कांकेर : मणिपुर हिंसा को लेकर आदिवासी दिवस ने निकाली जन आक्रोश रैली, हजारों लोग रहें मौजूद

रैली में जमकर नारेबाजी करते हुए मणिपुर में आदिवासियों पर हो रहे अत्याचार पर अपना कड़ा रुख दिखाया. कांकेर सर्व आदिवासी समाज के नेताओ ने कहा कि आज हम आदिवासी दिवस को बड़े ही हर्सोल्लास के साथ मना सकते हैं.

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आज देशभर में विश्व आदिवासी दिवस मनाया जा रहा है. आदिवासी दिवस के उपलक्ष्य में विभिन्न कार्यक्रम किये जा रहे है. लेकिन कांकेर जिले में आदिवासी समाज ने अपना आक्रोश वक्त करते हुए दिवस मनाया. उन्होंने हजारों की संख्या में समाज की रैली निकाल कर अपना आक्रोश व्यक्त किया. महिलाएं, बच्चे हाथों में तख्ती लेकर विरोध करती नजर आई.

दरअसल, आज विश्व आदिवासी दिवस पर जिले भर में विभिन्न आयोजन हुए. सरकार के निर्देश के बाद प्रशासन ने भी विश्व आदिवासी दिवस कार्यक्रम का आयोजन नरहरदेव स्कूल प्रांगण में किया. यहां पहुंचने वाले ग्रामीण आदिवासियों को वन अधिकार मान्यता प्रमाण पत्र भो सौपा. मुख्यालय में समाज ने गोंडवाना भवन से मेला भाठा ग्राउंड तक विशाल जन आक्रोश रैली निकाली. जिसमे ग्रामीण अंचलों से हजारों की संख्या में आदिवासी शामिल हुए.

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रैली में जमकर नारेबाजी करते हुए मणिपुर में आदिवासियों पर हो रहे अत्याचार पर अपना कड़ा रुख दिखाया. कांकेर सर्व आदिवासी समाज के नेताओ ने कहा कि आज हम आदिवासी दिवस को बड़े ही हर्सोल्लास के साथ मना सकते हैं. लेकिन मणिपुर की घटना ने  आदिवासी समुदाय के लोग को इस दिवस को आक्रोश रैली के रूप में मनाने के लिए मजबूर कर दिया है. हमने अपनी संवैधानिक संरक्षिका महामहिम राष्ट्रपति महोदया तक इन गंभीर राष्ट्रीय मुद्दों पर पूरी संवेदनशीलता के साथ ध्यान आकर्षित किया. देश में आज आदिवासियों के साथ जिस तरह शोषण,अत्याचार, मानवीय हिंसा, सामूहिक बलात्कार आदि मानवता को शर्मसार करने वाली घटनाओं जैसे कई गंभीर मुद्दे आज भी सभी राज्यों में गूंज रहे हैं . समाज ने मणिपुर में आदिवासियों के साथ हो रहे अत्याचार, हिंसा, महिलाओं के साथ हो रहे अमानवीय दुर्व्यवहार को रोकने व दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करते हुए राष्ट्रपति के नाम प्रशासन को अपना ज्ञापन सौप कर शांति बहाली करने मांग की.
 

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ये भी रहे मुद्दे

समान नागरिक संहिता बिल (यू सी सी) को आदिवासी वर्ग से पृथक रखा जाए. चूंकि आदिवासी समुदाय  अपने अलग रीति-रिवाज, परम्परा व रुढ़ि से शासित होने वाला समुदाय है इन परम्परागत पद्धतियों के लुप्त व अवरुद्ध होने से हम आदिवासियों के साथ ही पर्यावरण पर भी गंभीर प्रभाव पढ़ने का डर बना हुआ है अतएव समान नागरिक संहिता से आदिवासी समुदाय को पृथक रखा जाये.

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पर्यावरण एवं वनों की सुरक्षा हेतु वन संरक्षण कानून में संशोधन 2023 को अनुसुचित जनजातीय क्षेत्रों से  पृथक रखने या अपवाद व  उपांतरण  के साथ लागू करने की संवैधानिक व्यवस्था सुनिश्चित किया जाये.

PESA कानून के मंशा अनुरूप क्रियान्वयन हर राज्य सरकारे सुनिश्चित करें, और  वर्तमान में व्याप्त सभी कानूनों में पेसा कानून के अनुसार बदलाव सुनिश्चित किया जाए. पांचवी अनुसूचित क्षेत्रों  में स्थानीय स्वशासन के लिए पृथक से कन्फोर्मेटरी एक्ट लाया जाए.

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