PAK को धूल चटाने के बाद टी-55 टैंक अब छत्तीसगढ़ के इस जिले का बढ़ाएगा शौर्य, इंडियन आर्मी में 1958 में हुआ था शामिल

T-55 Tank: पाकिस्तान को धूल चटाने वाला टी-55 टैंक अब छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर में स्थापित किया गया है. 1958 में भारतीय सेना में शामिल हुआ यह टैंक 1965 और 1971 के युद्ध में पाकिस्तानी सेना के लिए काल बनकर टूटा था. अब बच्चे इस टैंक की गौरवगाथा से रूबरू हो सकेंगे. यह दुनिया का सबसे ताकतवर टैंक था. इसमें चालक समेत चार सैनिक सवार होते थे.

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Chhattisgarh News: पाकिस्तान के साथ वर्ष 1971 में हुए युद्ध में दुश्मनों को धूल चटाने वाला टी-55 टैंक (T-55 Tank) अब छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य सरगुजा जिला मुख्यालय अंबिकापुर के मेंड़्राकला स्थित सैनिक स्कूल का शौर्य बढ़ाएगा. टैंक की गौरवगाथा से अब बच्चे भी रूबरू हो सकेंगे. 

सेना में 35 वर्षों तक रहा योगदान

सेना में 35 वर्षों तक योगदान देने के बाद भारतीय सेना से उपहार में मिले टैंक को आदिवासी बाहुल्य सरगुजा जिला मुख्यालय अंबिकापुर के मेंड़्राकला स्थित सैनिक स्कूल में बुधवार को स्थापित किया कर दिया गया है. रंग-रोगन कर टैंक को नया स्वरूप प्रदान किया गया है. यहां टैंक का संपूर्ण विवरण, किन-किन युद्ध में किस-किस देश को पराजित किया आदि लिखा जाएगा. इसके साथ ही कारगिल युद्ध के हीरो व परम वीर चक्र विजेता कैप्टन विक्रम बत्रा और कैप्टन मनोज पांडेय की मूर्ति का अनावरण किया गया.

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T-55 रूस द्वारा निर्मित बख्तरबंद टैंक है. इसका इस्तेमाल भारतीय सेना ने वर्ष 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में किया था. इस टैंक ने ही दुश्मन देश पाकिस्तान के कई टैंकों को नष्ट कर दिया था. दरअसल, पाकिस्तान को हराने में T-55 टैंक की अहम भूमिका रही थी.

T 55 टैंक अंबिकापुर सैनिक स्कूल में स्थापित

दरअसल, रक्षा मंत्रालय ने अंबिकापुर के मेंड़्राकला स्थित सैनिक स्कूल में पहला T-55 टैंक स्थापित किया गया है. हालांकि छत्तीसगढ़ में स्थापित यह दूसरा टैंक है. T-55 टैंक लंबे समय की सेवा के बाद रिटायर कर दिया गया है. 

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36 टन का है ये टैंक

सैनिक स्कूल अम्बिकापुर के वाइस प्रिंसिपल पी श्री निवासन ने बताया कि सैनिक स्कूल प्रदेश का एक मात्र सैनिक स्कूल है और सैनिक स्कूल के गेट पर स्थापित ये टैंक भी बेहद खास है, क्योंकि T55 नाम का ये टैंक 36 टन का टैंक और 14 किलोमीटर तक वार कर सकता है. इस टैंक के जरिये ही बांग्लादेश को आजाद कराने के लिए भारतीय सेना में उपयोग में लाया था, जिससे पाकिस्तान को नाको चने चबवाये गए थे.

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उन्होंने आगे बताया कि स्कूल के छात्रों और क्षेत्र के लोगों में सेना में जाने की भावना विकसित करने और सेना की स्मृतियों को करीब से देखने और जानने का अवसर इस टैंक में माध्यम से मिला है.

बता दें कि ये वही टैंक है, जिसकी मदद से भारतीय सेना ने बांग्लादेश लिब्रेशन वार में पाकिस्तान के सैनिकों को सरेंडर करने पर मजबूर कर दिया था. 

30 साल तक इंडियन आर्मी का रहा हिस्सा

टी-55 टैंक वर्ष 1958 में भारतीय सेना में शामिल हुआ था. टैंक का निर्माण रूस में किया गया था. वर्ष 1965 और 1971 के युद्ध में पाकिस्तानी सेना को परास्त करने सबसे प्रभावी रहा. वर्ष 1971 में इस टैंक के जरिए ही फख-ए-हिंदू मेजर जनरल हनुवंत सिंह के नेतृत्व में पाकिस्तानी सेना पर मौत बन टूट पड़ा था. टैंक के कदमों में पाकिस्तानी सेना के 93 हजार सैनिकों ने आत्मसमर्पण करते हुए घुटने टेके थे. यह दुनिया का सबसे ताकतवर टैंक था.यह टैंक में युद्ध में भारतीय सेना के पराक्रम व देश की सुरक्षा से जुड़े जज्बे का प्रतीक है.

T-55 टैंक सोवियत रसिया का ओरिजन है. ये टैंक 72 आर्मर रेजिमेंट का हैं. इस टैंक का वजन 36 टन है. इस टैंक में 4 ग्रुप मेम्बर होते थे. एक कमांडर, एक गनर, एक लोडर और एक ड्राइवर. इसकी टॉप स्पीड 54 किलोमीटर प्रति घंटा है.

सैनिक स्कूल के वाइस कैप्टन अंश सिन्हा ने बताया कि ये T-55 टैंक है, जो सोवियत ओरिजन टैंक है.1967 में इसकी मारक क्षमता 14 किलोमीटर की है. इसमें जो गन लगी हुई है वो चेकोस्लोवाकिया से खरीदी गई है. इस टैंक ने कई महत्वपूर्ण ऑपरेशन को अंजाम दिए.

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