Maha Shivratri 2025: महाकाल में विशेष भस्म आरती, इस बार बन रहा है महासंयोग, जानिए भोलेनाथ की पूजा विधि

Mahashivratri 2025: भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित महाशिवरात्रि पर्व का भोलेबाबा के भक्त पूरे साल इंतजार करते हैं. इस दिन विधि विधान के साथ शिव पूजन करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इसी वजह से देशभर के शिवालय में भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है.

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Shivratri 2025: महाशिवरात्रि के दौरान बाबा महाकाल के दर्शन

Maha Shivaratri 2025: आज भगवान भोलेनाथ के भक्तों का उत्साह जमकर है. महाशिवरात्रि के पर्व पर पूरे देश-प्रदेश में सुबह से ही शिव मंदिरों में पूजा के लिए श्रद्धालु पहुंचने लगे हैं. उज्जैन में आज महाशिवरात्रि के अवसर पर श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना की गई उसके बाद विशेष भस्म आरती हुई. श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर को रोशनी से जगमग किया गया गया है. केंद्रीय मंत्री राममोहन नायडू सुबह की आरती में शामिल हुए. आइए जानते हैं महाशिवरात्रि पर इस बार क्या कुछ खास है?

पहले देखिए महाशिवरात्रि पर महाकाल की भस्म आरती (Mahakal Bhasm Aarti)

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महाशिवरात्रि मुहूर्त Maha Shivratri 2025 Date and Shubh Muhurat:

फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है. फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि की शुरूआत आज 26 फरवरी को प्रातः 11:08 मिनट से होगी और इसका समापन 27 फरवरी को प्रातः 08:54 पर होगा. महाशिवरात्रि के मौके पर इस बार बुधादित्य योग, मालव्य राजयोग व त्रिग्रही योग बन रहे हैं. वहीं धन के दाता शुक्र अपनी उच्च राशि मीन में रहेंगे. इन योगों में भगवान भोलेनाथ की पूजा-आराधना से भक्तों के सभी मनोकार्य पूर्ण होंगे. इसके अलावा महाशिवरात्रि के दिन धनिष्ठा नक्षत्र, परिघ योग,शकुनी करण और मकर राशि पर चंद्रमा की उपस्थिति रहेगी. इस दिन आराधना से शिवजी की कृपा प्राप्त होती है.
 

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महाशिवरात्रि के दिन ब्रह्म मुहूर्त की शुरुआत 05:09 बजे होगी. ब्रह्म मुहूर्त का समापन 5: 59 बजे हो जाएगा. गोधूलि मुहूर्त शाम 6:16 बजे शुरु होगा. यह मुहूर्त शाम 6: 42 बजे तक रहेगा. इसके बाद निशीथ काल मुहूर्त रात 12:09 बजे से 12: 59 बजे तक रहेगा. महाशिवरात्रि के दिन ब्रह्म मुहूर्त में महाकुंभ का अंतिम स्नान शुरू होगा. ब्रह्म मुहूर्त में संगम में स्नान करना विशेष फलदायी होता है.

महाशिवरात्रि पर चार प्रहर पूजा मुहूर्त: Mahashivratri Pujan Muhurat Of Char Prahar

  1. प्रथम प्रहर पूजा समय -  26 फरवरी को शाम 06 बजकर 19 मिनट से रात 09 बजकर 26 मिनट तक
  2. द्वितीय प्रहर पूजा समय - 26 फरवरी को रात 09 बजकर 26 मिनट से रात 12 बजकर 34 मिनट तक
  3. तृतीय प्रहर पूजा समय - 27 फरवरी की रात 12 बजकर 34 मिनट से सुबह 03 बजकर 41 मिनट तक
  4. चतुर्थ प्रहर पूजा समय - 27 फरवरी को सुबह 03 बजकर 41 मिनट से सुबह 06 बजकर 44 मिनट तक

महाशिवरात्रि पर इस बार 21.46 घंटे का पुण्यकाल रहेगा. इस महायोग में प्रयागराज त्रिवेणी संगम में श्रद्धालु पुण्य की डुबकी लगा सकते हैं. वहीं मकर राशि पर चंद्रमा के गोचर करने के साथ ही परिघ योग में संगम में डुबकी से आखिरी स्नान पर्व का पुण्य अर्जित कर सकते हैं.

