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Pitru Paksha: श्राद्ध में अन्न निकलता है, पर कौवे नहीं आते... जानिए पिलखा-रामगढ़ पहाड़ से 50KM इलाके की रहस्यमयी कहानी

Pitru Paksha 2025: श्राद्ध पक्ष में कौओं का विशेष महत्व होता है. इन्हें लोग पितरों का भोजन देते हैं. लेकिन छत्तीसगढ़ में एक ऐसी जगह है, जहां एक भी कौवे नहीं मिलते. आखिर क्या है कौवे के गायब होने का कारण. आइए जानते हैं.

Pitru Paksha: श्राद्ध में अन्न निकलता है, पर कौवे नहीं आते... जानिए पिलखा-रामगढ़ पहाड़ से 50KM इलाके की रहस्यमयी कहानी

Pitru Paksha 2025, Pilkha-Ramgarh hill mysterious story: छत्तीसगढ़ के सूरजपुर और सरगुजा के बीच स्थित एक क्षेत्र पिछले कई वर्षों से एक रहस्यमय वजह से चर्चा में बना हुआ है. सूरजपुर का कनकपुर, गणेशपुर, पंडोनगर, पहाड़गांव से लेकर सरगुजा के रामगढ़ पहाड़ तक करीब 50 किलोमीटर का यह इलाका पक्षियों की चहचहाहट से तो भरा हुआ है, लेकिन हैरानी की बात यह है कि यहां एक भी कौआ देखने को नहीं मिलता.

छत्तीसगढ़ का यह इलाका है रहस्यमयी

यह जगह प्राकृतिक सौंदर्य और जैव विविधता से भरपूर है. मोर, तोते, मैना, गौरैया और अन्य कई पक्षी यहां बड़ी संख्या में दिखाई देते हैं. जंगलों में जंगली मुर्गे भी मिलते हैं, लेकिन कौए जैसे आम पक्षी का नामो-निशान भी यहां नहीं है. यह बात लोगों के लिए जितनी आश्चर्यजनक है, उतनी ही रहस्यमयी भी.

यहां नहीं पाए जाते हैं कौवे

इस रहस्य के पीछे एक पौराणिक कथा भी जुड़ी हुई है. स्थानीय लोगों की मान्यता है कि त्रेता युग में जब भगवान राम और लक्ष्मण वनवास के दौरान इस इलाके से गुजर रहे थे, तब एक कौआ रावण तक किसी संदेश को पहुंचाने की कोशिश कर रहा था. इस पर क्रोधित होकर लक्ष्मण ने उसे श्राप दे दिया कि इस क्षेत्र में कौए कभी नहीं बसेंगे. तब से लेकर आज तक, इस मान्यता को गांव के लोग पूरी आस्था के साथ मानते आ रहे हैं.

आज भी लोग निभाते हैं अन्न देने की परंपरा

हर साल पितृपक्ष के समय जब लोग अपने पूर्वजों को भोजन अर्पित करते हैं, तब आमतौर पर कौओं को यह अन्न दिया जाता है, लेकिन इस क्षेत्र में कौए ना होने के कारण यह अन्न मैना, गौरैया या अन्य पक्षी खा लेते हैं. समय के साथ यह एक परंपरा बन गई है, जिसे लोग आज भी निभाते हैं.

लक्ष्मण ने दिया था श्राप

स्थानीय किसान और ग्रामीणों का मानना है कि यह कोई संयोग नहीं, बल्कि लक्ष्मण का दिया गया श्राप है. कई वैज्ञानिक और पक्षी विशेषज्ञ यहां शोध कर चुके हैं, लेकिन अभी तक कोई वैज्ञानिक कारण स्पष्ट रूप से सामने नहीं आया है. कुछ का कहना है कि रेडिएशन, मोबाइल टावर या कीटनाशकों के असर से पक्षियों की संख्या प्रभावित होती है. लेकिन यदि ऐसा होता तो आस-पास के गांवों में भी कौए नहीं दिखते.

गणेशपुर के निवासी दितेश रॉय बताते हैं कि उन्होंने अपने जीवन में कभी इस इलाके में कौआ नहीं देखा. वहीं पहाड़गांव के भोला सिंह कहते हैं कि हमारे बुजुर्गों से हमने यही सुना है कि यह लक्ष्मण जी का श्राप है.

आज भी यह पूरा क्षेत्र कौतूहल और आस्था का केंद्र बना हुआ है. कौओं की गैरमौजूदगी इसे और भी खास बनाती है. यह बात हर आने-जाने वाले के मन में सवाल जरूर पैदा करती है.आखिर ऐसा क्यों?

वैज्ञानिक जवाब भले ही अधूरे हों, लेकिन स्थानीय लोगों के लिए यह एक आस्था की बात है, जो समय के साथ और मजबूत होती जा रही है.

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