'पहले 500 रुपये दो'- ग्वालियर के अस्पताल में जवान बेटे की लाश के सामने रोती मां से सौदेबाजी !

मध्य प्रदेश के सबसे बड़े अस्पतालों में शुमार, जयारोग्य अस्पताल समूह के हजार बिस्तर वाले अस्पताल में इंसानियत को शर्मसार कर देने की एक घटना सामने आयी है. मुरैना निवासी 19 वर्षीय युवक कृष्णा श्रीवास की अस्पताल में हुई मौत के बाद परिजन गम में डूबे हुए थे. इसपर भी पोस्टमार्टम के बाद शव सौंपने से पहले कफन के लिए 500 रुपये मांगे गए.

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Gwalior Jayarogya Hospital News: जरा सोचिए…एक मां की आंखों के सामने उसका जवान बेटा दम तोड़ दे, घर का चिराग बुझ जाए, और फिर उस लाश को घर ले जाने से पहले ये कहा जाए- “पहले कफन के पांच सौ रुपये दो, तभी बेटे का शव मिलेगा. ये कोई काल्पनिक कहानी नहीं बल्कि ग्वालियर के सबसे बड़े अस्पताल में हुई इंसानियत को तार-तार कर देने वाली असली घटना है.

सिस्टम की लापरवाही ने ली जान?

मुरैना का 19 साल का कृष्णा श्रीवास, सड़क हादसे में घायल होकर 30 अगस्त को ग्वालियर के जयारोग्य अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर लाया गया. गंभीर चोटें थीं, परिवार का भरोसा था कि सरकारी अस्पताल में इलाज मिलेगा. लेकिन आरोप है कि सिस्टम की लापरवाही ने कृष्णा की सांसें छीन लीं. परिवार का कहना है कि पैर में फ्रैक्चर था, लेकिन सिर्फ प्लास्टर चढ़ाने में ही दो दिन निकाल दिए गए, इलाज ठीक से नहीं हुआ. सीनियर डॉक्टरों की गैरमौजूदगी में पूरा जिम्मा जूनियर डॉक्टर्स के हाथों में था, जिनके पास न अनुभव था, ना निर्णय लेने की हिम्मत, और आखिरकार, 1 सितम्बर को कृष्णा ने दम तोड़ दिया.

कफन के 500 दो तभी लाश मिलेगी

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई, असली सदमा तो तब लगा, जब परिजन शव लेने पहुंचे. ग़म से टूटा परिवार उम्मीद कर रहा था कि अब बेटे का अंतिम संस्कार कर उसकी आत्मा को शांति देंगे, मगर वहां इंसानियत ने मुंह फेर लिया. परिवार का आरोप है कि पोस्टमार्टम हाउस में कर्मचारियों ने बेटे का शव सौंपने से पहले कफन के 500 रुपये मांगे. ज़रा ठहरकर सोचिए, जब मां की गोद सूनी हो जाए और बाप की आंखों में आंसू थम न रहे हों, उस वक्त बेटे की लाश लेने के लिए सौदेबाज़ी करनी पड़े, तो यह सिर्फ संवेदनहीनता नहीं, बल्कि मानवता की हत्या है. आखिर उस दर्द को कैसे मापा जाए? इंसानियत को शर्मसार कर देने वाला यह मंजर सुनकर ही रूह कांप जाती है. परिवार ने अस्पताल अधीक्षक डॉ. सुधीर सक्सेना से भी गुहार लगाई बावजूद इसके परिजनों को कीमत चुकानी पड़ी और तब जाकर बेटे का पार्थिव शरीर उन्हें सौंपा गया.

परिवार ने सीएम से लगाई ये गुहार

मृतक के मामा पवन सेन, जो भाजपा पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के संभागीय मीडिया प्रभारी हैं, उन्होंने इस पूरे मामले को सोशल मीडिया के जरिये मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव तक पहुंचाया. और अपील करते हुए लिखा कि “मुख्यमंत्री जी ध्यान दीजिए, सड़क दुर्घटना में मृत के परिजन से कफन के पैसे मत मांगिए, सरकारी डॉक्टरों की बंगलों पर दुकानें बंद करवाइए, ग्वालियर ट्रॉमा सेंटर का भगवान ही मालिक है. इन शब्दों में सिर्फ शिकायत नहीं है, बल्कि एक ऐसे सिस्टम के चोट से मिले जख्मों का दर्द है जो मौत के बाद भी इंसान के चैन की बोली लगाता है.

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क्या सिस्टम सिर्फ नोट पहचानता है?

इस शर्मनाक वाकये पर जेएएच के सहायक अधीक्षक डॉ. वीरेंद्र वर्मा ने माना कि अगर कफन के लिए पैसे लिए गए तो यह गलत है, विभाग प्रमुख से जवाब-तलब किया गया है और जिम्मेदार आउटसोर्स कर्मचारी को सेवा से हटा दिया गया है. साथ ही ट्रॉमा सेंटर में डॉक्टरों की ड्यूटी का रोस्टर भी खंगाला जा रहा है. लेकिन बड़ा सवाल यही है, क्या इंसान की मौत अब भी “कमाई का जरिया” बन गई है? क्या सरकारी अस्पताल सिर्फ इमारत और कागज पर ही जिंदा हैं? इलाज की लापरवाही से लेकर पोस्टमार्टम हाउस की शर्मनाक मांग तक—हर परत यही कह रही है कि सिस्टम अब इंसान नहीं, सिर्फ नोट पहचानता है.

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