सदन की कार्यवाही पर लोकसभा अध्यक्ष बिरला ने दिया बड़ा बयान, 'सदन में सभापति की गरिमा सर्वोपरि'

Lok Sabha Speaker Om Birla: लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि सदन में सभापति की गरिमा सर्वोपरि है और यह भी कहा कि राजकोष तथा विपक्ष को पीठासीन अधिकारी के निर्णयों का सम्मान करना चाहिए. उन्होंने कहा कि सभापति के प्रति सम्मान से लोकतांत्रिक संस्थाओं में लोगों का विश्वास मजबूत होगा.

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रायपुर:

Chhattisgarh News Today: देश में पहली बार एक सत्र के दौरान दोनों सदनों राज्यसभा (Rajya Sabha) और लोकसभा (Loksabha) से 143 सांसदों के निलंबन पर उठ रहे सवालों के बीच लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला (Om Birla) ने शनिवार को बड़ा बयान दिया. उन्होंने कहा कि सहमति और असहमति संसदीय लोकतंत्र की आत्मा है. लिहाजा, सदस्यों को लोगों की आशाओं एवं आकांक्षाओं को व्यक्त करने के लिए सदन के मंच का उपयोग करना चाहिए.

'मर्यादा में रहकर व्यक्त करें असहमति'

छत्तीसगढ़ विधानसभा के नवनिर्वाचित सदस्यों को संबोधित करते हुए बिरला ने कहा कि असहमति को संसदीय गरिमा और मर्यादा के स्थापित मापदंडों के भीतर व्यक्त किया जाना बहुत जरूरी है. उन्होंने कहा कि जब राष्ट्रीय हित की बात आती है, तो सभी सदस्यों को पक्षपातपूर्ण राजनीति से परे उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सामूहिक रूप से काम करना चाहिए.

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'सभापति के सम्मान से लोकतांत्रिक संस्थाओं पर बढ़ता है विश्वास'

बिरला ने कहा कि सदन में सभापति की गरिमा सर्वोपरि है और यह भी कहा कि राजकोष तथा विपक्ष को पीठासीन अधिकारी के निर्णयों का सम्मान करना चाहिए. उन्होंने कहा कि सभापति के प्रति सम्मान से लोकतांत्रिक संस्थाओं में लोगों का विश्वास मजबूत होगा.

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लोकतंत्र के तीनों अंगों मिलकर करना चाहिए काम

बिरला ने कहा कि संविधान के अंदर हमारे तीन अंग हैं, विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका. सबकी अपनी-अपनी सीमाएं हैं और सभी अंगों को प्रयास करना चाहिए कि वह अपनी सीमाओं, अपने कार्यक्षेत्र में रहकर काम करें. कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका सब एक-दूसरे के पूरक हैं और सामंजस्य से काम करते हैं. उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को किसी भी कानून की समीक्षा करने का अधिकार है. विधायिका अगर ठीक से काम करेगी, आवश्यकता अनुसार अधिकतम चर्चा होगी, तो कोई भी अंग हस्तक्षेप नहीं कर पाएगा. अगर विधायिका मजबूत होगी, तो कार्यपालिका में जवाबदेही तय होगी और पारदर्शिता आएगी. न्यायपालिका भी यह अपेक्षा करती है कि विधायिका अपना काम करे. मुझे आशा है कि ये तीनों अंग अपने-अपने क्षेत्र अधिकार के अंदर काम करेंगे.

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चर्चा, संवाद और तर्क हैं हमारे लोकतंत्र की ताकत

बिरला ने सदन में सार्थक चर्चा पर बल देते हुए कहा कि हमारी कोशिश है कि संसद या विधानसभा में कम से कम गतिरोध हो और ज्यादा से ज्यादा चर्चा तथा संवाद हो. असहमति हो सकती है, लेकिन असहमति संवैधानिक आचरण, मर्यादाओं के अनुरूप हो. उन्होंने कहा कि चर्चा, संवाद, तर्क हमारे लोकतंत्र की ताकत रही है. दुनिया के अंदर हमारा लोकतंत्र इसलिए सफल हुआ क्योंकि चर्चा, संवाद सहमति, असहमति हमारी दिनचर्या का हिस्सा रहा है. वह हमारी परंपराओं-परिपाटियों का हिस्सा रहा है. इसलिए आप देखेंगे कि 75 साल के अंदर हम इसी चर्चा संवाद से, बातचीत से देश और प्रदेश में समृद्धि और खुशहाली लेकर आए हैं. कई मुद्दों पर देश की संसद में भी और विधानसभा में भी सर्वसम्मति बनी है. हमारी कोशिश रहती है कि राज्य विधानसभाओं के अंदर सत्ता पक्ष, प्रतिपक्ष दोनों मिलकर विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करें और राज्य के विकास के लिए काम करें.

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महिला सदस्यों की बढ़ती संख्या पर जताई खुशी

उन्होंने कहा कि मुझे खुशी है कि यहां 50 नए विधायक चुनकर आए हैं. महिलाओं की संख्या भी इस बार अधिक है. धीरे-धीरे महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ रहा है. आने वाले समय में राज्य और लोकसभा के अंदर महिलाओं के आरक्षण के बाद इनकी संख्या और बढ़ेगी. पहली बार चुनकर आने वाले विधायक अपने क्षेत्र की समस्याओं को रखें लेकिन राज्य के महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी चर्चा करें.

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