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पूजा विधि Maha Shivratri 2025 Puja Vidhi

महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर विशेष रूप से दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल से अभिषेक करने से व्यक्ति को मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं. शिवलिंग का अभिषेक करने के लिए जल, दूध, दही, शहद, घी और गंगाजल अर्पित करें. बेलपत्र, धतूरा, चंदन, अक्षत, भस्म और सफेद फूल चढ़ाएं. साथ ही धूप-दीप जलाकर शिव की आरती करें और भजन गाएं. इस दौरान आप शिवपुराण और रुद्राष्टक का पाठ भी कर सकते हैं.

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन भगवान भोलेनाथ को भांग, धूतरा और आक का पुष्प अर्पित किया जाए तो वह प्रसन्न होते हैं. यही नहीं इससे शीघ्र विवाह के योग भी बनते हैं. ज्योतिषियों के अनुसार शिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर केसर मिला हुआ दूध चढ़ाएं. ऐसा करने पर विवाह में आ रही बाधाएं दूर होती हैं.

इस पूजा के दौरान भगवान शिव को पीले रंग का फूल भी अर्पित करें. इससे वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है.

बेलपत्र कैसा हो? Belpatra Niyam

महाशिवरात्रि की पूजा में भोलेनाथ को बेलपत्र अर्पित करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. बेल पत्र हमेशा तीन पत्तों वाला होना चाहिए. तीन से कम पत्तों वाला बेल पत्र पूजा में नहीं उपयोग करना चाहिए. इसके अलावा, बेल पत्र का डंठल पहले से तोड़ लेना चाहिए, क्योंकि जितना छोटा डंठल होगा, उतना ही शुभ माना जाता है. बेल पत्र को हमेशा विषम संख्या में अर्पित करें, जैसे 3, 7, 11, या 21. शिवलिंग पर कभी भी गंदे, दाग-धब्बेदार या कटी-फटी बेल पत्र न चढ़ाएं. ऐसा करने से भगवान शिव नाराज हो सकते हैं.

वहीं रुद्राभिषेक मंत्र से भगवान शिव की पूजा करते समय शिवलिंग पर दुग्ध, घी, शुद्ध जल, गंगाजल, शक्कर, गन्ने का रस, बूरा, पंचामृत, शहद, आदि अर्पित करते हुए इन मंत्रों का जाप करें.

इस दौरान इस मंत्र का जाप करें :-

रुद्रा: पञ्चविधाः प्रोक्ता देशिकैरुत्तरोतरं | सांगस्तवाद्यो रूपकाख्य: सशीर्षो
रूद्र उच्च्यते|| एकादशगुणैस्तद्वद् रुद्रौ संज्ञो द्वितीयकः । एकदशभिरेता
भिस्तृतीयो लघु रुद्रकः।।

पूजन सामग्री : Mahashivratri Pujan Samagri:

धूप, दीप, अक्षत, सफेद, घी, बेल, भांग, बेर, गाय का कच्चा दूध, ईख का रस, गंगा जल, कपूर, मलयागिरी, चंदन, पंच मिष्ठान, शिव व मां पार्वती के श्रृंगार की सामग्री,पंच मेवा, शक्कर, शहद, आम्र मंजरी, जौ की बालियां, वस्त्राभूषण, चंदन, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, दही, फल, फूल, बेलपत्र, धतूरा, तुलसी दल, मौली जनेऊ, पंच रस, इत्र, गंध रोली, कुशा, आसन आदि.

