
जल-जंगल-जमीन-जनजाति की धरोहर समेटे कांकेर छत्तीसगढ़ राज्य का एक नक्सल प्रभावित जिला है, जो विकास की ओर कदम बढ़ा रहा है. राज्य की राजधानी रायपुर से 140 किलोमीटर दूर स्थित कांकेर पहाड़ की सुंदरता और और नदियों की चंचलता समेटे यह मनोरम प्राकृतिक छटा वाला एक आकर्षक पर्यटन केंद्र भी है.
महाराष्ट्र की सीमा से लगा होने के चलते इसपर मराठी लोक संस्कृति का प्रभाव भी है.
90 फीसदी इलाके अतिसंवेदनशील
कांकेर पहले बस्तर जिले का हिस्सा था, पर नक्सलियों की गतिविधियों पर काबू पाने के मकसद से 25 मई 1998 को बस्तर के उत्तरी भाग को अलग कर उत्तर बस्तर कांकेर जिला बना दिया गया. हालांकि नक्सलवाद को खत्म करने की चुनौती आज भी यहां बनी हुई है और कांकेर का तकरीबन 90 प्रतिशत भाग अब भी नक्सली गतिविधियों के कारण अतिसंवेदनशील बना हुआ है.
पाषाण युग से जुड़ा है इतिहास
कांकेर का इतिहास पाषाण युग से शुरू होता है. यहां के गोटीटोला, खैरखेड़ा और चंदेली नामक स्थानों पर पुरापाषाण कालीन शैल चित्र मिले हैं. इसके अलावा
पहली से दूसरी शताब्दी ई. में यहां सातवाहन वंश का शासन था. इनके बाद के काल में इस इलाके में नाग वंश, वाकाटक वंश, गुप्त वंश, नल वंश तथा चालुक्यों का शासन रहा. मध्य काल में सोम वंश, कंदरा वंश तथा चन्द्र वंश ने भी शासन यहां किया. इस क्षेत्र पर बौद्ध धर्म का प्रभाव छठी शताब्दी ईसा पूर्व में शुरू हुआ. 1800 ई. के पूर्व कांकेर रियासत के राजा धर्म देव ने राजधानी गढ़िया पहाड़ के ऊपर समतल मैदान पर स्थापित की थी, पर कुछ समय के बाद पहाड़ी के नीचे कांकेर में राजधानी स्थानांतरित की गई. अंग्रेजी शासन के प्रभाव वाले राजा रूद्र प्रताप देव के राज्याभिषेक के बाद 1910 यहां आदिवासियों द्वारा बड़ा विद्रोह हुआ, जिसे बस्तर का विद्रोह के नाम से जाना जाता है.
1857 की गदर से पहले यहां हुआ था विद्रोह
1857 में अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ हुए विद्रोह को भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम माना जाता है, पर इससे भी पहले 1825 में बस्तर में परलकोट विद्रोह का विद्रोह हुआ था. जमींदार गेंद सिंह के नेतृत्व में हुआ यह विद्रोह एक आदिवासी/जनजातीय विद्रोह था अबूझमाड़ियों के द्वारा किया गया विद्रोह था। जिसे अंग्रेज एवं मराठो के शोषण के विरोध में प्रारम्भ किया गया था. आदिवासी क्षेत्र में गैर-आदिवासियों के दखल से नाराज आदिवासी 4 जनवरी, 1825 को पारम्परिक अस्त्र-शस्त्रों से लैस होकर परलकोट में एकत्र हो गये। इन्होंने अंग्रेज एवं मराठा अधिकारियों पर हमला बोल दिया.अंग्रेज और मराठा की संयुक्त सेना ने 10 जनवरी 1825 में परलकोट को घेर लिया. आदिवासी इनके आधुनिक हथियारों का सामना करने में असफल रहे. विद्रोह को कुचलने के बाद गैंदसिंह को गिरफ्तार कर 20 जनवरी 1825 को फांसी दी गई.
बस्तर के गांधी से प्रभावित थे नेहरू
ठाकुर रामप्रसाद पोटाई को बस्तर (छत्तीसगढ़) का गांधी कहा जाता है. देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं.जवाहर लाल नेहरू ने इनसे प्रभावित होकर इन्हें भारतीय संविधान सभा का सदस्य बनाया था. इन्हे कांकेर जिला जनपद सभा का प्रथम अध्यक्ष बनने का गौरव भी मिला. इसके अलावा डॉ. पोटाई को सन 1950 में कांकेर का प्रथम मनोनीत सांसद बनाया गया.
ये हैं कांकेर के दर्शनीय स्थल

कांकेर पैलेस यहां के शाही परिवार का महल है जो अब होटल में तब्दील हो चुका है
कांकेर में सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थल कांकेर पैलेस है. जिसके एक बड़े भाग को अब होटल बना दिया गया है. यह 12वीं सदी के शाही परिवार का महल है, जिसमें कभी यहां के राजा उदय प्रताप सिंह देव का निवास था. चर्रे-मर्रे जलप्रपात खूबसूरत नज़ारों वाला एक झरना है. मलांजकुडूम झरना भी पर्यटकों को काफी लुभाता है. इसके साथ ही गड़िया पर्वत भी एक मनोरम स्थल है, जो यहां के इतिहास से जुड़ा है. यहां एक गुप्त गुफा और तालाब है जिसमें पानी कभी कम नहीं होता. मां शिवानी के मंदिर में मां काली और मां दुर्गा का एकाकार रूप देखने को मिलता है. परसु तोला में बोटिंग, सर्फिंग का आनंद लिया जा सकता है. सीता नदी वन्य जीव अभ्यारण्य भी प्रकृति प्रेमियों के लिए एक आकर्षण है.
कांकेर एक नज़र में
- क्षेत्रफल - 6,432 वर्ग किमी.
- जनसंख्या - 7,48,941
- जनसंख्या घनत्व - 120/वर्ग किमी
- लिंगानुपात - 1007
- साक्षरता दर - 70.97%
- तहसीलें - (7) कांकेर, चारामा, नरहरपुर, भानुप्रतापपुर, अंतागढ़, दुर्गुकोंदल, कोयलीबेडा
- विधानसभा क्षेत्र - (3) भानुप्रतापपुर (ST), अंतागढ़ (ST), कांकेर (ST)