Dussehra 2024: विजयदशमी (Vijayadashami) का त्योहार अन्याय पर न्याय की जीत का प्रतीक है. इस दिन हमारे देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग तरह से दशहरा (Dussehra) पर्व उत्साह के साथ आयोजित किये जाते हैं. आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दशहरे का पर्व मनाया जाता है. इस दिन बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में रावण (Ravan Dahan) के पुतले का दहन किया जाता है व भगवान राम (Lord Ram) की पूजा की जाती है. विजयदशमी का पर्व पूरे भारत में बुराई पर अच्छाई की, असत्य पर सत्य की, अनैतिकता पर नैतिकता की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है. कई जगह इस दिन 'दुर्गा मूर्ति विसर्जन' समारोह उत्साह के साथ मनाया जाता है. यह पर्व भारत की सांस्कृतिक एकता का उदाहरण है. यह त्योहार हमें नैतिकता, सच्चाई और अच्छाई के शाश्वत जीवन मूल्यों को आत्मसात करने और शांति तथा सद्भाव का जीवन जीने के लिए प्रेरित करता. आइए जानते हैं दशहरा यानी विजयदशमी के त्योहार और इससे जुड़ी अहम जानकारियां.
शस्त्र पूजा की विधि (Sashtra Puja)
विजया दशमी का पर्व यानी दशहरे के दिन शस्त्रों की पूजा करने का विधान है. यह परंपरा काफी पुरानी है. सिर्फ घरों में नहीं बल्कि सैन्य संगठनों द्वारा भी इस दिन शस्त्रों की पूजा की जाती है. षोडष मातृका में छठे क्रम की जो देवी हैं, उनका नाम विजया है. जगजननी माता भवानी का की दो सखियों के नाम भी जया-विजया है. इनमें से ही एक के नाम पर विजयादशमी का पर्व मनाया जाता है. यह पर्व शस्त्र द्वारा देश की सीमाओं की रक्षा करने वालें एवं कानून की रक्षा करने वाले अथवा शस्त्र का किसी अन्य कार्य में उपयोग करने वालें लोगों लिए अति महत्वपूर्ण होता है. इस दिन यह सभी अपने शस्त्रों का पूजन करते है, क्योंकि यह शस्त्र ही इनके प्राणों की रक्षा करते है तथा भरण पोषण का कारण भी है. इन्ही अस्त्रों में विजया देवी का वास मान कर इनका पूजन किया जाता है.
शस्त्र पूजा शुभ मुहूर्त (Sashtra Puja Muhurat)
दशहरा के दिन शस्त्र पूजा (Shastra puja) के लिए विजय मुहूर्त का समय सबसे उपयुक्त और शुभ माना जाता है. इस साल दशहरा के शस्त्र पूजन के लिए शुभ मुहूर्त दोपहर 2 बजकर 02 मिनट से शुरू होगा, आप दोपहर 2 बजकर 48 मिनट तक पूजा कर सकते हैं.
दशहरा की कथा (Dussehra Katha)
पौराणिक कथाओं और मान्यताओं के अनुसार हमारे देश में शक्ति की उपासना पुरातन काल से की जाती रही है. इसके कई प्रमाण हमारे धर्म ग्रंथों में भी मिलते हैं. भगवान श्रीराम ने भी रावण वध करने से पहले आराधना कर शक्ति को प्रसन्न किया था. जब राम-रावण युद्ध चल रहा था तब नारदजी ने श्रीराम को शक्ति की आराधना करने के लिए कहा था. श्रीराम ने ऐसा ही किया. उन्होंने आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नौ दिनों का व्रत रखकर मां दुर्गा की पूजा प्रतिदिन कमल के बारह पुष्प अर्पित करते हुए की. अष्टमी की मध्यरात्रि को भगवती ने उन्हें साक्षात दर्शन दिए और कहा कि हे नरोत्तम! देवताओं के अंश से उत्पन्न ये वानर मेरी शक्ति से संपन्न होकर आपके सहायक होंगे. आपके अनुज लक्ष्मण मेघनाद का वध करेंगे और आप स्वयं पापी रावण का संहार करेंगे. ऐसा कहकर देवी अंतर्ध्यान हो गईं.
तभी से आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दशहरे का पर्व मनाया जाता है. इस दिन बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में रावण के पुतले का दहन किया जाता है व भगवान राम की पूजा की जाती है.
