अकबर ने रामायण का कराया था अरबी भाषा में अनुवाद, ग्वालियर में आज भी रखी है मूल प्रति

Gangadas Shala Math: करीब सवा सात सौ साल पुरानी गंगा दास की शाला के महंत स्वामी रामसेवक दास ने NDTV को बताया कि 468 साल पहले जब अकबर ग्वालियर आया था, उसी समय अकबर ने रामायण का अरबी भाषा में अनुवाद करवाया.

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महंत का कहना है कि उस समय की स्याही इतनी पक्की है कि इसके शब्द सैकड़ों साल बाद भी मोती की तरह चमकते हैं.

Arabic Copy of Ramayana: इस समय पूरा देश अयोध्या (Ayodhya) में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा (Ramlala Pran Pratishtha) की तैयारियों में लगा है. जिसे लेकर उत्सव जैसा माहौल देखने को मिल रहा है. हर तरफ भगवान राम (Lord Ram) और रामायण की चर्चा हो रही है. इस बीच एक चर्चा अक्सर होती है कि करीब 500 साल पहले बाबर ने राम मंदिर (Ram Mandir) तोड़कर बाबरी मस्जिद (Babri Masjid) का निर्माण करवाया. इन चर्चाओं के बीच हम आपको एक ऐसे रामायण (Ramayana) की प्रति के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसका अनुवाद राम मंदिर गिराने वाले बाबर (Babar) के पोते अकबर (Akbar) ने कराया था.

भगवान राम के व्यक्तित्व से प्रभावित था अकबर

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के व्यक्तित्व और आचरण से सैकड़ों साल पहले अकबर प्रभावित था. अकबर ने भगवान राम के पूरे जीवन चरित्र को समझने के लिए रामायण का अरबी में अनुवाद कराया था. जिसके बाद इसे ग्वालियर में संतों के मठ में सुरक्षित रखवा दिया गया था. अरबी भाषा में लिखी यह रामायण आज भी गंगा दास की शाला मठ में सुरक्षित रखी है.

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गंगा दास की शाला के महंत स्वामी रामसेवक दास ने बताया कि करीब 468 साल पहले अकबर ग्वालियर आया था.

468 साल पहले ग्वालियर आया था अकबर

करीब सवा सात सौ साल पुरानी गंगा दास की शाला के महंत स्वामी रामसेवक दास ने NDTV को बताया कि 468 साल पहले जब अकबर ग्वालियर आया था, उस समय उसने संतों की ख्याति सुनकर गंगा दास शाला आने का फैसला किया. यहां रुककर उसने अरबी विद्वानों को संतों से मिलवाया और संस्कृत भाषा के ग्रंथ रामायण का अरबी में अनुवाद करवाया, ताकि वह स्वयं पढ़कर इसे समझ सके और अन्य मुस्लिम शासक भी जान सकें.

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इसके बाद उसने रामायण की अरबी में अनुवादित प्रति को सम्मान पूर्वक मठ के महंतों को सौंपा, ताकि यह सुरक्षित रह सके. यहां यह ग्रंथ आज भी सुरक्षित है. इसे राम दरबार में संरक्षित करके रखा गया है. महंत का कहना है कि उस समय की स्याही इतनी पक्की है कि इसके शब्द सैकड़ों साल बाद भी मोती की तरह चमकते हैं.

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