Bilaspur Pollution News: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में कई शराब फैक्ट्री (Liquor Factory) संचालित किए जा रहे हैं. प्रदेश के कई जिलों में शराब की सप्लाई की जाती है. शराब का निर्माण किसी निजी कंपनी को ठेका के रूप में दिया जाता है. लेकिन, इसकी बिक्री का जिम्मा सरकार स्वयं उठा रही है. इससे राज्य सरकार (State Government) को टैक्स के तौर पर बड़ा राजस्व मिलता है. लेकिन, क्या आपको पता है कि शराब फैक्ट्री से पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण और प्लांट की गंदगी पर ध्यान नहीं दिया जाए तो स्थानीय लोगों पर इसका क्या असर पड़ेगा...
बिलासपुर जिले के कोटा विकासखंड में पिछले कई वर्षों से छेरका बांधा ग्राम पंचायत में निजी शराब फैक्ट्री संचालित की जा रही है. फैक्ट्री से निकलने वाली जहरीले गैस पर्यावरण प्रदूषण और गंदे पानी से आसपास के कई गांव प्रभावित हो रहे हैं. यह मुद्दा शीतकालीन विधानसभा सत्र के दौरान भी गूंजा. कोटा विधायक अटल श्रीवास्तव ने जहरीले गैस से ग्रामीणों को हो रही बीमारियों के मुद्दे को लेकर मंत्री ओपी चौधरी से पूछा कि उस शराब प्लांट को बार-बार क्लियरेंस आखिर क्यों दिया जा रहा है.. इस पर मंत्री ओपी चौधरी ने कहा कि पेनाल्टी की कार्रवाई समय समय में की जा रही है. अब जिला प्रशासन के निर्देश पर पर्यावरण विभाग के दिखावे की पेनल्टी कार्रवाई के बावजूद कोई सुधार नहीं होना और फैक्ट्री संचालित होना खुद में कई सवाल खड़े हो रहे हैं.
सरकारी स्कूल के सामने बनी है फैक्ट्री
कोटा विकासखंड में निजी शराब फैक्ट्री के ठीक सामने एक शासकीय स्कूल है. इस प्लांट से ग्रामीण क्षेत्र छेरका बांधा में प्रवेश करने के पहले ही कई किलोमीटर तक प्लांट से निकलने वाली जहरीली गैस की बदबू आने लगती है. प्लांट के सामने स्थित शासकीय स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों का इससे बुरा हाल हो जाता है. शराब फैक्ट्री के खिलाफ आवाज उठाने के लिए ग्रामीण कतराते हैं क्योंकि आसपास के प्रभावित ग्रामीण उसी फैक्ट्री में काम करते हैं. आसपास के क्षेत्र में कोई उद्योग या बड़ी व्यवसाय नहीं होने के कारण मजबूरन प्रभावित ग्रामीण इस फैक्ट्री में काम करते हैं और अपनी जीविका चलाते हैं. उन्हें डर है की फैक्ट्री से निकलने वाले प्रदूषण के बारे में जानकारी दी जाए तो उन्हें काम से निकाल दिया जाएगा.
ग्रामीणों ने लगाया आरोप
ग्रामीणों का आरोप है कि जो व्यक्ति कंपनी प्रबंधन के खिलाफ आवाज उठाता है, उनके ऊपर राजनीतिक और अन्य तरह के दबाव बनाए जाते हैं. इस वजह से ग्रामीण जनता खामोश रहते हैं. कुछ ग्रामीणों ने पहले इसकी शिकायत जिला कलेक्टर से की थी. जिस पर जांच टीम गठित किया गया था. जांच के बाद शराब फैक्ट्री पर कुछ अनीयमितताएं पाई गई थी. इसके बाद फैक्ट्री के खिलाफ जुर्माना लगाया गया था. अलग-अलग दो खामियों में कुल 12 लाख 90 हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया. लेकिन, इसके बावजूद भी कंपनी प्रबंधन के द्वारा पर्यावरण प्रदूषण और स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य को ध्यान में देखते हुए किसी तरह का कोई ठोस पहल नहीं किया जा रहा है.
जिला कलेक्टर ने कही ये बात
शराब फैक्ट्री के खिलाफ ग्रामीणों की नाराजगी और इसके सुरक्षा और पर्यावरण प्रदूषण को लेकर कलेक्टर अवनीश शरण से बात की गई. उन्होंने शराब फैक्ट्री की लापरवाही और फैक्ट्री द्वारा फैलाई जाने वाली प्रदूषण को सामान्य बताया. यह सवाल उठना लाजिमी है कि अगर फैक्ट्री प्रबंधन पर्यावरण प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए काम कर रही है, तो आखिर उस पर पेनल्टी क्यों लगाया गया और कलेक्टर साहब इसे सामान्य क्यों बता रहे हैं.
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पर्यावरण अधिकारी ने कही ये बात
शराब फैक्ट्री के खिलाफ और एक शिकायत के बारे में जिले के पर्यावरण अधिकारी से इस बारे में जानने की कोशिश की, लेकिन जिले के अधिकारी ने इस संबंध में किसी तरह का जवाब देना उचित नहीं समझा. प्लांट से निकलने वाले तीव्र जहरीले गंध से तरह-तरह की बीमारियां हो रही है. सर दर्द, सीने में जलन जैसे कई बीमारियों ने ग्रामीणों और उनके बच्चों को जकड़ लिया है.
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