CG News: छत्तीसगढ़ के 'मांझी' ने 27 वर्ष तक कड़ी मेहनत कर अकेले ही खोद दिया तालाब, अब पूरे गांव के लोग बुझा रहे हैं प्यास

Chhattisgarh latest News: श्यामलाल ने मजदूरी से लौटने के बाद रोजाना दो से चार घंटे तालाब खोदने का काम किया. यह सिलसिला 27 साल तक चला. शुरुआती दिनों में गांववालों ने उनका मजाक उड़ाया और उन्हें पागल तक कहा, लेकिन श्यामलाल ने इन बातों को नजरअंदाज कर अपने काम पर ध्यान दिया.

विज्ञापन
Read Time: 3 mins

Chhattisgarh News: झारखंड (Jharkhand) के दशरथ मांझी (Dashrath Manjhi) की कहानी तो आपने सुनी होगी, जिसने अकेले ही अपनी कड़ी मेहनत से पहाड़ का सीना चीर कर रास्ता बना दिया था. लेकिन, आज हम आपको बताने के जा रही है. छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के 'मांझी' के बारे में, जिसने 27 साल तक कड़ी मेहनत कर अकेले ही एक तालाब खोद डाला, जिससे गांव के लोगों की पानी समस्या खत्म कर दी है.

छत्तीसगढ़ के चिरमिरी के साजापहाड़ गांव के निवासी श्यामलाल राजवाड़े ने पानी की भारी कमी को देखते हुए 1990 में तालाब खोदने का निर्णय लिया. गांव में पानी का एकमात्र स्रोत एक हैंड पंप था, जो गर्मियों में सूख जाता था. इस वजह से गांव वालों को दूर-दराज के गंदे नालों से पानी लाना पड़ता था. श्यामलाल ने इसे अपनी जिम्मेदारी समझा और खुद तालाब खोदने का बीड़ा उठाया.

अकेले शुरू किया सफर और झेली मुश्किलें

श्यामलाल ने मजदूरी से लौटने के बाद रोजाना दो से चार घंटे तालाब खोदने का काम किया. यह सिलसिला 27 साल तक चला. शुरुआती दिनों में गांववालों ने उनका मजाक उड़ाया और उन्हें पागल तक कहा, लेकिन श्यामलाल ने इन बातों को नजरअंदाज कर अपने काम पर ध्यान दिया. उनकी मेहनत ने धीरे-धीरे लोगों को उनका समर्थन करने पर मजबूर कर दिया.

परिवार ने भी झेला संघर्ष

श्यामलाल की पत्नी फूल कुंवर ने उनके संघर्ष के दिनों को याद करते हुए बताया कि कैसे परिवार को खाने-पीने की दिक्कतों का सामना करना पड़ा. फुल कुंवर ने बताया कि मैं उन्हें रोकने की कोशिश करती थी, लेकिन वे अपनी मेहनत में लगे रहते थे. श्यामलाल ने तपस्या जारी रखी. उसका परिणाम ये हुआ कि उनकी मेहनत की वजह से आज न केवल उनके परिवार वाले, बल्कि पूरे गांव को लाभ उठा रहे हैं.

Advertisement

गांव में खुशहाली लाया तालाब

आज इस तालाब की वजह से गांव की पानी की समस्या खत्म हो गई है. यह न केवल पीने के पानी का स्रोत बना, बल्कि इससे खेतों की सिंचाई और पशुओं की जरूरतें भी पूरी हो रही हैं. श्यामलाल ने तालाब के आसपास सब्जियां उगाना शुरू किया, जिससे उनकी आय भी बढ़ी.

गांववालों ने किया सम्मानित

श्यामलाल की इस मेहनत ने पूरे गांव को प्रेरणा दी है. गांव के निवासी नान साय ने बताया कि श्यामलाल की मेहनत ने वह कर दिखाया, जो किसी ने सोचा भी नहीं था. उनका तालाब आज हमारे गांव का जीवन रेजा बन चुकी है.

Advertisement

यह भी पढ़ें- बीता दशक जल सुरक्षा... खजुराहो से PM मोदी ने दी ये सौगातें, जानिए भाषण में क्या कुछ कहा?

श्यामलाल राजवाड़े की यह कहानी बताती है कि अगर इंसान ठान ले, तो कुछ भी असंभव नहीं है. उनका यह तालाब न केवल पानी का स्रोत है, बल्कि उनकी तपस्या और संघर्ष का प्रतीक भी है. यह कहानी हमें सिखाती है कि कठिनाइयों के बावजूद अगर हम अपने उद्देश्य के प्रति समर्पित रहें, तो हर सपना साकार हो सकता है.

Advertisement

यह भी पढ़ें- ऐसे कैसे बचेंगे अमृत सरोवर, भ्रष्टाचार ने सुखा दिया तालाब, अब हो रही खेती, उग गईं फसलें
 

Topics mentioned in this article