Chhattisgarh Wild Life : वन भैंसों की घटती संख्या और संरक्षण की विफलता के कारण, छत्तीसगढ़ वन विभाग ने असम से साल 2020 में एक नर और एक मादा वन भैंसा और 2023 में चार मादा वन भैंसे मंगवाए थे. इन्हें बलौदा बाजार के बारनवापारा अभ्यारण में कैद रखा गया. इनके प्रजनन योजना को केंद्रीय जू अथॉरिटी ने मंजूरी नहीं दी. इस पर हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई. मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति रविंद्र अग्रवाल ने चार हफ्ते में जवाब मांगा है.
सभी भैसों को 45 दिनों में था छोड़ना
याचिकाकर्ता नितिन सिंघवी ने कोर्ट को बताया कि असम से अप्रैल 2023 में लाए गए 4 मादा वन भैंसों को 45 दिनों में जंगल में छोड़ने की शर्त थी. लेकिन एक साल से ज्यादा हो गया है और वे अभी भी बारनवापारा अभयारण्य में कैद हैं. 2020 में लाए गए एक नर और एक मादा वन भैंसा भी कैद में हैं.
जानिए याचिका में क्या कहा गया ?
कोर्ट को बताया गया कि असम से ये जंगली भैंसें छत्तीसगढ़ के जंगली भैंसों से आबादी बढ़ाने के लिए लाई गई थीं. छत्तीसगढ़ में सिर्फ एक नर भैंस "छोटू" है, जिसकी आयु अभी 22-23 वर्ष है. इसे ज़्यादा उम्र के चलते प्रजनन के लिए अयोग्य माना जाता है. छत्तीसगढ़ वन विभाग ने असम से आए अशुद्ध नस्ल की मादा भैंसों से प्रजनन कराने की केंद्रीय जू अथॉरिटी से मांग की थी, लेकिन इसे नामंजूर कर दिया गया.
केन्द्रीय जू अथॉरिटी ने किया नामंजूर
केन्द्रीय जू अथॉरिटी ने असम से वन भैंसे लाने के बाद बारनवापारा में ब्रीडिंग सेंटर बनाने की सैद्धांतिक अनुमति दी, परंतु अंतिम अनुमति नहीं मिली. याचिका में इस अनुमति को लेकर चुनौती दी गई है, क्योंकि वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम के तहत किसी भी अभ्यारण में ब्रीडिंग सेंटर नहीं खोला जा सकता है. भारत सरकार ने भी यह साफ़ किया है कि किसी भी अभ्यारण या नेशनल पार्क में ब्रीडिंग सेंटर नहीं खोला जा सकता.
मामले में क्या बोला वन विभाग ?
वन विभाग ने कोर्ट को बताया कि असम से लाए गए वन भैंसों की तीसरी पीढ़ी को ही जंगल में छोड़ दिया जाएगा. याचिका में बताया गया है कि वन भैंस शेड्यूल एक का वन्यप्राणी होता है और वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम के अनुसार, किसी भी अनुसूची एक के वन्यप्राणी को बंधक में नहीं रखा जा सकता जब तक कि वह छोड़े जाने के लिए अयोग्य नहीं हो. असम के सभी वन भैंस स्वस्थ हैं और उन्हें जंगल में छोड़ दिया गया है.
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याचिका में बताया गया है कि 2012 में सर्वोच्च न्यायालय ने गोधावर्मन के मामले में आदेश दिया था कि छत्तीसगढ़ के वन भैंसों की शुद्धता को हमेशा बरकरार रखना चाहिए. एकमात्र शुद्ध नस्ल का छोटू अभी उम्रदराज है और उससे प्रजनन करना असंभव है.
प्लान टोटल फेल अब उठी ये मांग
असम से लाए गए वन भैंसों को उदंती सीता नदी टाइगर रिजर्व में नहीं छोड़ा जा सकता क्योंकि वहां अशुद्ध नस्ल के वन भैंस हैं जिनसे क्रॉस होकर असम की शुद्ध नस्ल की मादा वन भैंसों की संतानें प्राकृतिक रूप से बिगड़ सकती हैं. इसलिए, यह मांग की गई है कि इन्हें असम में ही वापस भेजा जाए.
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