Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ में मनाया जा रहा है कमरछठ का त्योहार, माताओं ने रखा अपने बच्चों की लंबी उम्र के लिए व्रत

Khamarchhathइस त्योहार के दौरान गांव व शहर के मंदिर व किसी के घर के आंगन में सागरी यानी दो तालाब का निर्माण किया जाता है. जिसमें भगवान शिव - पार्वती और कार्तिकेय की मिट्टी की मूर्ति बनाकर, तालाब में काशी,फूल साव के पौधों सहित खेतों में मिलने वाले अन्य समानों से सजाया जाता है.

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Bemetara News: इस दौरान भैंस के दूध से बने सामान का ही उपयोग किया जाता है.

Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में त्योहारों के साथ-साथ व्रत का भी बड़ा महत्व है. शनिवार को छत्तीसगढ़ में महिलाओं ने कमरछठ का व्रत रखा है. प्रदेश के बेमेतरा (Bemetara) जिला ग्रामीण व शहरी परिवेश वाला जिला है. यहां का मुख्य व्यवसाय कृषि ही है और इस जिले में छत्तीसगढ़ के तीज त्योहारों के साथ-साथ व्रत का भी बड़ा महत्व है.

बच्चों की लंबी उम्र के लिए रखती हैं व्रत

शनिवार को छत्तीसगढ़ में कमरछठ यानी हलषष्ठी का त्योहार मनाया जा रहा है. इसका यहां विशेष महत्व होता है. इस दौरान माताएं अपने बच्चों की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती है, और किसी माता के संतान नहीं होती वह भी संतान प्राप्ति के लिए इस व्रत को रखती हैं.

इस दौरान गांव व शहर के मंदिर व किसी के घर के आंगन में सागरी यानी दो तालाब का निर्माण किया जाता है. जिसमें भगवान शिव - पार्वती और कार्तिकेय की मिट्टी की मूर्ति बनाकर, तालाब में काशी,फूल साव के पौधों सहित खेतों में मिलने वाले अन्य समानों से सजाया जाता है. जिसके बाद सभी माताएं एक साथ पूजा अर्चना कर आशीर्वाद लेती हैं.

भैंस के दूध के बने सामान का होता है प्रयोग

इस दौरान भैंस के दूध से बने सामान का ही उपयोग किया जाता है. जिसमें दूध- दही, घी शामिल होता है. माताएं इस दिन सिर्फ भैंस के दूध का ही उपयोग करती हैं. यहां तक चाय भी वह भैंस के दूध से बना कर पीती हैं. इसके अलावा छह प्रकार की भाजिया जो बिना हल चले हो यानी खलिहान, बाड़ी से उत्पादित भाजी का उपयोग किया जाता है.

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खाना पकाने के लिए महुआ की लकड़ी का होता है प्रयोग

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इन सभी पकवानों को पीतल के बर्तन में पकाया जाता है और चम्मच के रूप में महुआ की लकड़ी का उपयोग किया जाता है. साथ ही लाल चावल यानी पसहर चावल का उपयोग किया जाता है जो बिना हल चले वाला चावल होता है, इसके अलावा दोना और पत्तल भी महुआ के पत्तें के ही होते हैं, जिसमें पूजा अर्चना के बाद फलाहार किया जाता है. 

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