MP News: सिमी के समर्थन वाले पर्चों के मामले में व्यापारी को एक मामले में मिली राहत, एक में सजा बरकरार

Madhya Pradesh News: अपनी अपील में अभियोजन के तमाम आरोपों को चुनौती देते हुए 50 वर्षीय व्यापारी की ओर से दावा किया गया था कि उसे पुलिस ने झूठे मामले में फंसाया है. अदालत ने मुकदमे के तथ्यों पर गौर करने के बाद कहा कि रिकॉर्ड पर ऐसा कोई सबूत मौजूद नहीं है कि खान इस प्रतिबंधित संगठन का सदस्य है.

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SIMI News: इंदौर (Indore) के एक सत्र न्यायालय (Session Court) ने प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) के भड़काऊ पर्चे चिपकाए जाने के मामले में 50 वर्षीय व्यापारी को अधीनस्थ न्यायालय द्वारा दोषी करार दिये जाने के फैसले को बुधवार को आंशिक रूप से बरकरार रखा. सत्र न्यायालय ने आरोपी को विधि विरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम 1967 के एक प्रावधान के तहत तीन वर्ष के सश्रम कारावास और तीन हजार रुपये के जुर्माने के अधीनस्थ न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा.अधीनस्थ न्यायालय ने 24 अप्रैल को सजा सुनाई थी.

हालांकि, सत्र न्यायालय ने व्यापारी को इस आतंकवाद निरोधक कानून के एक अन्य प्रावधान के तहत लगाए गए आरोपों से यह कहते हुए बरी कर दिया कि ऐसा कोई सबूत रिकॉर्ड पर मौजूद नहीं है, जिसके आधार पर उसे सिमी का सदस्य करार दिया सके. अपर सत्र न्यायाधीश पंकज यादव ने स्थानीय व्यापारी अमान खान (50) को विधि विरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम की धारा 13 (गैरकानूनी गतिविधियों के लिए दंड) के तहत दोषी करार दिए जाने के तीन महीने पुराने फैसले की पुष्टि की.

कोर्ट ने इसलिए माना दोषी

अभियोजन के मुताबिक खान वर्ष 2008 में शहर के छोटी ग्वालटोली थाना क्षेत्र में सरवटे बस स्टैंड पर सरकार के विरोध में सिमी के भड़काऊ पर्चे चिपका रहा था और गिरफ्तारी के समय उसकी जेब से भी ऐसे ही कुछ पर्चे भी मिले थे. अदालत ने कहा कि मुजरिम से जब्त पर्चों के अवलोकन से उसकी गैरकानूनी गतिविधि स्पष्ट रूप से दर्शित होती है.

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एक मामले में इसलिए मिली राहत

अभियोजन ने खान को सिमी का सदस्य बताया था. अपनी अपील में अभियोजन के तमाम आरोपों को चुनौती देते हुए 50 वर्षीय व्यापारी की ओर से दावा किया गया था कि उसे पुलिस ने झूठे मामले में फंसाया है. अदालत ने मुकदमे के तथ्यों पर गौर करने के बाद कहा कि रिकॉर्ड पर ऐसा कोई सबूत मौजूद नहीं है कि खान इस प्रतिबंधित संगठन का सदस्य है.

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अपर सत्र न्यायाधीश ने खान को विधि विरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम की धारा तीन (किसी संगठन को गैरकानूनी घोषित किया जाना) सहपठित धारा 10 (किसी गैरकानूनी संगठन का सदस्य होने पर जुर्माना) के तहत लगाए गए आरोपों से बरी कर दिया. अधीनस्थ न्यायालय ने इन प्रावधानों के तहत खान को दो वर्ष के सश्रम कारावास और 2,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई थी. 

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