Birthday Special : तानसेन की नगरी में जन्मीं उषा ने म्यूजिक कंपोजर के तौर पर बनाई थी अलग पहचान

ऊषा खन्ना (Usha Khanna) बॉलीवुड म्यूजिक इंडस्ट्री (Bollywood Music Industry) में महत्वपूर्ण महिला संगीतकार (Women Music Composer) के रूप में मौजूद रही हैं, उन्होंने लोकप्रियता के शिखर पर जाकर अपने लिए मुकाम बनाया था.

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ग्वालियर:

Happy Birth Day Usha Khanna : 'शायद मेरी शादी का ख्याल ...दिल में आया है ..इसीलिए मम्मी ने तेरी ....मुझे चाय पे बुलाया है.' और  'ज़िंदगी प्यार का गीत है' जैसे गीत दशकों पहले फिल्म में आये थे. लेकिन ये ऐसे गजब के गीत हैं जो  आज भी हमको सुनाई दे जाते है. इसी को तो कालजयी रचना कहते है और इनको रचने वाले को कालजयी कलाकार.  ऐसी ही एक कालजयी संगीतकार का आज जन्मदिन है, जिनका नाम है - उषा खन्ना. ऊपर जिन फिल्मी गीतों का जिक्र है उनकी धुन उषा खन्ना ने ही बनाई थी. उनकी ऐसी दर्जनों मखमली धुने हैं जो आज भी लोगों के लिए कर्णप्रिय हैं. उषा की धुनों में रस आखिर होता भी क्यों नहीं? उनका तो जन्म ही हुआ था संगीत की राजधानी और संगीत सम्राट तानसेन की नगरी में.

ग्वालियर में हुआ था उषा खन्ना का जन्म 

अपने जादुई और अनुशासित संगीत से श्रोताओं को मुग्ध करने वाली उषा खन्ना को तो संगीत रक्त में ही मिला. उनका जन्म 7 अक्टूबर 1941 को ग्वालियर में हुआ. ग्वालियर का संगीत से रिश्ता किसी से छिपा नहीं है.

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महान शास्त्रीय संगीतज्ञ तानसेन ग्वालियर के ही थे, जिन्हें सम्राट अकबर ने अपने नव रत्नों में शुमार किया. तानसेन और बैजू बावरा से लेकर संगीत की एक लंबी परम्परा ग्वालियर के नाम है.

यही वजह है कि ग्वालियर का खुद का एक संगीत घराना है जिसे ग्वालियर घराने के संगीत ही कहा जाता है. ऐसे ही ग्वालियर में उषा खन्ना के जन्म हुआ. तब देश आजाद नहीं हुआ था. उषा के पिता मनोहर खन्ना तत्कालीन ग्वालियर राज्य सिंधिया रियासत में जल निर्माण विभाग में सहायक अधीक्षक के रूप में पदस्थ थे. जाहिर है उषा को बचपन से ही गीत और संगीत की आबोहवा मिली.

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जद्दन बाई और सरस्वती देवी से मिला प्रशिक्षण 

बात 1946 की है. मनोहर खन्ना जो कि गजलें लिखने के शौकीन थे. वे किसी राजकीय काम से बॉम्बे (आज का मुम्बई) आए हुए थे, वहां उन्हें काफी दिन रुकना पड़ा तो वे लोगों से मिलते-जुलते रहे. इसी दौरान उनकी मुलाकात जद्दन बाई से हुई. ये प्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री नरगिस की मां थीं.

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जद्दन बाई ने जब मनोहर खन्ना के कुछ शेर सुने तो वे बहुत प्रभावित हुईं और उन्होंने अपने लिए गजलें लिखने को कहा और इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि वे ग्वालियर की नौकरी छोड़कर बॉम्बे ही आ जाएं.  उन्होंने चालीस के दशक में उन्हें एक हजार रुपये महीने देने की पेशकश कर दी.

उस दौर में यह बहुत बड़ी रकम थी. खन्ना साहब को तो ग्वालियर रियासत से 250 रुपये महीने की पगार मिलती थी और वहां भी वे अच्छे वेतन पाने वाले अफसरों में शुमार थे. इसके बाद मनोहर खन्ना बॉम्बे आ गए. उनके साथ छह साल की बेटी भी अपने माता-पिता के साथ मायानगरी पहुंच गई. मुंबई आकर मनोहर खन्ना ने जावेद अनवर के नाम से हिंदी फिल्मों के लिए गजलें लिखना शुरू कर दीं. उन्हें जद्दन बाई की नरगिस आर्ट प्रोडक्शंस की फिल्म रोमियो जूलियट के लिए लिखी गई 3 गजलों के लिए 800 रुपये का मेहनताना मिला.

