बेचना पड़ता है. यह एक कलाकार के लिए ही नहीं, बल्कि उसकी कला और आदिवासी संस्कृति पर गहरी चोट करते हैं.

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गोंड जनजाति की प्राचीन लोक कला गोंड़ी में पेड़, पशु, पक्षी, नदी और पर्वत जीवन के प्रतीक माने जाते हैं. पर्यावरण संरक्षण का संदेश देती यह कला बताती है कि इंसान और प्रकृति का रिश्ता अटूट है. आशा मरावी भी अपनी गोंडी कला से निर्मित पेंटिंग्स यही संदेश देती है.
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गोंडी कला को नई पहचान दिलाने की आशा

पुष्पराजगढ़ क्षेत्र के बम्हनी गांव पहुंची NDTV की टीम को गोंडी कलाकार ​​​​​​​आशा मरावी ने बताया कि उसने छत्तीसगढ़ के कला एवं संस्कृति विभाग, आदिवासी विकास विभाग और जिला प्रशासन से उसकी कला को उचित पारिश्रमिक की व्यवस्था करने की मांग की है, ताकि गोंडी कला को नई पहचान दिलाने अपना योगदान कर सके.

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