अलर्ट हो जाए पूरा छत्तीसगढ़ ! बीमार हो गई है 'धान के कटोरे' की मिट्टी, 80% तक घटा नाइट्रोजन

Chhattisgarh News: धान के कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ की मिट्टी बीमार हो रही है. ये दावा किया है रायपुर स्थित इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने. यहां के मृदा विज्ञान विभाग की लैब टेस्टिंग रिपोर्ट में जो खुलासे हुए हैं वो आपको चिंता डाल देने के लिए काफी हैं. रिपोर्ट के मुताबिक राज्य की मिट्टी में पोषक तत्व तेजी से घट रहे हैं जिसकी वजह से उसमें उर्वरा शक्ति कम चुकी है. पेस्टिसाइड के उपयोग से मिट्टी प्रदूषित हो रही है. इन सबकी वजह से किसानों की उत्पादन लागत भी बढ़ गई है.

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Farmers of Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के पास के एक किसान हैं...वेगेन्द्र सोनबर. वे पहले जब अपना खेत जोतते थे वे 25 HP के ट्रैक्टर का इस्तेमाल करते थे लेकिन ये दशकों पहले की बात है. अब  अपना खेत जोतने के लिए वे 55-60 HP के ट्रैक्टर का इस्तेमाल करते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि उनके खेत की मिट्टी ठोस हो गई है और उसे जोतने के लिए टैक्टर की ताकत बढ़ाना उनकी मजबूरी है. वैसे वेगेन्द्र अकेले नहीं हैं ये दिक्कत छत्तीसगढ़ के लाखों किसानों की है. दरअसल धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ की मिट्टी (Soil in Chhattisgarh) बीमार हो रही है.राज्य की मिट्टी में नाइट्रोजन 80 फीसदी तक कम हो गया है. 
रायपुर स्थित इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ( Indira Gandhi Agricultural University) की रिपोर्ट और डराती है. यहां के मृदा विज्ञान विभाग की लैब टेस्टिंग रिपोर्ट में जो खुलासे हुए हैं वो आपको चिंता डाल देने के लिए काफी हैं. रिपोर्ट के मुताबिक राज्य की मिट्टी में पोषक तत्व तेजी से घट रहे हैं जिसकी वजह से उसमें उर्वरा शक्ति कम चुकी है. पेस्टिसाइड के उपयोग से भी मिट्टी प्रदूषित हो रही है. इन सबकी वजह से किसानों की उत्पादन लागत काफी बढ़ गई है. 

संस्थान के वैज्ञानिक विनय बचकैया ने अपनी जांच रिपोर्ट NDTV से भी साझा की. जिसके मुताबिक संस्थान ने मिट्टी के नमूनों में मुख्य और सूक्ष्म पोषक तत्व की जांच की है. वे बताते हैं कि मिट्टी में तीन मुख्य पोषक तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम है. इसके अलावा आयरन, मैग्नीशियम, कॉपर, जिंक और बोरान भी इसके पोषक तत्व हैं.

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इसमें नाइट्रोजन सबसे अहम है. छत्तीसगढ़ में अलग-अलग जगहों से इकट्ठा किए गए मिट्टी के नमूनों में इसी नाइट्रोजन की 77 फीसदी तक कमी पाई गई. नाइट्रोजन भरपूर रहता है तो पौधे को हरा बनाने में मदद मिलती है. इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने 5000 से ज्यादा सैंपल जांचे हैं

. वैज्ञानिकों का मानना है जैविक खादों का उपयोग नहीं होने से ये दिक्कत बढ़ी है. विनय बचकैया बताते हैं यदि रासायनिक खाद के साथ वर्मी कम्पोस्ट हरी खाद का उपयोग करेंगे तो हालात में सुधार हो सकता है.  किसान वेगेन्द्र भी वैज्ञानिकों की बातों की तस्दीक करते हैं. वे बताते हैं 70 के दशक में रासायनिक खादों का इतना इस्तेमाल नहीं होता था. जब मिट्टी काफी मुलायम थी. अब हालात ये है कि हल से तो छोड़िए कम क्षमता वाले ट्रैक्टर का भी इस्तेमाल नहीं कर सकते. मिट्टी के ज्यादा ठोस होने की वजह से वाटर रिचार्ज भी नहीं हो रहा है. 

बता दें कि छत्तीसगढ़ में कई तरह की मिट्टी पाई जाती है, जैसे कि काली मिट्टी,लैटेराइट,लाल मिट्टी,दोमट मिट्टी,कन्हार,मटासी,डोरसा,भठा और कछार.  छत्तीसगढ़ में पाई जाने वाली मिट्टी धान की फ़सल के लिए उपयुक्त होती है, इसलिए इसे धान का कटोरा कहा जाता है. राज्य में लगभग 41 लाख किसानों के पास मृदा हेल्थ कार्ड हैं, फिर भी मिट्टी में पोषण की कमी इस मामले में सरकारी कमजोरी की तरफ इशारा करती है. 

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