Chhattisgarh: 14वीं शताब्दी में बने शिव मंदिर के अवशेष को SECL ने ब्लास्ट कर उड़ाया, पुरातत्व विभाग से नहीं लिया एनओसी

CG News: छत्तीसगढ़ के चिरमिरी में एसईसीएल और पुरातत्व विभाग के बीच विवाद का मामला सामने आया है. दरअसल, एसईसीएल ने पुरातत्व विभाग से बिना एनओसी लिए ही 14 वीं शताब्दी में बने मंदिर के अवशेष को ब्लास्ट कर उड़ा दिया.

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Dispute Between SECL and Archeological Department: छत्तीसगढ़ के एमसीबी जिले (MCB) के चिरमिरी (Chirmiri) में कोयला खदान के लिए 14वीं शताब्दी में बने शिव मंदिर के अवशेष को एसईसीएल (SECL) ने ब्लॉस्ट कर उड़ा दिया. इतना ही नहीं यहां के प्राचीन तालाब को भी खदान में तब्दील कर दिया गया है, जबकि न्यायालय के आदेश पर पुरातत्व विभाग द्वारा मंदिर के अवशेष और मूर्तियों को खोदकर वहां से 2 किमी दूर स्थापित करने का काम चल रहा था. मामले में पुरातत्व विभाग (Archeological Department) के अफसरों का कहना है कि खदान से ब्लास्ट से पहले पुरातत्व विभाग से एसईसीएल (South Eastern Coalfields Limited) को एनओसी लेनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया.

हाईकोर्ट ने शिफ्टिंग का दिया था आदेश

आपको बता दें कि चिरमिरी से 3 किमी दूर बरतुंगा में एक प्राचीन मंदिर का अवशेष था, जिसे लोग सती मंदिर मानकर पूजा करते थे, लेकिन यहां जब एसईसीएल ने ओपन खदान शुरू करने का प्लान बनाया तो स्थानीय लोग हाईकोर्ट चले गए. न्यायालय ने मामले में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को तलब किया, लेकिन एएसआई के अफसरों ने जवाब दिया कि यह स्थल उनके द्वारा संरक्षित नहीं है. जिसके बाद न्यायालय ने कहा कि वहां खदान खोलने के लिए मंदिर के अवशेष को जिला प्रशासन पुरातत्व विभाग की देखरेख में दूसरी जगह शिफ्ट किया जाए और मंदिर का रूप दिया जाए.

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इस पर जिला प्रशासन ने छत्तीसगढ़ सरकार के पुरातत्व विभाग को मंदिर स्थल की खुदाई का जिम्मा दिया और खुदाई के साथ ही मंदिर के अवशेष को पुरातत्व विभाग के अफसर बरतुंगा से दो किमी दूर ले जाकर शिफ्ट करने लगे. अफसरों की मानें तो खुदाई कर शिफ्टिंग का काम चल ही रहा था कि एसईसीएल ने वहां ब्लास्ट कर दिया और पुरातात्विक साइट पूरी तरह से नष्ट हो गया.

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बिना एनओसी किया गया ब्लास्ट

वहीं इस पूरे मामले में पुरातत्व विभाग के अफसरों का कहना है कि जब हम पूरी तरह संतुष्ट हो जाते कि पुरातात्विक खनन हो गया है और सभी मंदिर के मूर्ति व पत्थर निकल गए हैं, तब खनन बंद किया जाता. इसके बाद कोल माइंस के लिए ब्लास्ट करने से पहले एसईसीएल द्वारा पुरातत्व विभाग से एनओसी लिया जाता और फिर कोयला खदान के लिए ब्लास्टिंग होती. लेकिन, ऐसा नहीं किया गया.

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मामले में पुरातत्व विभाग के अफसरों का कहना है कि ब्लास्ट से पहले तक खुदाई में जितने भी मूर्ति और शिवलिंग मिले हैं, मंदिर के जितने पत्थर मिले हैं उन्हें कोठरी में रखा है. वहां उन्हीं पत्थर से मंदिर बनेगा, लेकिन सारे पत्थर असुरक्षित हैं तो मूर्तियों को अस्थाई रूप से साईट में एक कमरे में रखा गया है. आचार संहिता के कारण मंदिर के निर्माण के लिए टेंडर भी नहीं हो पा रहा है. 

मंदिर के लिए एसईसीएल ने दिए 33 लाख रुपए 

मंदिर निर्माण के लिए एसईसीएल ने 33 लाख रुपए दिए हैं, लेकिन यह रुपए कम पड़ेंगे. 600 साल पहले मंदिर जितना बड़ा था, ठीक उसी आकर में उसी डिजाइन में बनाने की कोशिश होगी. पुरातत्व विभाग के अफसरों ने जमीन की सतह से ढाई मीटर तक खुदाई कर मूर्तियां और मंदिर के पत्थर निकाले हैं, लेकिन वहां और भी मूर्ति व पत्थर हो सकते थे. जानकारों की मानें तो ऐसे स्थल पर 130 मीटर की दूरी तक न कोई निर्माण किया जा सकता है और न ही ब्लास्ट. 

अफसर एक-दूसरे पर लगा रहे आरोप

मामले में पुरातत्व विभाग के डिप्टी डायरेक्टर जेआर भगत का कहना है कि पुरातात्विक साइट पर हम पत्थर और मूर्ति निकाल रहे थे, वहां ब्लास्ट करने से पहले एसईसीएल को हमसे एनओसी लेना चाहिए था. हम उन्हें व जिला प्रशासन को कारण बताओ नोटिस देंगे. वहीं एसईसीएल के सब एरिया मैनेजर मनीष सिंह का कहना है कि पुरातत्व विभाग से हमें ब्लास्ट करने के लिए एनओसी लेने की कोई जरूरत नहीं थी. मजदूरों ने कहा पूरी मूर्ति निकाल लिए गए हैं इसलिए हमने ब्लास्ट किया. पुरातत्व वाले बेकार की बात कर रहें हैं.

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