Happy New Year 2024 : कैलेंडर में 2023 खत्म होने की कगार पर है. अब हमारे पास इस साल की यादें रह जाएंगे, लेकिन इन यादों में कुछ ऐसी घटनाएं होंगी जो सुर्खियां बनीं. आज हम आपको छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के परिदृश्य में 2023 की ऐसी घटनाओं के बारे में बता रहे हैं जिनके लिए यह साल जाना जाएगा.
26 जनवरी : 4 साल बाद कांग्रेस की बड़ी घोषणा पर अनमना अमल
कांग्रेस (Congress) की प्रदेश में सत्तावापसी के लिए बेरोजगार युवाओं को भत्ता देने का वादा बड़ा फैक्टर था. कांग्रेस सरकार इसे 4 साल तक दबाए बैठी रही और अंतिम साल में 26 जनवरी को जगदलपुर के स्वतंत्रता दिवस समारोह में तत्कालीन सीएम भूपेश बघेल ने ऐलान किया. फिर 20 फरवरी को कैबिनेट बैठक में इस पर मुहर लगाकर 1 अप्रैल से बेरोजगारी भत्ता देने की पहल शुरू हुई. हालांकि इसमें कई तरह के बंधन थे, जिससे बड़ी संख्या में युवाओं को वंचित होना पड़ा. इस तरह बड़ी योजना पर अनमने ढंग से अमल लोकप्रिय होने के बजाय सरकार के लिए नासूर बन गई.
10 फरवरी : हुक्काबार पर प्रतिबंध
भोजनालय, होटल (Hotel), रेस्टोरेंट आदि सहित अन्य जगहों पर संचालित हुक्का बारों (Hukka Bar) में फ्लेवरयुक्त सामग्री के अलावा तंबाकू (Tobaco) व अन्य मादक द्रव्यों के उपयोग किये जाने से युवा पीढ़ी सहित आमजन आकर्षित होकर अपने स्वास्थ्य का नुकसान करने की जानकारी प्राप्त हो रही थी.
12 फरवरी : आरक्षण मुद्दे पर राजभवन-सरकार विवाद पर नए राज्यपाल का आदेश
विपक्षी पार्टी की सरकार रहने पर भी राज्यपाल और सरकार के बीच विवाद उतने मुखर नहीं हो पाते, लेकिन यहां आरक्षण बिल के मुद्दे पर राजभवन और सरकार के बीच की तल्खी स्पष्ट रूप से सामने आई. मामला हाई कोर्ट तक भी पहुंचा. तत्कालीन राज्यपाल अनुसुइया उईके को लेकर केंद्र सरकार को भी बड़ा फैसला लेना पड़ा. आखिरकार 12 फरवरी को राज्यपालों को बदलने का आदेश आया और अनुसुइया को छत्तीसगढ़ की जगह त्रिपुरा का राज्यपाल बनाया गया. उनकी जगह विश्भूषण हरिचंदन छत्तीसगढ़ के नए राज्यपाल बने और 23 फरवरी को उन्होंने शपथ ग्रहण किया.
15 मार्च : पीएम आवास मुद्दे पर बीजेपी ने दिया बड़ा संकेत
15 मार्च को छत्तीसगढ़ में बीजेपी (BJP) ने 16 लाख अधूरे पीएम आवास (PM Aawas) के मुद्दे पर विधानसभा का घेराव कर बड़ा संकेत दिया था कि वे विधानसभा चुनाव में इसे बड़ा सियासी मुद्दा बनाएंगे. आखिरकार आवासहीन उनसे जुड़ते चले गए और मामला अंजाम तक भी पहुंचा. कांग्रेस की हार के पीछे इस आंदोलन की बड़ी भूमिका रही.
15 मार्च : मूंछों और बाल के दांव लगने की अपनी-अपनी कहानी
छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव से दावे और वादे तो बहुत होते हैं, लेकिन कोई दिग्गज बड़ा चैलेंज कर दे तो इनका सुर्खियों में आना तो बनता ही है. कुछ ऐसा ही हुआ तत्कालीन मंत्री अमरजीत भगत और आदिवासी नेता नंदकुमार साय के मामले में. सबसे पहले पीएम आवास योजना को लेकर बीजेपी ने रायपुर में 15 मार्च को एक रैली की. जनसभा में पूर्व सांसद रामविचार नेताम ने मंच में इस साल बीजेपी की सरकार बनने का दावा किया और उन्होंने ऐलान किया कि जब तक प्रदेश से कांग्रेस सरकार नहीं हटती तब तक नंदकुमार साय बाल नहीं कटवाएंगे. वही नंदकुमार साय बीजेपी छोड़ कांग्रेस में आ गए. दूसरी ओर, अमरजीत भगत ने कांग्रेस के सरकार नहीं बनाने पर अपनी मूंछें कटाने की बात कह दी. अब बीजेपी नेता उन्हें उनके वादे याद दिलाते रहते हैं.
