सुकमा और दंतेवाड़ा में आज भी मूलभूत सुविधाओं की दरकार... साफ-पानी, स्कूल और पक्की सड़क को तरसते लोग

सुकमा और दंतेवाड़ा जिले के सरहदी गांव मूलेर में आजादी के 7 दशक के बाद भी ग्रामीणों को बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल रही हैं. ग्रामीण आज भी नाले और तालाब का गंदा पानी पी रहे हैं. गांव में स्कूल और आंगनबाड़ी नहीं हैं. पंचायत प्रतिनिधि भी सालों से गांव का चेहरा नहीं देखा हैं. लोगों को राशन खरीदने के लिए पहाड़ी पार कर 15 किमी का सफर तय करना पड़ता है

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सुकमा और दंतेवाड़ा में आज भी मूलभूत सुविधाओं की दरकार... साफ़-पानी, स्कूल और पक्की सड़क को तरसते लोग

सुकमा और दंतेवाड़ा जिले के सरहदी गांव मूलेर में आजादी के 7 दशक के बाद भी ग्रामीणों को बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल रही हैं. ग्रामीण आज भी नाले और तालाब का गंदा पानी पी रहे हैं. गांव में स्कूल और आंगनबाड़ी नहीं हैं. पंचायत प्रतिनिधि भी सालों से गांव का चेहरा नहीं देखा हैं. लोगों को राशन खरीदने के लिए पहाड़ी पार कर 15 किमी का सफर तय करना पड़ता है. छत्तीसगढ़ में विकास के दावों का भले ही दम भरा जा रहा हो, सरकार कई योजनाएं ला रही हो लेकिन जमीनी हकीकत बेहद कड़वी है. एनडीटीवी ने शनिवार को सुकमा और दंतेवाड़ा जिले के सरहद पर बसे गांव मूलेर में शासन की योजनाओं की जमीनी हकीकत जानने पहुंची. गांव में हालात बेहद दयनीय नजर आए. गांव में शासन की योजनाएं शून्य हैं. आज भी आदिवासियों को तालाब और नाले का गंदा पानी पीने मजबूर होना पड़ रहा है.

सरकारी वादों की जमीनी हकीकत 

शासन की योजनाओं के नाम पर गांव में केवल हैंडपंप और सोलर पोल नजर आते हैं. जो कई महीने से खराब पड़े हैं. मूलेर गांव में 7 पारा है जिसमें करीब 110 घर हैं. पेयजल समस्या को दूर करने पंचायत के जिम्मेदारों ने गांव में 5 हैंडपंप खोदे हैं इनमें 2 हैंडपंप सालों से बंद पड़े हैं. गांव मे पर्याप्त पानी की सुविधा नहीं होने की वजह से ग्रामीण गंदा पानी पीने को मजबूर हैं. जिन हैंडपंप में पानी आता है वे आयरन युक्त हैं. लंबे समय से आयरन युक्त पानी पीने से ग्रामीणों को बीमारियां हो रहीं हैं जिसके चलते ग्रामीण तालाब का पानी पीने को विवश हैं.

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सरपंच-सचिव को भी नहीं कोई सरोकार 

मुलेर गांव दंतेवाड़ा जिले के नाहाड़ी पंचायत का आश्रित गांव हैं. पहाड़ी एवं दुर्गम इलाका होने की वजह ग्रामीण सुकमा जिले से आना जाना करते हैं. सरकार से मिलने वाले मुफ्त चावल के लिए ग्रामीणों को मीलों सफर करना पड़ता है. गांव के करीब एक पहाड़ी है जिसे पार कर वे 15 किमी पैदल सफर करते हैं. तब जाकर आदिवासियों को चावल की व्यवस्था हो पाती है. ग्रामीणों की मांग है कि गांव में ही राशन दुकान खोलने की व्यवस्था की जाए. मुलेर के उप सरपंच माड़वी हांदा, ग्रामीण माड़वी बुधरा और रवा देवा ने बताया कि सरपंच पहाड़ी के उस पार नाहाड़ी गांव में रहता है. साल में एक बार बड़ी मुश्किल से सरपंच उसके दर्शन होते हैं. वहीं, सचिव को फोन करने के बावजूद भी वह गांव नहीं आता है. गांव मेंं कोई समस्या भी आ जाए तो सरपंच सचिव ग्रामीणों को फोन नहीं उठाते हैं.

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