Jagannath Rath Yatra 2025: आषाढ़ मास की द्वितीया तिथि पर भगवान जगन्नाथ भाई बलभद्र और सुभद्रा के साथ भ्रमण पर निकलते हैं. शुक्रवार, 27 जून, 2025 को जगन्नाथ रथयात्रा का त्योहार मनाया जाएगा. दृक पंचांग के अनुसार, 27 जून को आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि है. सूर्योदय सुबह 5:09 और सूर्यास्त शाम 6:52 बजे होगा. विशेष समय जग के नाथ जगन्नाथ अपने भाई और बहन संग भ्रमण पर निकलेंगे. भारत के ओडिशा राज्य का पुरी नगर हर वर्ष एक अनूठे और विशाल धार्मिक उत्सव का साक्षी बनता है, जिसे 'जगन्नाथ रथ यात्रा' के नाम से जाना जाता है. यह पर्व हिन्दू धर्म की समृद्ध परंपरा, भक्ति और सामाजिक समरसता का प्रतीक है.
साल एक बार भक्तों के बीच पहुंचते हैं महाप्रभु
रथ यात्रा का मुख्य उद्देश्य भगवान जगन्नाथ का अपने भक्तों के बीच वार्षिक भ्रमण है. इस दिन भगवान अपने भाई-बहन के साथ विशाल रथों पर सवार हो नगर भ्रमण पर निकलते हैं. यात्रा का गंतव्य गुंडिचा मंदिर होता है, जिसे राजा इन्द्रद्युम्न की पत्नी रानी गुंडिचा ने बनवाया था. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान कुछ दिनों तक इसी मंदिर में निवास करते हैं. इस दौरान भक्तगण उन्हें न केवल रथों को खींचकर सम्मान देते हैं, बल्कि सजीव भक्ति का दर्शन भी कराते हैं.
रथ यात्रा के चौथे दिन एक और महत्वपूर्ण परंपरा ‘हेरा पंचमी' का आयोजन होता है. इस दिन देवी लक्ष्मी अपने पति भगवान जगन्नाथ की खोज में गुंडिचा मंदिर जाती हैं. यह एक विशेष सांस्कृतिक और धार्मिक दृश्य होता है, जो भगवान और देवी के रिश्ते की गहराई को दर्शाता है.
8 दिन बाद मंदिर लौटते हैं भगवान
गुंडिचा मंदिर में आठ दिन व्यतीत करने के बाद भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा पुनः अपने मुख्य मंदिर लौटते हैं. इस वापसी को ‘बहुदा यात्रा' कहा जाता है. वापसी के मार्ग में भगवान एक विशेष स्थान पर ठहरते हैं, जिसे 'मौसी मां मंदिर' के नाम से जाना जाता है. यह मंदिर देवी अर्धाशिनी को समर्पित है और इसका धार्मिक महत्व बहुत गहरा है.
पुरी की रथ यात्रा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एक जीवंत सांस्कृतिक उत्सव भी है. इसमें देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु और पर्यटक भाग लेते हैं. विदेशी श्रद्धालु इसे ‘पुरी कार फेस्टिवल' के नाम से भी जानते हैं. यह पर्व न केवल भक्ति की शक्ति को दर्शाता है, बल्कि यह सामाजिक एकता, समर्पण और सांस्कृतिक धरोहर का अनुपम उदाहरण भी है.
ये रथ 5 तरह की खास लकड़ियों से पूरी तरह हाथों से बनाए जाते हैं. रथ बनाने की पूरी प्रक्रिया में लोहे की कोई कील नहीं लगाई जाती, केवल लकड़ी के खूंटों और जोड़ का उपयोग किया जाता है. गवान जगन्नाथ के लिए ‘गरुड़ध्वज' या ‘नंदीघोष', बलभद्र के लिए ‘तालध्वज' और सुभद्रा जी के लिए ‘पद्म रथ' या ‘दर्पदलन कहते हैं. भगवान जगन्नाथ का रथ लाल-पीला, बलभद्र का लाल-हरा और सुभद्रा का रथ लाल-काला होता है. भगवान जगन्नाथ श्रीगुंडिचा मंदिर में यानी अपनी मौसी के घर में पूरे सात दिन रुकते हैं.
यहां रुकता है रथ
रथ यात्रा से जुड़ी एक कथा और है जो काफी प्रचलिह है. हर साल जब रथ यात्रा निकाली जाती है, तब भगवान जगन्नाथ का रथ सालबेग की मजार के सामने से गुजरता है तो वह कुछ देर के लिए अपने आप ही रुक जाता है. ऐसी मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ का सालबेग नामक एक मुस्लिम भक्त था, जिसे भगवान ने एक बार सपने में दर्शन दिए थे. उसके बाद उसी क्षण सालबेग ने प्रभु के चरणों में प्राण त्याग दिए थे. बाद में जब भगवान की रथ यात्रा निकली, तो रथ अचानक मजार के पास आकर रुक गया. तब लाखों की भीड़ ने प्रभु से सालबेग की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की थी. तभी से यह परंपरा बन गई कि रथ यात्रा के दौरान सालबेग की मजार पर रोका जाता है.
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