महाशिवरात्रि व्रत के नियम Mahashivratri 2025 Vrat Niyam

इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें. स्नान के बाद भगवान शिव का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें. यदि निर्जला व्रत न कर रहे हों तो फलाहार करें. प्याज, लहसुन और तामसिक भोजन से परहेज करें. इस दिन सदाचार का पालन करना चाहिए. क्रोध, अहंकार, निंदा आदि से दूर रहें. संयमित व्यवहार रखें और मन को शांत रखें.
इसके अलावा पूरी रात शिव भक्ति में लीन रहें और भजन-कीर्तन करें. चार प्रहर में शिवलिंग का पूजन करें.

मंत्र Shiv Mantra

इस दिन नियमित शिव मंत्रों का जाप करें. "ॐ नमः शिवाय" और महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से विशेष लाभ होता है.

 ॐ नमः शिवाय

ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय

ॐ नमो भगवते दक्षिणामूर्त्तये मह्यं मेधा प्रयच्छ स्वाहा

ॐ नमो नीलकण्ठाय

ॐ पार्वतीपतये नमः

ॐ पशुपतये नम:

महत्व Shivratri Significance and Importance

शिवलिंग भगवान शिव का दिव्य और चेतनात्मक रूप है, जिसे ब्रह्मांड की सृष्टि, पालन और संहार की शक्ति का प्रतीक माना जाता है. शिव पुराण के अनुसार, शिवलिंग की पूजा से सभी पापों का नाश होता है, जीवन में शांति और समृद्धि का आगमन होता है, और भक्तों को भौतिक एवं आध्यात्मिक सुखों की प्राप्ति होती है. शिवलिंग का पूजन और अभिषेक करने से सभी देवी-देवताओं के अभिषेक और पूजा का फल तुरंत प्राप्त होता है.

महाशिवरात्रि के दिन उपवास रखकर भगवान शिव की पूजा करना अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है. इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष पूजा का विधान है.

शिवपुराण के अनुसार, शिवजी के निराकार स्वरूप का प्रतीक 'लिंग' इस पावन तिथि की महानिशा में प्रकट हुआ था और इसे सबसे पहले ब्रह्मा और विष्णु ने पूजा. महाशिवरात्रि मानवता के लिए शिवजी की कृपा प्राप्त करने का एक पवित्र अवसर है. इस दिन जो व्यक्ति भगवान भोलेनाथ की उपासना करता है, वह अत्यंत भाग्यशाली होता है. शिवलिंग का पूजन और अभिषेक करने से सभी देवी-देवताओं के अभिषेक का फल तुरंत प्राप्त होता है.

व्रत Mahashivratri 2025 Vrat

पुराणों के अनुसार, इस दिन भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह हुआ था. इसे शिव-पार्वती के मिलन का दिन भी कहा जाता है. मान्यता है कि इस दिन शंकर जी और देवी पार्वती की पूजा करने से वे प्रसन्न होते हैं और सभी दुखों का निवारण करते हैं. इस अवसर पर महिलाएं अपने वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने के लिए निर्जला उपवास रखती हैं.

कथा Maha Shivaratri Bholenath Katha

शिवपुराण के मुताबिक महाशिवरात्रि के दिन ही भोलेनाथ और मां पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था. माता पार्वती ने भोलेनाथ को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी. वहीं उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने फाल्गुन महीने की कृष्ण चतुर्दशी को उनसे विवाह किया. ऐसे में महाशिवरात्रि का पर्व भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के उपलक्ष्य में मनाया जाता है.

शिव चालीसा Shiv Chalisa


श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥


जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत संतन प्रतिपाला॥
भाल चंद्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाए। मुण्डमाल तन छार लगाए॥
वस्त्र खाल बाघंबर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥

मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहं कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥

देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महं मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥

प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥
कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥

एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥
मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥

धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥

नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥
ॠनिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥

पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे॥

कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

॥दोहा॥

नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण

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