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This Article is From Jul 10, 2023

रायसेन : 2 विश्व धरोहरों वाला इकलौता जिला है रायसेन,टूरिज्म का माना जाता है केंद्र

रायसेन में विश्व धरोहर सांची बौद्ध स्तूप और भीमबेटका तो हैं ही, इसके साथ ही भोजपुर का विशाल शिव मंदिर, रायसेन किला, जामगढ़-भगदेई मंदिर, आशापुरी मंदिर, द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया समेत कई पर्यटन स्थल हैं.रायसेन किला को अजेय दुर्ग कहा जाता है.

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रायसेन : 2 विश्व धरोहरों वाला इकलौता जिला है रायसेन,टूरिज्म का माना जाता है केंद्र

रायसेन की पहचान धरोहरों से है. ये मध्यप्रदेश का इकलौता ऐसा जिला है, जिसे दो विश्व धरोहर (World Heritage) होने का गौरव मिला है. ये जिला पुरासंपदाओं और शैलचित्रों (Rock Paintings) से समृद्ध है. जितनी बड़ी संख्या में रॉक शेल्टर और रॉक पेंटिंग इस जिले में है, किसी दूसरे जिले या देश में शायद ही होंगी. ऐतिहासिक और मध्यकाल में बनी ये रॉक पेंटिंग्स आज भी वैसी की वैसी ही है. यही कारण है कि रायसेन को 'विश्व धरोहरों की राजधानी' भी कहते हैं. सांची बौद्ध स्तूप और भीमबेटका विश्व प्रसिद्ध हैं, जिन्हें देखने विदेश से भी पर्यटक पहुंचते हैं.

विश्व धरोहर है रायसेन की पहचान
रायसेन में विश्व धरोहर सांची बौद्ध स्तूप और भीमबेटका तो हैं ही, इसके साथ ही भोजपुर का विशाल शिव मंदिर, रायसेन किला, जामगढ़-भगदेई मंदिर, आशापुरी मंदिर, द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया समेत कई पर्यटन स्थल हैं.रायसेन किला को अजेय दुर्ग कहा जाता है. कई बड़े राजाओं का यहां शासन रहा है.  यहां कई बार हमले हुए लेकिन कोई भी इस नायाब तरीके से बने किले में सेंध नहीं लगा पाया.

साँची बौद्ध स्तूप और 'किला' देखने दुनिया भर से आते हैं पर्यटक 

सांची का स्तूप बेतवा नदी के किनारे स्थित है. इस स्थल को यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल किया गया है. इस धार्मिक स्थल को देखने के लिए देश ही नहीं दुनिया भर से पर्यटक यहां आते हैं.

इसके अलावा रायसेन का किला एक ऐतिहासिक पर्यटन स्थल है. इस किले को घूमने के लिए पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है. इस किले में 40 कुओं का जल संरक्षण हो सकता है ऐसा यंत्र लगा हुआ है. इस किले में नौ प्रवेशद्वार हैं. 

पहाड़ी की चोटी पर बसे विशाल किले से है जिले का नाम
एक पहाड़ी की चोटी पर विशाल रायसेन किला मौजूद है. इसी के नाम पर शहर का नाम रखा गया है. 16वीं शताब्दी की शुरुआत में रायसेन पर मुगल सेना ने एक बार नहीं बार-बार हमले किए. तब 1528 में पहले जौहर का नेतृत्व रानी चंदेरी ने किया. जब मुगल सेना गई तब राज्य ने दिल्ली सल्तनत का आदेश मानने से साफ इनकार कर दिया था.

मुगल शासन को न मानने के लिए रायसेन किले की घेराबंदी के बाद रानी दुर्गावती समेत रायसेन की 700 महिलाओं ने 1532 में दूसरा जौहर किया. तीसरा जौहर 1543 में रानी रत्नावली के नेतृत्व में हुआ.

यही कारण है कि रायसेन का इतिहास काफी गौरवशाली माना जाता है.

रायसेन की खास बातें

  • जनसंख्या- 13.32 लाख
  • साक्षरता- 72.98 प्रतिशत
  • तहसील- 8
  • विधानसभा- 4
  • लोकसभा- 2
  • उत्पादन- गेहूं आटा और मैदा
  • प्रमुख व्यंजन- मावा बाटी

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