राजिम कुंभ: शिल्पकला का उत्कृष्ट नमूना है राजिम का सबसे प्राचीन श्रीरामचंद्र मंदिर

राजिम का पूर्व मुखी रामचन्द्र मंदिर अति प्राचीन है. मंदिर के गर्भगृह में बने पाषाण स्तंभों की शिल्प इस मंदिर की प्राचीनता को दर्शाती है. मंदिर के एकाश्मक स्तम्भों पर उकेरी गई देवी देवताओं की प्रतिमा सहित कला का उत्कृष्ट नमूना देखने को मिलता है. एक शिलालेख के अनुसार यह मंदिर 8वीं 9वीं शताब्दी ई का है. यहां मौजूद शिलालेख मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में कल्चुरी सामंतों के प्रमुख जगतपाल देव द्वारा किए जाने की पुष्टि करता है.

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Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय (Chhattisgarh Chief Minister Vishnu Dev Sai) ने 7 जनवरी 2024 को राजिम भक्तिन माता जयंती के मौके पर कहा था कि राजिम कुंभ की भव्यता पुनः लौटेगी. देश भर से साधु संत इसमें शामिल होने आएंगे. वहीं अब सीएम विष्णु देव साय की पहल से राजिम कुंभ (Rajim Kumbh) की वैभवता फिर से लौट आयी है. राजिम कुंभ कल्प में देशभर से साधु संतो का आगमन शुरू हो गया है. राजिम में स्थित श्री रामचंद्र मंदिर (Sri Ramachandra Temple) का इतिहास काफी पुराना है. आइए जानते हैं छत्तीसगढ़ में आस्था और धर्म के केंद्र रूप में मौजूद इस मंदिर के इतिहास के बारे मे...

राजिम मंदिर

कितना पुराना है यह मंदिर? 

मंदिर में लगे शिलालेखों तथा पुरातत्व विभाग (Archeology Department) द्वारा लगे सूचना बोर्ड से यह पता चलता है कि इस मंदिर का निर्माण कल्चुरि सामंतो द्वारा ग्यारहवीं शताब्दी (Eleventh Century) में किया गया था. इस मंदिर में भगवान गणेश जी की एक नृत्य करती हुई मूर्ति (Dancing Statue of Lord Ganesha) है जो पुरातत्ववेत्ता के अनुसार काफी पुरानी है जिसे पुरातत्व विभाग द्वारा विशेष संरक्षण प्राप्त है.

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मंदिर के गर्भगृह में पाषाण स्तंभो पर उकेरा गया शिल्प बहुत ही मनमोहक है जो कल्चुरि कालीन संस्कृति और सभ्यता दर्शाती है. मंदिर के दरवाजे पर शिल्प की उत्कृष्ट कला के मूर्तिया शिल्पी है. राजिम का यह राम मंदिर का सबसे प्राचीन मंदिर कहा जाता है. इस मंदिर को पुरातत्व विभाग द्वारा अपने अधीनस्थ रखते हुए संरक्षित किया गया तथा इस मंदिर का जीर्णाद्धारात्मक मरम्मत कराया जा रहा है. ताकि मंदिर को प्राचीनता स्पष्ट दिखाई दें.

राजिम मंदिर

राजिम का पूर्व मुखी रामचन्द्र मंदिर अति प्राचीन है. मंदिर के गर्भगृह में बने पाषाण स्तंभों की शिल्प इस मंदिर की प्राचीनता को दर्शाती है. मंदिर के एकाश्मक स्तम्भों पर उकेरी गई देवी देवताओं की प्रतिमा सहित कला का उत्कृष्ट नमूना देखने को मिलता है. एक शिलालेख के अनुसार यह मंदिर 8वीं 9वीं शताब्दी ई का है. यहां मौजूद शिलालेख मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में कल्चुरी सामंतों के प्रमुख जगतपाल देव द्वारा किए जाने की पुष्टि करता है.

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