भोपाल की काली बाड़ी में बंगाली हिंदू महिलाओं ने मनाया 'सिन्दूर खेला', 450 साल पुरानी परंपरा

विजयादशमी के दिन यह होली खेली जाती है. कहा जाता है कि नौ दिनों तक मां दुर्गा अपने मायके में रहती हैं और दसवें दिन पूरे रीती-रिवाज़ के साथ सबसे विदा लेती हैं.

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जानें सिंदूर खेला रस्म का इतिहास

Sindoor Khela in Bhopal : दुर्गापूजा उत्सव के अंतिम दिन यानी दशहरा (Dussehra) पर माता की विदाई से पहले 'सिंदूर खेला' की रस्म निभाई जाती है. बंगाली हिन्दू महिलाएं इस रस्म को निभाती हैं. सिंदूर खेला (Sindoor Khela) यानी ‘सिंदूर का खेल' या सिंदूर से खेली जाने वाली होली. यह अनोखी होली बंगाल (Bengal) से लेकर काशी (Kashi) तक मनाई जाती है. दुर्गा पूजा पंडालों में भी यह रस्म निभाई जाती है. इसे सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता है. इसके अलावा मान्यता यह भी है कि सिंदूर खेला से पति की आयु भी बढ़ती है. यह रस्म मंगलवार को मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) की राजधानी भोपाल (Bhopal) में भी देखने को मिली जहां बंगाली हिंदू महिलाओं ने जमकर सिंदूर खेल किया और धनुचि नृत्य भी किया. 

महिलाओं ने निभाईं सभी रस्में

दरअसल यहां बंगाली समाज के लोगों की ओर से माता की विदाई से पहले वे सभी रस्में निभाई गईं जो बेटी की विदाई के वक्त मायके में निभाई जाती हैं. इसी के तहत बंगाली महिलाओं ने देवी को सिंदूर चढ़ाया. उसके बाद दही, पेड़ा और जल अर्पण किया गया. माता को चढ़ाया गया यही सिंदूर महिलाओं ने भी लगाया. फिर इसी सिंदूर को एक-दूसरे को लगाया और सिंदूर की होली खेली. 

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450 साल पुराना है इतिहास

जानकारी के मुताबिक, सिंदूर खेला की इस रस्म की परंपरा 450 साल से अधिक पुरानी है. इसकी शुरुआत बंगाल से हुई थी और अब काशी समेत देश के अलग-अलग जगहों पर इसकी खासी रंगत देखने को मिलती है.

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दशहरा के दिन मनाई जाती है रस्म

पूरे प्रदेश में यह त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है. विजयादशमी के दिन यह होली खेली जाती है. कहा जाता है कि नौ दिनों तक मां दुर्गा अपने मायके में रहती हैं और दसवें दिन पूरे रीती-रिवाज़ के साथ सबसे विदा लेती हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सिंदूर खेला से देवी भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

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