जंगलराज का डर, MY का बोझ... क्यों बिहार में तेजस्वी का 'तूफान' बूथ तक नहीं पहुँचा?

Bihar Election Results 2025: बिहार चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद तेजस्वी यादव के "शपथ ग्रहण" के वादे केवल "शेख चिल्ली के हसीन सपने" बनकर रह गए, क्योंकि जनता जनार्दन ने महागठबंधन को सत्ता से कोसों दूर कर दिया. इस करारी हार के पीछे 'जंगलराज' का डर, 'MY' समीकरण पर अति-निर्भरता, और संगठनात्मक खींचतान जैसी वजहें रहीं.

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Bihar Assembly Election 2025: बिहार में जब चुनाव प्रचार शुरु हुआ तब तेजस्वी ने कहा था- 14 तारीख को रिजल्ट आएगा और 18 तारीख को मैं शपथ ग्रहण करूंगा. इसके बाद अगले साल 14 जनवरी को जीविका दीदी के खातों में 30 हजार रुपये डाले जाएंगे. इतना ही नहीं उन्होंने ये भी कहा- 20 महीने में बिहार के हर परिवार को एक सरकारी नौकरी दे दूंगा. ये बातें सुनकर तो यही लग रहा था कि तेजस्वी एंड राहुल की टीम नीतीश कुमार को कुर्सी से बेदखल करने की पूरी तैयारी में है. लेकिन 14 तारीख को जब रिजल्ट आया तो लोगों को एक मुहावरा याद आ गया. वो है- शेख चिल्ली के हसीन सपने. कहां तो सरकार बनाने की बात कर रहे थे जनता जनार्दन ने विपक्ष के नेता की कुर्सी भी नहीं दी...ऐसे में सवाल है कि आखिर लालू के लाल को इतनी करारी हार क्यों मिली? कौन सी वो वजहें रहीं जिसने महागठबंधन को सत्ता से कोसों दूर कर दिया?

जंगलराज बनाम सुशासन: नैरेटिव की निर्णायक हार

यह MGB की हार की सबसे पहली और सबसे बड़ी वजह बनी. NDA ने 90 के दशक की कानून-व्यवस्था यानि 'जंगलराज' के डर को सफलतापूर्वक लोगों के बीच पहुंचाया.

दरअसल NDA ने मतदाताओं को यह समझाने में सफल रही कि MGB की जीत अराजकता की वापसी होगी. इस डर ने उन युवा सवर्णों, शहरी मध्यम वर्ग और यहां तक कि EBC के बड़े हिस्से को भी NDA के पाले में धकेल दिया.

जिन लोगों ने लालू राज नहीं देखा था उन लोगों ने भी स्थिरता और सुरक्षा को प्राथमिकता दी. दूसरे शब्दों में कहें तो MGB का 'A to Z' का नया नैरेटिव, पुराने 'जंगलराज' के डर पर भारी नहीं पड़ पाया.

सीट बंटवारे में विलंब, खींचतान

महागठबंधन में सीट बंटवारे की खींचतान इतनी ज़बरदस्त थी कि कई बार तो एक ही सीट पर RJD और कांग्रेस दोनों ने दावा ठोक दिया. जिससे न केवल कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटा, बल्कि प्रचार का महत्वपूर्ण समय भी बर्बाद हुआ. करीब 10-12 सीटें ऐसी हो गईं जहां फ्रैंडली फाइट की नौबत आ गई. खुद तेजस्वी को CM कैंडिडेट घोषित करवाने के लिए तमाम पैंतरे आजमाने पड़े. ये मामला सुलझा तो डिप्टी CM को लेकर मुकेश साहनी की जिद ने भी गलत संदेश प्रसारित किया. हालात संभालने के लिए कांग्रेस ने अपने वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत को पटना में कैंप कराया लेकिन तबतक शायद बहुत देर हो गई थी. यह खींचतान NDA की नेतृत्व की स्पष्टता के सामने फीकी पड़ गई.

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महिला वोट बैंक का निर्णायक मौन समर्थन

तेजस्वी यादव ने चुनाव में जीविका दीदियों के खाते में 30,000 रुपये डालने जैसे बड़े-बड़े लोकलुभावन वादे किए थे. इसके बावजूद, महिला मतदाताओं ने निर्णायक रूप से महागठबंधन को अस्वीकार कर दिया. महिलाओं ने NDA के साथ 'भरोसे' को प्राथमिकता दी. उन्होंने देखा कि NDA सरकार ने शराबबंदी, शौचालय, साइकिल और स्वयं सहायता समूहों (SHG) के माध्यम से नियमित ऋण जैसी योजनाएं पहले ही धरातल पर उतार दी हैं.

MGB 'जंगलराज' के टैग के कारण महिलाओं को यह विश्वास नहीं दिला सका कि नई सरकार आने पर उनकी सुरक्षा और घर की शांति भंग नहीं होगी.

इसे ऐसे समझ सकते हैं कि महिलाओं ने 'हाथ में मौजूदा लाभ' को 'हवा में किए गए वादों' से कहीं ज़्यादा महत्व दिया.

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गैर-यादव पिछड़ों का ध्रुवीकरण

RJD ने अपने कुल प्रत्याशियों में से 35% से अधिक (50 से अधिक) यादव प्रत्याशियों को टिकट दिया। यह आवंटन, भले ही कोर वोट बैंक को मज़बूत करता हो, लेकिन इसने विपक्ष को 'यादवों का अति-प्रतिनिधित्व' और 'पुराने शासन की वापसी' का नैरेटिव चलाने का सीधा मौका दे दिया. इसके साथ ही महागठबंधन EBC/महादलित वोट बैंक को लुभाने में भी पूरी तरह विफल रहा.

कांग्रेस का कमजोर कैडर और गठबंधन का गिरता स्ट्राइक रेट

महागठबंधन (MGB) की विफलता का एक निर्णायक कारक यह था कि RJD का प्रदर्शन पिछली बार के मुकाबले कमज़ोर रहा, और कांग्रेस तथा अन्य सहयोगियों का प्रदर्शन तो और भी निराशाजनक रहा, जिससे गठबंधन की कुल जीत की क्षमता बेहद खराब हो गई. कांग्रेस का स्ट्राइक रेट पूरे गठबंधन में सबसे खराब रहा. RJD ने जिन सीटों पर कांग्रेस को टिकट दिलवाया, वहाँ भी RJD का कोर वोट कांग्रेस के कमजोर उम्मीदवार या जमीनी कैडर की निष्क्रियता के कारण पूरी तरह से ट्रांसफर नहीं हो पाया. ये लगातार दूसरा चुनाव है जब कांग्रेस के प्रदर्शन ने महागठंबधन को नुकसान पहुंचाया है.

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