25 मार्च : सीआरपीएफ का स्थापना दिवस पहली बार छत्तीसगढ़ में
केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF Foundation Day) का 84वां स्थापना दिवस 25 मार्च को पहली बार छत्तीसगढ़ के जगदलपुर में मनाया गया. मुख्य अतिथि के रूप में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) शामिल हुए. देशभर से रिजर्व पुलिस के सीनियर अफसरों से लेकर अवार्ड पाने वाले जवान यहां पहुंचे थे.
8 अप्रैल : एक हत्या और पहली बार हिंदू-मुस्लिम की राजनीति
प्रदेश में हिंदू-मुस्लिम विवाद पहले भी होते रहे हैं लेकिन आपसी लड़ाई के रूप में समाप्त भी हो जाते थे. बेमेतरा जिले के बिरनपुर में 8 अप्रैल को भुवनेश्वर साहू की हुई हत्या के मामले ने पहली बार बड़ा सियासी रंग तब दिखाया, जब इसके 2 दिन बाद 10 अप्रैल को हिंदू संगठनों ने प्रदेश बंद का ऐलान किया. बिरनपुर गांव के साथ पूरा प्रदेश सुलग उठा. आगे चलकर बीजेपी ने हिंदू-मुस्लिम के इस मुद्दे को भुनाया और मृतक भुवनेश्वर साहू के पिता ईश्वर साहू को साजा से कांग्रेसी दिग्गज व मंत्री रवींद्र चौबे के खिलाफ चुनाव मैदान में उतार दिया. आखिरकार ईश्वर साहू की जीत हुई. यही नहीं, इस एक सीट के जरिए बीजेपी ने प्रदेशभर में भी अपने पक्ष में ध्रुवीकरण को लेकर माहौल का करंट तैयार कर लिया था.
25 अप्रैल : नक्सल वारदात में 9 जवानों की शहादत
छत्तीसगढ़ में कई बड़ी नक्सल वारदात पहले ही हो चुकी थीं. नक्सलियों को बैकफुट पर लाने के सरकारों के दावों पर एक बडा पलटवार नक्सलियों ने 25 अप्रैल को दंतेवाड़ा के अरनपुर क्षेत्र में बड़ी वारदात कर किया था. यहां नक्सलियों की मौजूदगी की सूचना पर सर्चिंग पर निकले जवान वापसी के दौरान मनाही के बाद भी एक निजी गाड़ी पर सवार हो गए थे. ये गाड़ी नक्सलियों द्वारा लगाए आईईडी की चपेट में आ गई. इसमें डीआरजी के 9 जवान शहीद हुए थे. जबकि वाहन चालक की भी जान गई थी.
29 जून : जय-वीरू के बीच खींची तलवारें, डिप्टी सीएम पद से सुलह
प्रदेश में कांग्रेस सरकार के ढाई साल पूरे होने के बाद टीएस सिंहदेव को सीएम बनाए जाने की सुगबुगाहट तेज हुई थी, जो 2023 में भी बीच-बीच में उभरती रही. दिल्ली तक दोनों नेताओं भूपेश बघेल और सिंहदेव के समर्थक विधायकों का दल पहुंचता रहा. आखिरकार सुलह की दिशा में पहल हुई और 29 जून को तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव को डिप्टी सीएम बनाया गया.
23 जुलाई : डीएमएफ फंड के दुरुपयोग का सुलगा मुद्दा पहुंचा अंजाम तक
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जनवरी माह छत्तीसगढ़ दौरे के दौरान सबसे पहले फंड के दुरुपयोग का मुद्दा उठाया. विधानसभा के बजट सत्र में तत्कालीन कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम ने भी अपनी ही पार्टी पर गंभीर आरोप लगाए. इससे पहले छत्तीसगढ़ सरकार में स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव ने इसी बात को लेकर इस्तीफा दे दिया था. आखिरकार ईडी की इस मामले में एंट्री हुई और फिर आगे चलकर मामले के मास्टरमाइंड सूर्यकांत तिवारी और सीएम भूपेश बघेल की निजी सचिव सौम्या चौरसिया जैसे बड़े अफसरों की गिरफ्तारी हुई. 23 जुलाई को आईएएस रानू साहू भी गिरफ्तार कर ली गईं. साथ ही पहले 250 करोड़ और फिर 500 करोड़ रुपये के घोटाले की बात इसमें सामने आई है.
3 दिसंबर : नतीजों ने राजनीतिक पंडितों के मुंह पर लगाए ताले
प्रदेश में कांग्रेस की सरकार ने छत्तीसगढ़िया अस्मिता के नाम पर जनता के बीच अच्छी पैठ बनाई थी. शुरुआती 4 सालों में बीजेपी के पास कोई बड़ा मुद्दा भी नहीं रह गया था. अंतिम सालों में भ्रष्टाचार और पीएम आवास के मुद्दे ने जोर पकड़ा. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का बूथ मैनेजमेंट, महीनों पहले प्रत्याशियों की घोषणा, प्रत्याशी चयन आदि ने अंदरखाने ऐसा माहौल तैयार किया कि 3 दिसंबर का नतीजा राजनीति के जानकारों की अटकलबाजियों पर विराम लगा दिया और बीजेपी ने 5 साल बाद फिर दमदार वापसी कर ली.
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