Durga Puja 2023 : 2 हजार साल पुराना है ये मंदिर, 18 कुलों की कुलदेवी हैं विराजमान, 16 हाथ की साड़ी से होता है श्रृंगार

इस नवरात्रि के मौक़े पर देवी माँ के उस मंदिर के बारे में बता रहे हैं जहां 18 कुलों की कुलदेवी विराजमान है, इसका इतिहास 2 हजार साल पुराना है और आज भी यहां भक्तों का तांता लगता है.

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Navratri 2023 : मध्य प्रदेश अपने पर्यटन (Madhya Pradesh Tourism) के लिए देश-दुनिया में जाना जाता है. प्रदेश में कई अनोखे मंदिर हैं. इस समय दुर्गा उत्सव (Durga Utsav) चल रहा है. ऐसे में हम आपको इस नवरात्रि के मौक़े पर देवी माँ के उस मंदिर के बारे में बता रहे हैं जहां 18 कुलों की कुलदेवी विराजमान हैं, इसका इतिहास 2 हजार साल पुराना है और आज भी यहां भक्तों का तांता लगता है.

कहां स्थित है यह मंदिर?

मध्य प्रदेश के धार (Dhar) ज़िले में प्राचीन "गढ़ कालिका माता मंदिर" (Gadkalika Mata Temple) मौजूद है. इस प्राचीन गढ़ कालिका माता मंदिर का इतिहास लगभग 2000 साल पुराना है. शारदीय नवरात्र की दिनों में यहां भक्तों का तांता लगा रहता है. इस मंदिर की ख़ास बात यह है कि नवरात्रि के नौ दिनों तक यहां माता जागरण करती हैं, इसलिए पूरे नौ दिनों तक माता का दरबार खुला रहता है और 24 घंटे भक्तों के दर्शन करने की व्यवस्था रहती है. 

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18 कुलों की कुलदेवी है मां गढ़कालिका

गढ़कालिका का प्राचीन हिन्दू मंदिर धार की सबसे ऊंची चोटी पर विराजमान है. ये मंदिर धार के पंवार राजवंश द्वारा बनाया गया है. माता के दर्शन मात्र से ही भक्तों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. मराठा, क्षत्रिय-ब्राह्मण सहित 18 कुलों की कुलदेवी हैं मां गढ़कालिका. 

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16 हाथ की साड़ी से होता है श्रृंगार

नवरात्रि के दिनों में सुबह चार बजे आरती होती है. इसके बाद माता का श्रृंगार 16 हाथ की नव्वारी साड़ी (महाराष्ट्रियन साड़ी) से होता है. साथ ही माता को परमारक़ालीन आभूषण पहनाए जाते हैं. एक बार श्रृंगार होने के बाद नौ दिन बाद दशहरे पर ही दोबारा स्नान करके माता का श्रृंगार किया जाता है. अष्टमी के दिन माता का हवन करवाया जाता है. वहीं ग्यारस पर बाड़ी पूजन और जवारे का विसर्जन किया जाता है.

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खास भोग के साथ होती है माता की आरती

इस मंदिर में काकड़ आरती सुबह चार बजे होती है इसमें माता को राबड़ी का भोग लगाया जाता है. उसके बाद सुबह 9 बजे माता का श्रृंगार किया जाता है. 10 बजे ड्राई फ़्रूट का भोग लगाकर मां कालिका की आरती की जाती है. भोजन आरती सुबह 11:30 बजे की जाती है. इसमें माता के पसंदीदा व्यंजन मंदिर की रसोई में तैयार किए जाते हैं. शाम 7 बजे मां गढ़कालिका को खीर-पूरी और नैवेद्य का भोग लगाया जाता है. शयन आरती रात को 9 बजे की जाती है, इसमें माता को दूध का प्याला भोग लगाने के बाद विश्राम के लिए पालना लगाया जाता है.

उल्टा स्वस्तिक बनाने की प्रथा

कहा जाता है कि इस मंदिर में दूर-दूर से भक्त आकर मां के सामने अर्ज़ी लगाते हैं. भक्त यहां आकर उल्टा स्वास्तिक बनाते हैं और जब उनकी मनोकामना पूरी हो जाती है तो श्रद्धालु दोबारा यहां आकर सीधा स्वस्तिक बनाते हैं.

पीढ़ियों से यहां मौजूद है उल्लू परिवार

दशकों से मंदिर के शिखर पर उल्लुओं का परिवार रहता है. कई पीढ़ियों से उल्लू यहां मौजूद हैं. वर्तमान में भी दुर्लभ प्रजाति के उल्लू यहां माँ कालिका के मंदिर के शिखर के बीच में रहते हैं मान्यता है कि ये उल्लू माता की रक्षा करते हैं.

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