Antyodaya Diwas 2025: अंत्योदय व एकात्म मानववाद; पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती पर जानिए उनका जीवन

Pandit Deendayal Upadhyaya Jayanti: दीनदयाल उपाध्याय ने अपने बचपन से ही जिंदगी के महत्व को समझा और अपनी जिंदगी में समय बर्बाद करने की अपेक्षा समाज के लिए नेक काम करने में जीवन खपाया. उन्हीं 'पंडित जी' जैसी शख्सियत की बदौलत भारतीय जनसंघ से निकलकर आई भाजपा देश ही नहीं, विश्व की सबसे बड़ी पार्टी के रूप में खड़ी है.

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Antyodaya Diwas 2025: अंत्योदय व एकात्म मानववाद; पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती पर जानिए उनका जीवन

Pandit Deendayal Upadhyaya Jayanti: पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती को भारतीय जनता पार्टी अंत्योदय दिवस के रूप में मानाती है. इस बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रदर्शनी-2025 (UPITS-2025) में कहा कि "आज हम पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की जन्म-जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं, उन्होंने हमें ‘अंत्योदय' की राह दिखाई, जिसका अर्थ है अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति तक विकास पहुंचाना और सभी भेदभाव समाप्त करना, यही सामाजिक न्याय और आज के भारत का मॉडल है, जो दुनिया को प्रेरित कर रहा है." आइए जानते हैं उनके जीवन के बारे में.

पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जीवन परिचय Pandit Deendayal Upadhyaya Biography

राजनीति में तंज और मजाक में खास फर्क नहीं होता, लेकिन अक्सर विरोधियों के हमलों को अपना हथियार बनाने की कला सियासत के कुछ ही महारथियों में होती है और जिसके पास रही है, वह देश या पार्टी का नेतृत्वकर्ता बना है. यह गुण सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ही नहीं, जिन्हें विरोधियों ने सैकड़ों बार निजी हमलों के घात पहुंचाने की कोशिश की, बल्कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय के भी यही गुण रहे, जिन्होंने मजाक को इस तरह धारण किया कि वह सकारात्मक छवि के रूप में जिंदगी भर के लिए नाम से जुड़ गया. 

यह किस्सा उस समय का है, जब अपनी चाची जी के कहने पर दीनदयाल उपाध्याय एक सरकारी प्रतियोगी परीक्षा में शामिल हुए. इस परीक्षा में वो धोती और कुर्ता पहने हुए थे और अपने सर पर टोपी लगाए हुए थे. अन्य परीक्षार्थी पश्चिमी ढंग के सूट पहने हुए थे. मजाक में उनके साथियों ने उन्हें 'पंडित जी' कह कर पुकारना शुरू कर दिया. हालांकि, मजाक के तौर पर निकला 'पंडित जी' नाम आगे चलकर उनकी पहचान बन गया. उनके लाखों प्रशंसक और अनुयायी आदर और प्रेम से उन्हें इसी नाम से पुकारने लगे थे.

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पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर 1916 को ब्रज के मथुरा जिले के छोटे से गांव नगला चंद्रभान में हुआ था. 7 साल की उम्र में दीनदयाल माता-पिता के प्यार से वंचित हो गए. माता-पिता की मृत्यु के बाद भी उन्होंने अपनी जिंदगी से मुंह नहीं फेरा और हंसते हुए अपनी जिंदगी में संघर्ष करते रहे.

दीनदयाल उपाध्याय ने अपने बचपन से ही जिंदगी के महत्व को समझा और अपनी जिंदगी में समय बर्बाद करने की अपेक्षा समाज के लिए नेक काम करने में जीवन खपाया. उन्हीं 'पंडित जी' जैसी शख्सियत की बदौलत भारतीय जनसंघ से निकलकर आई भाजपा देश ही नहीं, विश्व की सबसे बड़ी पार्टी के रूप में खड़ी है.

