मुठभेड़ में ढेर हुआ हिड़मा: सुकमा में दिवाली, लोगों ने फोड़े पटाखे, कहा-अब खत्म होगा खून का खेल

Madvi Hidma Encounter: खूंखार माओवादी माडवी हिड़मा के मारे जाने के बाद उसके गृहजिले सुकमा में जश्न का माहौल है. लोग चौक-चौराहों पर आतिशबाजी कर जश्न मना रहे हैं.

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Celebrations in Sukma after Hidma Death: आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा पर सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच मंगलवार सुबह हुई मुठभेड़ में छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा वांटेड नक्सली माड़वी हिड़मा मारा गया. एक करोड़ के इनामी हिड़मा की मौत के बाद सुकमा और आसपास के इलाकों में जश्न का माहौल है. लोगों ने पटाखे फोड़कर खुशियां मनाईं. लंबे वक्त से बस्तर में खौफ का दूसरा नाम बन चुका हिड़मा अब नहीं रहा.

जानकारी के मुताबिक, संयुक्त बलों ने गुप्त सूचना पर सीमा के घने जंगलों में सर्च ऑपरेशन चलाया था. इसी दौरान नक्सलियों ने गोलीबारी शुरू कर दी. जवाबी कार्रवाई में सुरक्षाबलों ने मोर्चा संभाला. कई घंटे चले इस एनकाउंटर में हिड़मा और उसकी पत्नी राजे समेत 6 नक्सली ढेर हो गए. हिड़मा का शव मौके से बरामद हुआ, जबकि बाकी नक्सली जंगलों की ओर भाग निकले.

नक्सल विरोधी फारुख अली ने बताया, 'हिड़मा पर देश में नक्सल वारदातों की सबसे लंबी सूची दर्ज थी. जिन निर्दोष आदिवासियों और सुरक्षाबलों के जवानों की हत्या हिड़मा के इशारे पर हुई, आज उनकी आत्मा को शांति मिली होगी. बस्तर में आज दिवाली जैसा माहौल है.

उन्होंने बताया कि बस्तर में बीते वर्षों में हुई ज्यादातर बड़ी नक्सली घटनाओं में हिड़मा का हाथ रहा. चाहे वह ताड़मेटला की घटना हो, बुरकापाल हमला हो या दरभा घाटी में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर हमला हो. उन्होंने  कहा, हिड़मा का खात्मा नक्सलवाद के ताबूत में आखिरी कील साबित होगा.

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विकास की राह में सबसे बड़ा रोड़ा था हिड़मा

अधिवक्ता और समाजसेवी कैलाश जैन ने कहा, 'हिड़मा सुकमा का सबसे बड़ा आतंकी था. उसने वर्षों तक इस इलाके के विकास को रोक रखा था. आज सुरक्षाबलों की मेहनत रंग लाई है। अब सुकमा शांति और विकास की ओर बढ़ सकेगा. 

सरकार और सुरक्षा तंत्र के लिए बड़ी सफलता

राज्य सरकार और केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों के लिए यह बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है. पिछले एक दशक से हिड़मा न सिर्फ नक्सल नेटवर्क का मास्टरमाइंड था, बल्कि हथियारों की सप्लाई और प्रशिक्षण का प्रमुख केंद्र भी इसी के नियंत्रण में था. विशेषज्ञ मानते हैं कि हिड़मा का अंत नक्सल संगठन के ढांचे को झटका देगा और जंगलों में फिर से सरकार का विश्वास कायम करेगा.

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सुकमा में जन्मा था हिड़मा 

हिड़मा का जन्म साल 1981 में सुकमा के पुवार्ती गांव में हुआ था. वो माड़वी हिडमा उर्फ ​​संतोष के नाम से भी जाना जाता था. पीपल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (PGLA) बटालियन-1 का हेड था. इसके अलावा माओवादी स्पेशल जोनल कमेटी (DKSZ) का भी सदस्य था. इतनी ही नहीं सीपीआई की 21 सदस्यीय सेंट्रल कमेटी का सदस्य था.

सीसी के सबसे कम उम्र के सदस्य था

वो भाकपा (माओवादी) की केंद्रीय समिति (सीसी) के सबसे कम उम्र के सदस्य थे. यह उपलब्धि हासिल करने वाले बस्तर क्षेत्र के एकमात्र आदिवासी थे. हिडमा दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी का एक प्रमुख व्यक्ति था.

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इन हमलों में था शामिल

हिड़मा 2010 का दंतेवाड़ा नरसंहार भी शामिल था, जिसमें 76 सीआरपीएफ जवान मारे गए थे. उनका नाम 2013 के झीरम घाटी नरसंहार से भी जुड़ा है, जिसमें घात लगाकर किए गए हमले में शीर्ष कांग्रेस नेताओं सहित 27 लोग मारे गए थे. इसे दरभा घाटी नरसंहार के नाम से भी जाना जाता है. इसके अलावा 2017 का सुकमा घात हमला भी है, जिसमें सुरक्षा बलों के कई जवान मारे गए थे. इसके अलावा साल 2021 में सुकमा-बीजापुर घात हमला को अंजाम दिया था. इस हमले में 22 सुरक्षाकर्मी मारे गए थे.

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