काम में लेटलतीफी से 40% घटती है विश्वसनीयता, नई नौकरी मिलने की संभावना भी 30% हो जाती है कम

Office Employees: रिसर्च में पाया गया कि जिन लोगों ने अपना काम समय से पहले या टाइम पर जमा किया था, उनके काम की गुणवत्ता को एक जैसा माना गया, लेकिन जिन लोगों ने भले ही एक दिन देर से जमा किया हो, उनके काम को कम गुणवत्ता वाला माना गया है और इससे ऐसे लोगों को नए अवसर और नई नौकरी मिलने की संभावना में 30 फीसदी कम हो जाती है.

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New Research of Office Employees

Office Work Culture:  दफ्तर में काम को टालने वाले, लेट-लतीफी करने वाले लोगों के लिए बुरी खबर है. एक रिसर्च के मुताबिक काम प्रति गैर जिम्मेदार रहने वाले लोगों की विश्वसनीयता 40 फीसदी तक घट जाती है और ऐसे टाइप के लोगों का करियर ग्राफ लगातार नीचे जाता है, क्योंकि ऐसे लोगों को नए और अच्छे काम मिलने की संभावना 30 फीसदी तक कम हो जाती है. 

रिसर्च के मुताबिक शोध के लिए मैनेजमेंट, एचआर और कई अन्य पेशेवरों से बात की गई और पाया गया कि जिन कर्मचारियों ने अपना प्रोजेक्ट या असाइनमेंट देर से जमा किया था, उनकी विश्वसनीयता 40 फीसदी कम आंकी गई इसके कारण कर्मचारी की बॉस के सामने नेगेटिव छवि बनती है, जो उनके करियर पर असर डाल सकता है.

प्रोफेश्नल ही नहीं, पर्सल लाइफ को प्रभावित करती है लेटलतीफी

गौरतलब है कुछ लोगों की आदत होती है कि वो काम को तब तक टालते हैं, जब तक उसकी डेडलाइन उनके सिर पर न आ जाए (Procrastination. ऐसा जरूरी नहीं कि यह लेट-लतीफी में दफ्तर के लिए होता है, बल्कि काम में देरी एक आदत में शुमार हो चुकी होती है.अपने काम को डेड लाइन तक टालते रहने की आदत का असर (Late Work) प्रोफेश्नल ही नहीं, पर्सल लाइफ को प्रभावित करती है, जो प्रोफेशनल डवलेपमेंट को नुकसान पहुंचाती है 

रिसर्च में शामिल हुए अमेरिका-ब्रिटेन के प्रोफेश्नल्स हुए शामिल

करीब 7 हजार प्रोफेशनल्स पर हुए शोध में पाया गया कि जो डेडलाइन बीतने के बाद काम जमा करते हैं, उनके काम को कम गुणवत्ता वाला माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि उनका काम अच्छी क्वालिटी का नहीं होगा या उसे करने में पूरी मेहनत नहीं की गई है. इतना ही नहीं, ऐसा करने से कर्मचारी की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठने लगते हैं और उन्हें किसी बड़े प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी सौंपे की संभावना बेहद कम होती है. 

 डेडलाइन मिस करने से घटती है कर्मचारी की विश्वसनीयता

रिसर्च में पाया गया कि जिन लोगों ने अपना काम समय से पहले या टाइम पर जमा किया था, उनके काम की गुणवत्ता को एक जैसा माना गया, लेकिन जिन लोगों ने भले ही एक दिन देर से जमा किया हो, उनके काम को कम गुणवत्ता वाला माना गया है और इससे ऐसे लोगों को नए अवसर और नई नौकरी मिलने की संभावना में 30 फीसदी कम हो जाती है.

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साइकोलॉजिकल टर्म में इसे अटेंशन-डेफ़िसिट/हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (ADHD) कहा जाता है. इससे ग्रसित व्यक्ति की एकाग्रता कम होती है, उसे समय पर पहुंचने में दिक्कत होती है. पीड़ित किसी काम को पूरा करने या कहीं पहुंचने में कम समय का अंदाज़ा लगा पाते हैं. पीड़ित चिंता या डर होने की वजह से टाल-मटोल करतै हैं.

लेटलतीफ कर्मचारी को कार्यालय में कम भरोसेमंद माना जाता है.

रिसर्च में यह बात भी सामने आई कि काम में लेट-लतीफी करने वाले कर्मचारी को कम भरोसेमंद माना जाता है. डेडलाइन मिस करने वाले लापरवाह माने जाते हैं, इसके कारण मैनेजमेंट के सामने ऐसी छवि बनती है कि इस कर्मचारी पर भविष्य में भरोसा नहीं किया जा सकता है.

ऐसे कर्मचारियों के प्रमोशन की भी कम हो जाती है संभावना

शोध में कहा गया है कि लेट-लतीफी और गैर-जिम्मेदार कर्मचारियों का प्रमोशन या नई जिम्मेदारी मिलने की संभावना भी 30% कम हो जाती है. ऐसा कर्मचारी की लेट-लतीफी की आदत से हो सकने वाले नुकसान से बचने के लिए किया जाता है.हालांकि लेट-लतीफी के वाजिब कारण मैनेटमेंट से शेयर करने से नुकसान की संभावना को कम हो सकती है.

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लेटलतीफी से ग्रसित कर्मचारी में होती है एकाग्रता की कमी

साइकोलॉजिकल टर्म में इसे अटेंशन-डेफ़िसिट/हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (ADHD) कहा जाता है. इससे ग्रसित व्यक्ति की एकाग्रता कम होती है, उसे समय पर पहुंचने में दिक्कत होती है. पीड़ित किसी काम को पूरा करने या कहीं पहुंचने में कम समय का अंदाज़ा लगा पाते हैं. पीड़ित चिंता या डर होने की वजह से टाल-मटोल करतै हैं. 

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