टॉयलेट जाने की ऐसी सजा ! कक्षा दो की छात्रा से कराया 100 बार उठक-बैठक, अस्पताल में भर्ती

शिक्षक दिवस, वो दिन, जब हम अपने गुरुओं के सम्मान में सिर झुकाते हैं, उन्हें भविष्य का निर्माता मानते हैं. लेकिन सरगुजा से आई ये खबर दिल को चीर कर रख देती है. क्योंकि यहां जिस गुरुकुल में बच्चों को सपने संवारने की शिक्षा मिलनी थी, वहीं एक मासूम बच्ची को ऐसी सज़ा मिली कि वो चलने तक में असमर्थ हो गई.

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Sarguja  Class 2 student: शिक्षक दिवस, वो दिन, जब हम अपने गुरुओं के सम्मान में सिर झुकाते हैं, उन्हें भविष्य का निर्माता मानते हैं. लेकिन सरगुजा से आई ये खबर दिल को चीर कर रख देती है. क्योंकि यहां जिस गुरुकुल में बच्चों को सपने संवारने की शिक्षा मिलनी थी, वहीं एक मासूम बच्ची को ऐसी सज़ा मिली कि वो चलने तक में असमर्थ हो गई.

टॉयलेट जाने पर खौफनाक सजा!

मामला है सरगुजा के सीतापुर के प्रतापगढ़ स्थित डीपीएस पब्लिक स्कूल का. यहां कक्षा 2 में पढ़ने वाली समृद्धि गुप्ता टॉयलेट जाने के लिए क्लास से बाहर निकली थी. लेकिन जैसे ही रास्ते में उसकी टीचर नम्रता गुप्ता से मुलाकात हुई, कहानी ने खौफ़नाक मोड़ ले लिया. आरोप है कि उस समय शिक्षिका मोबाइल देख रही थीं. उन्होंने बच्ची से पूछा- “कहाँ जा रही हो?” और जब समृद्धि ने मासूमियत से कहा कि वो टॉयलेट जा रही है, तो शिक्षिका का पारा चढ़ गया. गुस्से में दो डंडे जमाए और फिर बच्ची को 100 बार उठक-बैठक करने की सज़ा दे डाली. 

चार दिनों से अस्पताल में मासूम

सोचिए, एक सात-आठ साल की नन्हीं सी बच्ची, जिसकी टांगें इतनी उठक-बैठक सह ही नहीं सकती थीं, नतीजा ये हुआ कि समृद्धि दर्द से कराहती रही और अब हालत ये है कि वो चल भी नहीं पा रही है. घटना को चार दिन बीत चुके हैं, लेकिन मासूम अभी भी अस्पताल में इलाज करा रही है. उसके पिता अनुराग गुप्ता का कहना है कि पैर का दर्द इतना ज़्यादा है कि बच्ची कदम तक नहीं उठा पा रही. उन्होंने इस पूरे मामले की शिकायत स्कूल प्रबंधन से भी की, लेकिन वहां से जवाब आया- “हमारी कोई ग़लती नहीं है”. लिहाजा मजबूर पिता आज अपनी बेटी को लेकर पुलिस अधीक्षक सरगुजा के पास पहुंचे और शिक्षिका पर कार्रवाई की मांग की.

शिक्षा के मंदिर में खौफ का साया !

अब सवाल यही है कि आखिर शिक्षा के मंदिर में बच्चों को क्यों ऐसी अमानवीय सज़ा दी जाती है? क्या अनुशासन का नाम लेकर बचपन तोड़ देना ही शिक्षा है? जिस उम्र में बच्चों को हौसला, भरोसा और सुरक्षा मिलनी चाहिए, वहां दर्द और भय क्यों बोए जा रहे हैं? छात्रों को सुधारने का हक हर शिक्षक के पास है, लेकिन यह हक मारपीट, प्रताड़ना और जबरन सज़ा का लाइसेंस नहीं हो सकता. शिक्षक दिवस पर आई यह घटना हमें आईना दिखाती है कि सम्मान तभी तक है, जब तक जिम्मेदारी निभाई जाती है. वरना सवाल सिर्फ एक है- अगर गुरु ही बच्चों को जख़्म देंगे, तो फिर भविष्य कौन संवारेगा ?

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