कहां से शुरू हुई टैटू की परंपरा, कैसे इसके जरिए होती थी जातियों की पहचान?

गुदना, गोदना या टैटू...कुछ भी बोल लीजिए. कॉमन ये है कि सैकड़ों सदियों से ये परंपरा कायम है. मौजूदा दौर में तो युवाओं में टैटू को लेकर खास ही क्रेज है. खिलाड़ी या फिल्मी सितारे भी इससे अछूते नहीं है. लेकिन क्या आप जानते हैं टैटू की ये परंपरा कैसे शुरू हुई?

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Tattoo Tradition: गुदना, गोदना या टैटू...कुछ भी बोल लीजिए. कॉमन ये है कि सैकड़ों सदियों से ये परंपरा कायम है. मौजूदा दौर में तो युवाओं में टैटू को लेकर खास ही क्रेज है. खिलाड़ी या फिल्मी सितारे भी इससे अछूते नहीं है. लेकिन क्या आप जानते हैं टैटू की ये परंपरा कैसे शुरू हुई? आखिर हजारों सालों से परंपरा कैसे कायम है और हर गुजरते दिन के साथ इसमें दिलचस्पी क्यों बढ़ती जा रही है. मध्यप्रदेश के बैतूल जिल में कार्तिक माह में ताप्ती एवं पूर्णा नदी के किनारे जगह-जगह पर मेले लगते हैं.जहां आपको गोदना गोदने वाले या टैटू बनाने वाले नजर आ ही जाते हैं. लोक कलाओं से जुड़े महेश गुंजेले का कहना है कि टैटू को प्राचीन काल में गोदना ही कहा जाता था. इसका इतिहास एक रहस्य है,क्योंकि शरीर में गुदाई करने के युग की शुरूआत का कोई अभिलेख मौजूद नहीं हैं.

हालांकि जानकारों का कहना है कि आदिवासी समुदायों के लोगों ने प्रागैतिहासिक चट्टानों और दीवारों पर बनी आकृतियों से इसकी प्रेरणा ली. उन्होंने इसे अपनी शरीर आभूषण की तरह गुदवाया. उनका मानना था कि मरने के बाद भी इस तरह के आभूषण कोई दूर नहीं कर सकता. 


वैसे इसके पीछे की सबसे प्रमाणिक कहानी कुछ और ही मानी जाती है. प्राचीन समय में जिन लोगों के शरीर पर लेखनी बनाई गई वे ब्राह्मण हो गए, जिसे तलवार दी गई वे क्षत्रिय और जिसे हल और नागर दिया वे गोंड हो गये. जिसे जाल दिया वह केवट और जिसे ढोल मिला वो ढुलिया हो गया.

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मध्यप्रदेश की सभी जनजातियों में टैटू की परंपरा अब भी कायम है. गावों में इसे आसानी से देखा जा सकता है.

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इस कहानी का मतलब है कि गोदना जातीय पहचान से भी जुड़ी हुई चीज है. महेश गुंजेले बताते है कि मध्यप्रदेश की प्रायः सभी जातियों में गुदने का चलन है. यहां पुरुष और महिला दोनों गोदना करवाते हैं. बैगा जनजाति में ये सबसे ज्यादा लोकप्रिय है. बैगा महिलाएं पूरे शरीर पर मोटी रेखाओं से गुदना गुदवाती हैं. ऐसा माना जाता है कि गाओं के गुदने मध्यप्रदेश की सभी जनजातियों से बिल्कुल और प्राचीन हैं. 
इसके अलावा रामनामी लोगों के शरीर पर बने टैटू भी बेहद चर्चित रहे हैं. ये परंपरा 100 सालों से भी ज्यादा पुरानी है. इन लोगों ने अत्याचार के खिलाफ अपनी भक्ति से प्रदर्शन के लिए अपने पूरे शरीर पर राम के नाम का टैटू करवाया. इसके जरिए उन्होंने संदेश दिया कि प्रभु राम सभी के हैं. 

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