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भोलेनाथ के पुत्र मुरुगन को समर्पित 'मासिक कार्तिगाई' बेहद खास, दीप जलाने से दूर होती है नकारात्मकता

Kartigai Dipam: पुराणों के अनुसार मासिक कार्तिगाई, जिसे मासिक कार्तिगाई दीपम भी कहते हैं, त्योहार हर महीने तब मनाया जाता है जब चंद्र मास के दौरान कार्तिगाई नक्षत्र प्रबल होता है.

भोलेनाथ के पुत्र मुरुगन को समर्पित 'मासिक कार्तिगाई' बेहद खास, दीप जलाने से दूर होती है नकारात्मकता

Ashadh Dwadashi: आषाढ़ कृष्ण पक्ष द्वादशी तिथि को रविवार पड़ रहा है इस दिन सूर्य देव मिथुन राशि में रहेंगे, वहीं चंद्रमा मेष से वृषभ राशि में प्रवेश करेंगे इस दिन मासिक कार्तिगाई, गौण योगिनी एकादशी और वैष्णव योगिनी एकादशी का योग बन रहा है .पंचांग के अनुसार, इस दिन अभिजीत मुहूर्त सुबह 11:55 से दोपहर के 12:51 बजे तक रहेगा और राहूकाल का समय शाम 05:38 से 07:22 तक रहेगा वैसे तो योगिनी एकादशी 21 जून को है, लेकिन वैष्णव एकादशी अगले दिन यानी 22 जून को मनाई जाएगी.

जब मासिक कार्तिगाई, गौण योगिनी और वैष्णव योगिनी एकादशी एक ही दिन पड़ते हैं, तो यह तिथि अत्यंत पुण्यदायी और दुर्लभ मानी जाती है इन तीनों का संयोग आध्यात्मिक उन्नति, पापों से मुक्ति और दिव्य फल की प्राप्ति के लिए अत्यंत शक्तिशाली माना जाता है.

पुराणों के अनुसार मासिक कार्तिगाई, जिसे मासिक कार्तिगाई दीपम भी कहते हैं, त्योहार हर महीने तब मनाया जाता है जब चंद्र मास के दौरान कार्तिगाई नक्षत्र प्रबल होता है. यह भगवान शिव और उनके पुत्र भगवान मुरुगन (कार्तिकेय) को समर्पित है और इसे अंधकार पर प्रकाश की विजय के रूप में मनाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव की पूजा करने और दीप जलाने से जीवन से नकारात्मकता दूर होती है.

गौण योगिनी एकादशी भले ही द्वितीय श्रेणी की मानी जाती हो, लेकिन इसका व्रत रखने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. विशेष रूप से यह व्रत रोग, दरिद्रता और मानसिक क्लेशों को हरता है.

पद्म पुराण और स्कंद पुराण के अनुसार, वैष्णव योगिनी एकादशी का व्रत 88,000 ब्राह्मणों को भोजन कराने के समान पुण्य देता है। यह व्रत पापों का नाश करता है, विशेष रूप से पूर्व जन्मों के पापों से मुक्ति दिलाता है। यह कुष्ठ रोग और अन्य शारीरिक व्याधियों से राहत देता है.

गौण योगिनी एकादशी गृहस्थ लोगों के लिए है, जबकि वैष्णव योगिनी एकादशी वैष्णव संप्रदाय के लोगों के लिए है. गृहस्थ लोग 22 जून को दोपहर में व्रत तोड़ेंगे, वहीं वैष्णव जन 23 जून को सूर्योदय के बाद व्रत तोड़ेंगे.

इन तीनों का एक साथ आना एक दुर्लभ संयोग होता है, जिसमें उपवास, दान, दीपदान, विष्णु-स्मरण और शिव पूजन विशेष फलदायक सिद्ध होते हैं. इस दिन एकाग्रता से पूजा, व्रत और मंत्र जाप करने से सौभाग्य, आरोग्य और आध्यात्मिक सिद्धि की प्राप्ति होती है.

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