दशहरा शुभ मुहूर्त (Dussehra Subh Muhurat)
दशहरे का शुभ मुहूर्त दशमी तिथि यानी 12 अक्टूबर को सुबह 10 बजकर 58 मिनट से शुरू होगा और 13 अक्टूबर 2024, सुबह 09 बजकर 08 मिनट तक रहेगा. दशहरा पर्व शनिवार 12 अक्टूबर को मनाया जाएगा. इसके बाद प्रदोष काल में रावण दहन किया जाएगा. रावण दहन का शुभ मुहूर्त शाम 05 बजकर 54 मिनट से शाम 07 बजकर 26 मिनट तक है. जबकि पूजा के लिए सबसे शुभ मुहूर्त दोपहर 2 बजकर 02 मिनट से दोपहर 2 बजकर 48 मिनट तक होगा.
दशहरा पूजाविधि और मंत्र (Dussehra Puja Vidi)
दशहरे के दिन सुबह जल्दी नित्यकर्मों से निवृत्त होकर अपने घर के उत्तर भाग में एक सुंदर मंडप बनाएं. उसके बीच में एक वेदी बनाएं. इसके बीच में भगवान श्रीराम व माता सीता की प्रतिमा को स्थापित करें. श्रीराम व माता सीता की पंचोपचार (गंध, चावल, फूल, धूप, दीप) से पूजन करें.
दशहरा पूजन के लिए घर में साफ- सफाई बहुत जरूरी है. सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लीजिए और फिर साफ कपड़े पहनिए. इसके बाद गेहूं और चूने से दशहरे की मूर्ति बना लीजिए. साथ पूजन की तैयारी शुरू कर दीजिए जिसके लिए गाय के गोबर से 9 गोले और 2 कटोरियां बनाकर, एक कटोरी में सिक्के और दूसरी कटोरी में रोली, चावल, जौ और फल रख दें. इसके बाद आप मूर्ति को केले, जौ, गुड़ और मूली चढ़ा दीजिए और पूजा के बाद दान-दक्षिणा करें और गरीबों को भोजन कराएं.
इसके बाद यह मंत्र (Puja Mantra) बोलें (Dussehra Puja Mantra)
मंगलार्थ महीपाल नीराजनमिदं हरे।
संगृहाण जगन्नाथ रामचंद्र नमोस्तु ते।।
ऊँ परिकरसहिताय श्रीसीतारामचंद्राय कर्पूरारार्तिक्यं समर्पयामि।
आरती (Dussehra Aarti)
मंत्रोपचार के बाद किसी पात्र (बर्तन) में कपूर तथा घी की बत्ती (एक या पांच अथवा ग्यारह) जलाकर भगवान श्रीसीताराम की आरती उतारें व गाएं.
आरती कीजै श्रीरघुबर की, सत चित आनंद शिव सुंदर की।।
दशरथ-तनय कौसिला-नंदन, सुर-मुनि-रक्षक दैत्य निकंदन,
अनुगत-भक्त भक्त-उर-चंदन, मर्यादा-पुरुषोत्तम वरकी।।
निर्गुन सगुन, अरूप, रूपनिधि, सकल लोक-वंदित विभिन्न विधि,
हरण शोक-भय, दायक सब सिधि, मायारहित दिव्य नर-वरकी।।
जानकिपति सुराधिपति जगपति, अखिल लोक पालक त्रिलोक-गति,
विश्ववंद्य अनवद्य अमित-मति, एकमात्र गति सचारचर की।।
शरणागत-वत्सलव्रतधारी, भक्त कल्पतरु-वर असुरारी,
नाम लेत जग पवनकारी, वानर-सखा दीन-दुख-हरकी।।
आरती के बाद हाथ में फूल लेकर यह मंत्र बोलें-
नमो देवाधिदेवाय रघुनाथाय शार्गिणे।
चिन्मयानन्तरूपाय सीताया: पतये नम:।।
ऊँ परिकरसहिताय श्रीसीतारामचंद्राय पुष्पांजलि समर्पयामि।
इसके बाद फूल भगवान को चढ़ा दें और यह श्लोक बोलते हुए प्रदक्षिणा करें-
यानि कानि च पापानि ब्रह्महत्यादिकानि च।
तानि तानि प्रणशयन्ति प्रदक्षिणपदे पदे।।
इसके बाद भगवान श्रीराम को प्रणाम करें और कल्याण की प्रार्थना करें. इस प्रकार भगवान श्रीराम का पूजन करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं.
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