Sukma Naxalites Area SP Kiran Chawhan: छत्तीसगढ़ के सुकमा–बीजापुर की सरहद का इलाका कभी नक्सलियों के पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (पीएलजीए) का सबसे सुरक्षित और मजबूत क्षेत्र माना जाता था. यहां संगठन की मिलिट्री बटालियन सक्रिय थी, जिसे नक्सली नेटवर्क की ‘रीढ़' कहा जाता रहा. इसी इलाके पर टॉप मोस्ट नक्सली नेता हिड़मा का करीब 28 वर्षों तक दबदबा रहा.
सुकमा में जहां चार दशकों तक प्रशासन की मौजूदगी लगभग शून्य रही. सरकारी योजनाएं यहां तक पहुंचाना चुनौती नहीं, बल्कि जोखिम भरा मिशन था. ऐसे दुर्गम और खतरनाक हालात में सुकमा जिले के 10वें पुलिस अधीक्षक किरण चव्हाण ने पदभार संभालते ही परिस्थितियों को बदलने का संकल्प लिया. ज्वाइनिंग के साथ ही उन्होंने रणनीतिक रूप से उन इलाकों को प्राथमिकता दी.
जिन्हें माओवादी अभेद्य किला मानते थे. पूवर्ती, टेकलगुड़ा, रायगुड, तुमलपाड़ और गोमगुड़ा जैसे एक दर्जन से ज्यादा कट्टर पीएलजीए क्षेत्रों में न केवल सुरक्षा कैंप स्थापित किए गए, बल्कि सड़क, राशन, स्वास्थ्य, शिक्षा और प्रशासनिक सेवाओं की नियमित पहुंच सुनिश्चित की गई.
बतौर एसपी 30 महीने के कार्यकाल में किरण चव्हाण के नेतृत्व में सुरक्षाबलों ने घोर नक्सल प्रभावित इलाकों में कुल 24 सुरक्षा कैंप स्थापित किए. यह कदम माओवादी संगठन की उस सैन्य संरचना पर सीधा प्रहार था, जिसे वर्षों तक अभेद्य माना जाता रहा. सुरक्षा कैंप खुलते ही हालात बदलने लगे, माओवादियों का मूवमेंट सिमटा और पीएलजीए बटालियन को सुकमा छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा.
80 प्रतिशत इलाके नक्सल मुक्त
इस रणनीतिक और साहसिक अभियान का नतीजा यह रहा कि सुकमा जिले का 80 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र माओवाद से मुक्त कराने में सफलता मिली. जहां कभी बंदूक का कानून चलता था, वहां अब प्रशासन की मौजूदगी, विकास कार्य और सरकारी योजनाएं जमीन पर उतर रही हैं. वर्ष 2024 से अब तक सुकमा जिले में 21 नए सुरक्षा कैंप स्थापित किए। इसी अवधि में 587 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया. वहीं विभिन्न अभियानों में 68 माओवादी ढेर, 450 गिरफ्तार हुए हैं.