Patna High Court Verdict on Reservation: बिहार (Bihar) में जातीय गणना (Caste Census) के बाद बढ़ाए गए आरक्षण मामले में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Chief Minister Nitish Kumar) को बड़ा झटका लगा है. पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) ने बढ़ाए गए आरक्षण के फैसले को रद्द कर दिया है. आपको बता दें कि बिहार में महागठबंधन की सरकार ने जातीय गणना के बाद सरकारी नौकरी और उच्च शैक्षणिक संस्थानों के दाखिले में आरक्षण की सीमा बढ़ा दी थी. जिसे पटना हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आरक्षण बढ़ाए जाने (Increase Reservation) का फैसला महागठबंधन सरकार (Mahagathbandhan Sarkar) में लिया था.
सरकार ने 65 प्रतिशत किया था आरक्षण
बता दें कि जातीय गणना के बात बिहार सरकार ने नौकरी और उच्च शैक्षणिक संस्थानों के दाखिले में आरक्षण बढ़ाकर 65 प्रतिशत कर दिया था. यह फैसला जाति आधारित गणना की रिपोर्ट के आने के बाद लिया गया था. इस फैसले के चलते आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों (सवर्ण) को मिलने वाले 10 प्रतिशत आरक्षण (EWS Reservation) को मिलाकर बिहार में नौकरी और दाखिले का कोटा बढ़ाकर 75 प्रतिशत पर पहुंच गया था. सरकार के इस फैसले के बाद बिहार आरक्षण कानून को चुनौती देते हुए कई संगठनों ने पटना हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.
हाईकोर्ट ने आरक्षण को संविधान के खिलाफ बताया
याचिका दर्ज करने वाले एक संगठन के वकील गौरव कुमार ने बताया कि पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की बेंच ने बिहार आरक्षण कानून को संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के खिलाफ बताते हुए इसे रद्द कर दिया है. उन्होंने कहा कि याचिका में यह भी कहा गया था कि सीमा बढ़ाने का फैसला हड़बड़ी में लिया गया. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी कई मामलों में ऐसा फैसला दिया गया है. आपको बता दें कि जाति आधारित सर्वेक्षण की रिपोर्ट के आधार पर नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली महागठबंधन की सरकार ने ओबीसी, ईबीसी, एससी, एसटी की आरक्षण सीमा को बढ़ा दिया था.
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