बस्तर में 31 नक्सली नहीं मरते ! 70 टॉप लीडर्स की खातिरदारी की तैयारी ने ऐसे खोद दी कब्र

नक्सलियों के लिए सबसे सुरक्षित इलाके के रूप में पहचान बना चुके अबूझमाड़ ही अब उनके महफूज नहीं रहा. पुख्ता रणनीति के तहत सुरक्षाबलों ने नक्सलियों को ऐसे घेरा कि उन्हें भनक तक नहीं लगी. माड़ की पहाड़ियों में करीब 6 स्थानों पर मुठभेड़ हुई. पढ़िए ग्राउंड जीरो से सबसे बड़े नक्सल मुठभेड़ की इनसाइड स्टोरी

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CG Naxal Encounter: मार्च 2026 तक छत्तीसगढ़ से माओवादियों को खत्म करने के केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) के दावे के बीच बस्तर पुलिस ने 3 अक्टूबर को 31 नक्सलियों को मार गिराया. यह इलाका नक्सलियों के लिए सबसे महफूज माना जाता था. यहां अपने ही घर में नक्सली ऐसे घिरे कि उन्हें भनक तक नहीं लगी और सुरक्षाबलों ने बस्तर के इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा नुकसान नक्सली संगठन को पहुंचा दिया. एनडीटीवी की टीम ग्राउंड जीरो पर पहुंची और पूरे मुठभेड़ की पड़ताल की.

पड़ताल में हमें पता चला कि बस्तर और अबूझमाड़ डिवीजन इलाके के एसजेडसीएम और डीवीसीएम रैंक के नक्सलियों की बड़ी टीम माड़ के पहाड़ी क्षेत्र में इकट्ठा हुई. बस्तर के नक्सल प्रभावित इलाकों में खुल रहे नए पुलिस कैंपों से नक्सल संगठन पर पड़ रहे असर और सुरक्षाबलों को माड़ इलाके में घुसने से रोकने के लिए नक्सली बड़ी बैठक रहे थे. इसके अलावा 21 सितंबर से 30 अक्टूबर तक मनाए जाने वाले पीपुल्स वार और एमसीसी के विलय की 20वीं वर्षगांठ पर बड़े आयोजन पर चर्चा भी की जानी थी.

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आस-पास के लोगों से बातचीत में पता चला कि 70 से ज्यादा नक्सलियों के लिए खाने-पीने के इंतजाम के लिए मिलिशिया कैडर्स द्वारा आस-पास के इलाकों से बड़ी मात्रा में राशन इकट्ठा किया जा रहा था. यह सूचना फोर्स तक पहुंची, इसके बाद फोर्स ने बड़ा एंटी नक्सल ऑपरेशन लॉन्च करने की योजना बनाई.

फोर्स इस मौके को खाली हाथ जाने देना नहीं चाहती थी, क्योंकि एक ही जगह पर इतनी बड़ी संख्या में नक्सली कम ही इकट्ठा होते हैं.

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जहां सबसे बड़ा नक्सल एनकाउंटर हुआ वहां मुठेभड़ स्थल पर रेडी टू इट खाने के पैकेट भी मिले.

पड़ताल में हमें पता चला कि नक्सलियों के टॉप लीडर्स के लिए खाने पीने व अन्य इंतजाम में छोटे कैडर लग गए. बताया जा रहा कि टॉप लीडर की खातिरदारी की तैयारी ही नक्सलियों को ज्यादा भारी पड़ी. बताया जा रहा है कि राशन और अन्य व्यवस्थाओं के इंतजाम में कुछ लोगों के साथ नक्सलियों ने हिंसक गतिविधियां भी की थी. इसकी जानकारी सुरक्षा बलों के इंटेलिजेंस तक पहुंची. इसके बाद सुरक्षा बलों ने सोची-समझी रणनीति के तहत जाल बिछाया, जिसमें नक्सली फंस गए. जवानों को नीति और नंदू जैसे बड़े नक्सल लीडर को भी मारने में सफलता मिली. छत्तीसगढ़ में नक्सल हिंसा के खिलाफ सुरक्षा बलों के ये सबसे बड़ी कामयाबी बताई जा रही है. मुठभेड़ में मारे गए कुल 31 में से 16 नक्सलियों की पहंचान सार्वजनिक की जा चुकी है. पुलिस का दावा है कि इन सभी पर 1 करोड़ 30 लाख रुपये से ज्यादा के इनाम घोषित थे.

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नारायणपुर की टीम के साथ पहली मुठभेड़

नक्सलियों के लिए सबसे सुरक्षित इलाके के रूप में पहचान बना चुके अबूझमाड़ ही अब उनके महफूज नहीं रहा. पुख्ता रणनीति के तहत सुरक्षाबलों ने नक्सलियों को ऐसे घेरा कि उन्हें भनक तक नहीं लगी. माड़ की पहाड़ियों में करीब 6 स्थानों पर मुठभेड़ हुई. पहली मुठभेड़ थुलथुली गांव के करीब जंगल में नारायणपुर जिले से निकली पुलिस पार्टी के साथ हुई. एकाएक हुए फायरिंग में नक्सली कुछ समझ पाते इससे पहले ही कई बड़े नक्सली लीडर पुलिस की गोली का शिकार हो गए. इसके बाद नक्सलियों ने मोर्चा संभालने के लिए पेड़ों और पहाड़ी का सहारा लिया. लेकिन नारायणपुर और दंतेवाड़ा जिले से निकले करीब 1500 से ज्यादा जवान नक्सलियों को चारों ओर घेर लिया. इसके बाद नक्सलियों और सुरक्षाबलों के बीच जमकर गोलीबारी हुई. इसमें एसटीएफ, डीआरजी और बस्तर बटालियन के जवान शामिल थे. 

प्रशासन की पहुंच से दूर माड़ इलाका

4 अक्टूबर को सुरक्षाबलों ने अबूझमाड़ के थुलथुली, मेंदूर, इतावाड़ा और गेवाड़ी के जंगल में  माओवादियों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई करते हुए 31 नक्सलियों को ढेर कर दिया था, जिस माड़ को माओवादियों का गढ़ माना जाता है वह इलाका सरकार और प्रशासन की पहुंच से दूर है. नक्सली माड़ के जंगलों में ट्रेनिंग कैंप और विभिन्न नक्सली गतिविधियों को लेकर बैठकों का आयोजन और सुरक्षाबलों के खिलाफ रणनीति तैयार करते हैं. लंबे पहाड़ों की श्रृंखला के बीच बसे इन गांवों में फिलहाल सुरक्षाबलों के अलावा अन्य किसी के पैर नहीं पड़े हैं. आदिवासी अपने जीवन यापन के लिए पहाड़ों में ही खेती कर रहे हैं. सरकारी राशन तक उन्हें नहीं मिल पा रहा है. वे प्राकृतिक जल स्रोतों से ही पानी की व्यवस्था करते हैं. बीमार हो जाने पर ग्रामीणों को कई मीलों सफर तय कर पथरीले और पगडंडी रास्ते के सहारे पहाड़ से नीचे उतरना पड़ता है.
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