पिता के फिल्मों के लिए गजलें लिखने से उषा के घर का माहौल साहित्य, गीत और संगीत से भरपूर हो गया था. उषा को ग्वालियर से ही संगीत की तालीम मिलने लगी थी.

उषा थोड़ी बड़ी हुई तो बॉम्बे में पहले उन्हें जद्धन बाई और फिर सरस्वती देवी की संगीत शागिर्दी मिली और उन्होंने गीत और संगीत के शास्त्रीय गुर सीखे.

इस तरह उनके पास अनेक भारतीय शास्त्रीय संगीत परंपराओं का संगम हो गया जो कालांतर में उनके फ़िल्मी संगीत में भी साफ झलकता है.

गायिका के रूप में की थी एंट्री बन गई संगीतकार

उषा खन्ना की फिल्मों में एंट्री (Bollywood Debut) की कहानी भी बड़ी रोमांचक है. कहते है कि उनकी जान-पहचान तब के लोकप्रिय संगीत निर्देशक ओपी नैयर (Music Director OP Nayyar) से थी. ओपी उनकी गायकी से प्रभावित थे. वे उन्हें लेकर भारतीय सिने उद्योग के प्रभावशाली व्यक्तित्व शशधर मुखर्जी (Sashadhar Mukherjee) के पास गए. उनसे बतौर गायिका (Singer) मिलवाया.

शशधर ने अपनी फिल्म में उषा से एक गाना गवाया. गीत और संगीत दोनों कर्णप्रिय थे और हिट भी. जब शशधर को पता चला कि उषा ने गीत की रचना खुद अपने ही बलबूते की है तो वे बड़े प्रभावित हुए और उन्होंने एक बड़ा कॉन्ट्रैक्ट थमा दिया. उनसे एक वर्ष के हर रोज दो गीत बनाने का अनुबंध हुआ.

लेकिन महज छह महीने बाद ही उनके संगीत का जादू ऐसा बिखरा कि मुखर्जी ने 1959 उन्हें अपनी ड्रीम फ़िल्म 'दिल देखे देखो' का संगीत रचने (Music Composing) का काम दे दिया. बतौर संगीतकार (Music Composer) यह उषा के लिए बड़ा ब्रेक था. इस फिल्म से आशा पारेख की भी एंट्री हो रही थी. फिल्म सुपर हिट रही.

'सौतन' के लिए मिला फिल्म फेयर

इसकी सफलता के कारण मुखर्जी ने अपनी अगली फिल्म हम हिंदुस्तानी का संगीत रचने का काम भी उषा खन्ना को दे दिया. 1961 में बनी इस फ़िल्म की हीरोइन भी आशा पारेख ही थीं. इसके बाद भी उषा ने अनेक फिल्में कीं. 'दिल देके देखो', 'हवस', 'साजन की सहेली', 'आप तो ऐसे न थे', 'सौतन'. उनकी आखरी फ़िल्म थी 'दिल परदेशी हो गया' जिसे उनके पूर्व पति सावन कुमार टांक ने बनाया था. सौतन के लिए उन्हें 1983 में फ़िल्म फेयर के लिए नामांकन भी मिला.

सावन कुमार टांक से हुई शादी 

गीतकार सावन कुमार टांक (Saawan Kumar Tak) और उषा खन्ना के बीच गहरा एसोसिएशन शुरू से ही रहा था. सावन कुमार ने अपने अधिकांश गीत उषा खन्ना की फिल्मों के लिए ही लिखे थे. यह प्रोफेशनल एसोसिएशन निजी जिंदगी तक पहुंचा और दोनों ने शादी भी की. हालांकि बाद में दोनों रजामंदी से अलग भी हो गए, लेकिन दोनों के व्यावसायिक और निजी सम्बंध निरन्तर बने रहे. 

संघर्ष से भरा रहा उषा का जीवन 

उषा खन्ना ने हिंदी फिल्मों में सुपरहिट संगीत दिया इसके बावजूद उन्हें वह मुकाम नहीं मिला जिसकी वे हकदार हैं. उनका करियर उतार चढ़ाव भरा और संघर्षमय रहा. शायद महिला होने के कारण संगीत निर्देशक के रूप में उनके जीवन को ज्यादा संघर्ष से भर दिया. उनकी पसंदीदा गायिका आशा भोंसले और गायक मोहम्मद रफी रहे. 

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