जग्गी हत्याकांड: 20 साल पुराने मामले में दो दोषियों को मिली बेल, जानें NCP नेता का कैसे हुआ था मर्डर

Ram Avtar Jaggi murder case:  सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को छत्तीसगढ़ के रायपुर में 2003 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के नेता राम अवतार जग्गी (Ram Avtar Jaggi) की हत्या के मामले में दो दोषियों की आजीवन कारावास की सजा को निलंबित कर दिया. 

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Ram Avtar Jaggi murder case: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को छत्तीसगढ़ के रायपुर में 2003 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के नेता राम अवतार जग्गी (Ram Avtar Jaggi) की हत्या के मामले में दो दोषियों की आजीवन कारावास की सजा को निलंबित कर दिया. 

छत्तीसगढ़ में दिवंगत विद्या चरण शुक्ला की पार्टी एनसीपी के कोषाध्यक्ष जग्गी की 4 जून को गाड़ी चलाते समय गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. यह हत्या बढ़ते राजनीतिक तनाव के बीच हुई, जिसके कुछ ही दिनों बाद एनसीपी ने रायपुर में एक विशाल रैली की योजना बनाई, जिससे तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती खड़ी हो गई थी. 2003 के विधानसभा चुनावों से पहले इस मामले ने राज्य को हिलाकर रख दिया था. 

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छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने 4 अप्रैल को जग्गी की हत्या के मामले में शामिल 28 व्यक्तियों की आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा. मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की शीर्ष अदालत की पीठ ने मंगलवार को एक दोषी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी सहित विभिन्न वकीलों की दलीलें सुनीं. 

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याह्या ढेबर को नहीं मिली बेल

पीठ ने दोषी याह्या ढेबर की सजा को निलंबित करने और जमानत देने की याचिका को खारिज कर दिया. हालांकि, इसने दो दोषियों अभय गोयल और फिरोज सिद्दीकी की जमानत मंजूर कर ली और आजीवन कारावास की सजा को निलंबित कर दिया. पीठ, जो हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ और जमानत की मांग करने वाले आरोपियों की 14 याचिकाओं पर विचार कर रही है, ने कहा कि वह 9 दिसंबर से शुरू होने वाले सप्ताह में अन्य याचिकाओं पर सुनवाई करेगी. पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दोषियों की 14 अपीलों को भी जल्द ही अंतिम सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाएगा. 

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हुई थी गहरी साजिश...

हत्या के मामले की शुरुआत में राज्य पुलिस ने जांच की थी. हालांकि, बाद में इसे केंद्रीय जांच ब्यूरो को सौंप दिया गया और राजनीतिक रूप से प्रेरित कवर-अप के आरोप सामने आने पर इसने नाटकीय मोड़ ले लिया. सीबीआई जांच में भाड़े के अपराधियों, पुलिस की मिलीभगत और असली दोषियों को बचाने के लिए धोखेबाजों को फंसाने के प्रयासों से जुड़ी एक गहरी साजिश का पता चला. उच्च न्यायालय ने पुष्टि की कि हत्या राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता से उपजी थी और माना कि आरोपियों ने एनसीपी के बढ़ते प्रभाव को बाधित करने के लिए जग्गी को खत्म करने की साजिश रची थी. अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि हत्या की साजिश तत्कालीन मुख्यमंत्री जोगी और उनके बेटे अमित जोगी के करीबी सहयोगियों ने रची थी. अमित जोगी को बरी कर दिया गया.

हाई कोर्ट ने माना कि गवाही और सबूतों से पता चलता है कि आरोपियों के बीच मुख्यमंत्री के आवास और स्थानीय होटलों सहित प्रमुख स्थानों पर बैठकें हुई थीं, जहां कथित तौर पर साजिश रची गई थी.

3 पुलिस अधिकारियों पर उठे थे सवाल

इसने तीन पुलिस अधिकारियों - वी के पांडे, अमरीक सिंह गिल और राकेश चंद्र त्रिवेदी की संलिप्तता पर प्रकाश डाला और कहा कि उन्होंने सबूत छिपाने और झूठे संदिग्धों को फंसाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 
हाई कोर्ट ने कहा कि हत्या को अंजाम देने के लिए पेशेवर अपराधियों को काम पर रखा गया था और परिस्थितिजन्य साक्ष्यों से उनकी संलिप्तता की पुष्टि हुई थी. हाई कोर्ट ने दंड प्रक्रिया संहिता के तहत अपीलों को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य और घटनाओं की श्रृंखला निर्णायक रूप से अपीलकर्ताओं के अपराध की ओर इशारा करती है. 
हाई कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत 28 आरोपियों को दोषी ठहराया था और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. 

हाईकोर्ट ने 28 लोगों को ठहराया था दोषी 

चिमन सिंह और याह्या ढेबर सहित कई आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा मिली. हाई कोर्ट ने इस मामले में 28 लोगों को दोषी ठहराया था - पांडे, गोयल, सिद्दीकी, त्रिवेदी, ढेबर, अविनाश सिंह उर्फ लल्लन सिंह, सूर्यकांत तिवारी, अमरीक सिंह गिल, चिमन सिंह, हरीश चंद्र, नरसी शर्मा, सुनील गुप्ता, राजू भदौरिया, अनिल पचौरी, रवींद्र सिंह उर्फ रवि सिंह, लल्ला भदौरिया उर्फ धर्मेंद्र सिंह. दोषी ठहराए गए अन्य लोगों में सत्येन्द्र सिंह, शिवेन्द्र सिंह परिहार, विनोद सिंह राठौड़, संजय सिंह कुशवाह, राकेश कुमार शर्मा, अशोक सिंह भदोरिया, विवेक सिंह, जाम्बवंत, श्याम सुंदर, विनोद सिंह राजपूत और विश्वनाथ राजभर शामिल थे. 

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