जनसंघ की स्थापना

भारतीय जनता पार्टी का गठन 6 अप्रैल, 1980 को हुआ, लेकिन इसका इतिहास भारतीय जनसंघ से जुड़ा हुआ है, जिसकी परिकल्पना श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय जैसे संघ कार्यकर्ताओं ने की थी. जब देश में 'नेहरूवाद' और पाकिस्तान-बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहे थे, तब ऐसी परिस्थिति में एक राष्ट्रवादी राजनीतिक दल की जरूरत देश में महसूस की जाने लगी. इसके परिणामस्वरूप 21 अक्टूबर 1951 को भारतीय जनसंघ की स्थापना श्यामा प्रसाद मुखर्जी की अध्यक्षता में हुई.

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हालांकि, जब श्यामा प्रसाद मुखर्जी को कश्मीर की जेल में डाल दिया गया, जहां उनकी रहस्यपूर्ण स्थिति में मृत्यु हो गई, एक नई पार्टी को सशक्त बनाने का काम पंडित दीनदयाल उपाध्याय के कंधों पर आ गया. 1967 में पहली बार भारतीय जनसंघ और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नेतृत्व में भारतीय राजनीति पर लम्बे समय से बरकरार कांग्रेस का एकाधिकार टूटा, जिससे कई राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की पराजय हुई.

यहां से आगे भारतीय जनसंघ ने 'जनता पार्टी' का रूप लिया, जो जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर बनाई गई थी. 1 मई 1977 को भारतीय जनसंघ ने करीब 5000 प्रतिनिधियों के एक अधिवेशन में अपना विलय जनता पार्टी में किया था. इसी जनता पार्टी से अलग होकर 6 अप्रैल 1980 को एक नए संगठन 'भारतीय जनता पार्टी' की घोषणा की गई थी. आगे चलकर यह पंडित दीनदयाल उपाध्याय की वैचारिक क्रांति के सूत्रधार बनी.

देश के मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में भाजपा के सिद्धांतों में आज भी वही 'पंडित जी' जिंदा हैं. भाजपा ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय की ओर से प्रतिपादित 'एकात्म-मानवदर्शन' को अपने वैचारिक दर्शन के रूप में अपनाया है. साथ ही पार्टी का अंत्योदय, सुशासन, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, विकास एवं सुरक्षा पर भी विशेष जोर है.

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पंचनिष्ठा और अंत्योदय

पार्टी ने 5 प्रमुख सिद्धांतों के प्रति भी अपनी निष्ठा व्यक्त की, जिन्हें 'पंचनिष्ठा' कहते हैं. ये पांच सिद्धांत (पंच निष्ठा) हैं- राष्ट्रवाद व राष्ट्रीय अखंडता, लोकतंत्र, सकारात्मक पंथ-निरपेक्षता (सर्वधर्मसमभाव), गांधीवादी समाजवाद और मूल्य आधारित राजनीति.

इसमें सबसे बड़ी सोच 'अंत्योदय' है, जिससे सिर्फ राष्ट्र ही नहीं, पूरे विश्व का कल्याण हो सकता है. 'अंत्योदय' का अर्थ है 'समाज की अंतिम पंक्ति के व्यक्ति का उदय,' जिसका सरल भाव पिछड़े लोगों के उत्थान की बात करता है. यह गरीबों और पिछड़े वर्गों को दूसरे वर्गों के समान लाने की सोच रखता है.

यह 'पंडित जी' का ही विचार था कि आर्थिक योजनाओं और आर्थिक प्रगति का माप समाज के ऊपर की सीढ़ी पर पहुंचे हुए व्यक्ति से नहीं, बल्कि सबसे नीचे के स्तर पर विद्यावान व्यक्ति से होगा.

दीनदयाल को जनसंघ के आर्थिक नीति का रचनाकार बताया जाता है. आर्थिक विकास का मुख्य उद्देश्य सामान्य मानव का सुख है, यह उनका विचार था. अनगिनत गुणों के स्वामी, भारतीय राजनीतिक क्षितिज के इस प्रकाशमान सूर्य ने समतामूलक राजनीतिक विचारधारा का प्रचार और प्रोत्साहन करते हुए सिर्फ 52 साल की उम्र में अपने प्राण राष्ट्र को समर्पित कर दिए. 11 फरवरी 1968 का दिन देश के राजनीतिक इतिहास में एक बेहद दुखद दिन था.

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