छत्तीसगढ़: जिस गांव में अवैध शराब पीकर हुई 9 मौतें, वहां हर महीने 15 लाख रुपये कमा रहे ग्रामीण, जानें कैसे?

Village employment option: छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में लोफंदी गांव. यहां बीते दिनों अवैध शराब पीने की वजह से 9 लोगों की मौत हो गई. जिसके बाद से ये गांव सुर्खियों में है लेकिन जब NDTV की टीम गांव पहुंची और इसकी एक और सच्चाई सामने आई. गांव के लोग अपनी मेहनत से हर महीने करीब 15 लाख रुपये कमा रहे हैं. इस गांव ग्रामीण राज्य के दूसरे गावों के लिए मिसाल बन सकते हैं...चलिए लोफंदी गांव की दूसरी पहचान को जानते हैं इस रिपोर्ट में.

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Bilaspur News: छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले का लोफंदी गांव 8 फरवरी को तब अचानक सुर्खियों में आया, जब पता चला कि 4 दिनों के भीतर गांव के 7 लोगों की संदिग्ध मौत हो गई है. 5 ग्रामीणाों की मौत तो 24 घंटे में ही हो गई. अगले 2 दिन यानी कि 10 फरवरी तक मौतों की संख्या बढ़कर 9 हो गई. गांव के करीब 10 लोग बीमार हैं. ग्रामीण मौत की वजह अवैध शराब का सेवन बता रहे हैं, जबकि जिला प्रशासन पोस्टमार्टम व बिसरा रिपोर्ट आने तक जांच का हवाला देकर मौत का स्पष्ट कारण बताने से इनकार कर रहा है.

5 फरवरी से 10 फरवरी के बीच एक के बाद एक कर 9 संदिग्ध मौतों के बाद गांव में पुलिस, प्रशासन, जनप्रतिनिधियों का आना-जाना लगा हुआ है. गांव में मंदिर के पास ही बुजुर्गों का एक समूह बैठकर चर्चा कर रहा है. बुजुर्ग मोहित राम यादव कहते हैं 'शराब के चक्कर में हमारा गांव बदनाम हो गया है. लेकिन हमारे गांव में बहुत कुछ अच्छा भी हो रहा है.' मोहित एक मोहल्ले की ओर इशारा करते हुए कहते हैं 'उधर जाकर देखिए हर घर में लोग अपने रोजगार के लिए काम करते नजर आएंगे. यह एक दो दिन से नहीं बल्कि कई साल से चल रहा है.' दरअसल मोहित गांव के उस मोहल्ले की ओर इशारा कर रहे थे, जहां बुनकरों का एक बड़ा वर्ग रहता है और घरों में हथकरघा के माध्यम से कपड़ा बुन कर उसकी सप्लाई करता है. इससे गांव में ही रोजगार के बेहतर अवसर उपलब्ध हो रहे हैं.

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हथकरघा जैसे कुटीर उद्योग से महिलाओं को भी रोजगार मिल रहा है. लोफंदी में करीब 100 परिवार इस काम से जुड़े हैं.
Photo Credit: नीलेश त्रिपाठी

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ईंट भट्ठे में काम छोड़ बुन रही कपड़ा

गांव में बुनकर समूह से जुड़ीं पंच बाई करीब 50 फीट की जगह में जुगाड़ तकनीक से तैयार हथकरधा से कपड़ा बुनती मिलीं. पंच बाई बताती हैं कि पहले वो रोजी-मजदूरी के लिए ईंट भट्टे में काम करती थीं, लेकिन करीब 10 साल से वो कपड़े बुनाई के काम में जुड़ी हैं और हर महीने लगभग 15 हजार रुपये कमा लेती हैं. हर दिन 2 से 3 घंटा इसके लिए वो काम करती हैं. इसी काम से जुड़ीं गांव की ही शकुंतला पोर्ते पहले खेती कार्य के लिए मजदूरी करती थीं, लेकिन साल 2015 से कपड़े बुनाई के काम से जुड़ीं, अब 10 से 12 हजार रुपये हर माह कमा लेती हैं. बुनकर संघ के पदाधिकारी श्रवण देवांगन बताते हैं कि गांव के करीब 100 ज्यादा परिवार इस काम से जुड़े हैं. 150 से अधिक लोगों को इससे रोजगार मिल रहा है.

बिलासपुर के लोफंदी गांव में लोग सालों से हथरघा उद्योग चला रहे हैं. ग्रामीणों का कहना है कि शराब के चक्कर में हमारा गांव नाहक ही बदनाम हो गया है.

हर महीने 15 लाख रुपये से ज्यादा की इनकम

20 साल से कपड़े बुनाई के काम से जुड़े श्रवण देवांगन कहते हैं कि पहले सब्जी की खेती करता था, लेकिन नुकसान होने के बाद जांजगीर गया, वहां कपड़ा बुनाई सीखा. फिर गांव लौटा और एक समूह बनाकर लोगों को इससे जोड़ रहा हूं. श्रवण बताते हैं कि गांव में ज्यादातर महिलाएं इस काम से जुड़ी हैं. छत्तीसगढ़ राज्य हथकरघा विकास एवं विपणन सहकारी संघ रायपुर से धागा मिलता है. हमें उसे थान बनाकर देना रहता है.

24 मीटर का एक थान रहता है, जिसे एक व्यक्ति 2 दिन में आराम से बना लेता है. ट्यूनिक कपड़े के लिए 33 रुपये 36 पैसे और शल्टिंग कपड़े के लिए 37 रुपये 92 पैसे प्रति मीटर की दर से हमें भुगतान किया जाता है.

औसत की बात करें तो गांव के 150 से ज्यादा लोग इससे जुड़े हैं, 10 हजार रुपये प्रतिमाह के आधार पर भी इनकम मानें तो हर महीने 15 लाख रुपये से ज्यादा की कमाई ग्रामीण इससे करते हैं. श्रवण बताते हैं कि हथकरघा का सेटअप तैयार करने के लिए एक बार 15 हजार रुपये खर्च करने पड़ते हैं, जिसके लिए भी सरकारी मदद मिल जाती है. एक बार सेटअप तैयार होने के बाद 5 साल तक उसमें बदलाव की जरूरत नहीं होती है. यानी कि कम लागत में स्व रोजगार का बेहतर विकल्प तैयार हो जाता है.

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